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केवल चिल्लाने से नहीं बनेगा हिंदू राष्ट्र, संसद में हिंदूवादियों की कम से कम हाेनी चाहिए 470 सीटें : रामभद्राचार्य

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सुलतानपुर, 18 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . Uttar Pradesh के जिला सुलतानपुर के सूरापुर स्थित विजेथुआ धाम में वाल्मीकि रामायण कथा के अंतिम दिन चित्रकूट तुलसी पीठाधीश्वर स्वामी रामभद्राचार्य ने बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा कि केवल चिल्लाने से देश हिंदू राष्ट्र नहीं बनेगा, इसके लिए हिंदूवादियों को संसद (लोकसभा) में कम से कम 470 सीटें मिलनी चाहिए. उन्होंने रामचरितमानस को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने की भी मांग की.

स्वामी रामभद्राचार्य ने अपने संबोधन में जोर दिया कि हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व आवश्यक है. उन्होंने कहा कि वर्तमान में सनातन परंपरा के संविधान के रूप में अठारह स्मृतियां थीं, जिनमें समय-समय पर परिवर्तन होते रहे हैं.आतंकवाद पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि आतंकवादी की कोई जाति नहीं होती. सरकार को आतंकवाद के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई करनी चाहिए. उन्होंने वर्तमान सरकार द्वारा आतंकवाद पर किए जा रहे कड़े प्रहार की सराहना की.

उन्होंने कहा कि बिना कठोरता के नियंत्रण संभव नहीं है और सरकारों को जनहित में कड़े फैसले लेने चाहिए. उन्होंने भगवान श्रीराम द्वारा सूपर्णखा को तत्कालीन संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार दंड दिलवाने का उदाहरण दिया. उन्होंने न्यायालयों से दुष्कर्म के दोषियों को प्राणदंड देने की अपील भी की. रामभद्राचार्य ने भगवान राम को दुनिया का इकलौता हीरो बताया, जिनमें ‘हैंडसम, एजुकेटेड, रेगुलर और ओबिडियेंट’ जैसे गुण हैं. उन्होंने ‘लव’ शब्द की अपनी व्याख्या भी दी. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से महात्मा गांधी को सच्ची श्रद्धांजलि के रूप में संसद में प्रस्ताव पारित कर रामचरितमानस को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने का आग्रह किया.

उन्होंने स्थानीय प्रतिनिधियों से जनपद का नाम ‘कुशनगर’ और विजेथुआ महावीरन स्थान का नाम बदलकर ‘विजयस्थ महावीर धाम’ करने का भी अनुरोध किया. कथा से पूर्व आयोजक विवेक तिवारी ने अपनी पत्नी के साथ व्यासपीठ का पूजन किया. तुलसी पीठ के उत्तराधिकारी रामचंद्र दास ने गुरु अर्चन किया. विजेथुआ महोत्सव के आयोजक विवेक तिवारी ने विजेथुआ धाम में 151 किलो का घंटा समर्पित किया, जिसे रामभद्राचार्य के कर कमलों से मंदिर के मुख्य द्वार पर स्थापित किया गया.

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(Udaipur Kiran) / दयाशंकर गुप्त

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