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ग़ज़ल - रीता गुलाटी

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यार रख ले हमे पनाहो में.
रस्में उल्फत लगे निगाहों में। 

तोड डाला हमे यूँ रिश्तों मे.
आज रोकें हैं अश्क आँखो में। 

गीत कोई हमे सुनाओ भी.
प्यार दिल का दिखे अदाओं मे। 

चाह दिल की जरा सुने हम भी.
यार पाये तुम्हें फरिश्तों में। 

अब खुदा सा लगे हमे बच्चा.
नूर आँखो मे बसता बच्चों में.

दर्द देकर चले गये हमको.
वो तो शामिल थे इन गुनाहों में। 

प्रेम अमृत समझ चटाया था
आज माने है अब रकीबो में। 

ठीक से हम कहे न गजलो को.
आज समझे हमें अदीबो मे। 
- रीता गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़ 
 

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