जोधपुर, 17 अप्रैल . डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर पंचकर्म विभाग में वल्र्ड हीमोफीलिया डे के अवसर पर एक विशेष जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया.
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर (वैद्य) प्रदीप कुमार प्रजापति की प्रेरणा से आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य हीमोफीलिया जैसे रक्त संबंधी रोगों के प्रति जनजागरण करना और आयुर्वेद एवं पंचकर्म चिकित्सा के माध्यम से इसके संभावित उपचारों को प्रस्तुत करना रहा. कार्यक्रम में पंचकर्म विभागाध्यक्ष डॉ. ज्ञान प्रकाश शर्मा, सहायक आचार्य डॉ. दिलीप कुमार व्यास ने सहभागिता की.
वक्ताओं ने हीमोफीलिया के प्रकार (ए, बी), कारण, लक्षण (बार-बार रक्तस्राव, जोड़ों में सूजन, रक्त का थक्का न जमना), और जटिलताओं पर विस्तार से प्रकाश डाला. पीजी स्कॉलर डॉ. चंद्रेश तिवारी एवं डॉ. दीपक गुर्जर द्वारा प्रस्तुत प्रस्तुति में आयुर्वेद में रक्तदोष, रक्त धातु क्षय, एवं रक्तपित्त जैसे सिद्धांतों को हीमोफीलिया से जोड़ा गया और बताया गया कि कैसे आयुर्वेदिक दृष्टिकोण इस रोग की जड़ों को समझने में सहायक हो सकता है.
विभागाध्यक्ष डॉ. ज्ञान प्रकाश शर्मा ने बताया कि आयुर्वेद में रसायन चिकित्सा, बल्य औषधियाँ और रक्तसंधानकारी औषधियाँ जैसे नागकेशर, लोध्र, मंजिष्ठा, अशोक, आमलकी, शतावरी, और यष्टिमधु का प्रयोग रक्तस्राव को नियंत्रित करने एवं धातु बलवर्धन में उपयोगी सिद्ध हो सकता है. डॉ. दिलीप कुमार व्यास ने पंचकर्म चिकित्सा की दृष्टि से भी हीमोफीलिया के प्रबंधन में रक्त बस्ति चिकित्सा (धातु पोषण हेतु), और अवपीडऩ नस्य (दूर्वा स्वरस)जैसी विधियों की संभावनाओं पर चर्चा की गई. साथ ही, योग और प्राणायाम के माध्यम से रक्तसंचार सुधारने, तनाव कम करने और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपायों को भी रेखांकित किया गया.
कार्यक्रम के दौरान रक्तविकार जागरूकता सत्र, आयुर्वेदिक औषधियों की प्रदर्शनी, और इंटरैक्टिव प्रश्नोत्तर सत्र का भी आयोजन किया गया, जिसमें विद्यार्थियों और चिकित्सकों ने बढ़-चढक़र भाग लिया.
/ सतीश
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