जम्मू, 6 जुलाई (Udaipur Kiran) । गुरु पूर्णिमा का सनातन धर्म में विशेष महत्व है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु पूर्णिमा अथवा व्यास पूर्णिमा कहा जाता है। यह पर्व जीवन में गुरु और शिक्षक के महत्व को उजागर करने के लिए अत्यंत आदर्श है। श्री कैलख ज्योतिष एवं वैदिक संस्थान ट्रस्ट के अध्यक्ष एवं प्रधान ज्योतिषाचार्य महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि पूर्णिमा तिथि 9 जुलाई, बुधवार 2025 को देर रात 1:37 बजे से प्रारंभ होकर 10 जुलाई, गुरुवार को देर रात 2:07 बजे तक रहेगी। सूर्योदय व्यापिनी आषाढ़ पूर्णिमा तिथि 10 जुलाई गुरुवार को होगी। अतः व्यास पूजा, दिवा एवं रात्रि आषाढ़ पूर्णिमा व्रत 10 जुलाई, गुरुवार को ही किया जाएगा।
गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु वेदव्यास जी का जन्मोत्सव देशभर में श्रद्धा से मनाया जाता है, इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन श्रद्धालु अपने-अपने गुरुजनों का पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। महंत रोहित शास्त्री ने बताया कि इस दिन श्री गणेश, भगवान शिव, माता पार्वती, विद्या की देवी मां शारदा, भगवान श्रीसत्यनारायण, चंद्रमा तथा माता-पिता की पूजा अवश्य करनी चाहिए। विशेष रूप से भगवान श्रीसत्यनारायण की कथा का श्रवण, पाठ या पूजन करना अति शुभ माना गया है। अगर किसी कारणवश गुरु जी साक्षात् भेंट ना हो सके तो घर पर ही रहकर अपने गुरुजी की पूजा-अर्चना, ध्यान एवं सुमिरन करें। यदि गुरु ब्रह्मलीन हैं, तो उनकी प्रतिमा या चित्र का पूजन करें और यदि गुरु सजीव हैं, तो सोशल मीडिया या वर्चुअल माध्यमों से उनके दर्शन करके पूजन करें। पूर्णिमा तिथि पर पवित्र नदियों व सरोवरों में स्नान का विशेष महत्व होता है, किसकी कारणवश स्नान करने पवित्र नदियों व सरोवरों में ना जाना हुआ तो घर में ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और अपने आसपास जरूरतमंदों को यथाशक्ति दान अवश्य करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
महंत शास्त्री ने यह भी कहा कि शास्त्रों के अनुसार इस दिन तामसिक वस्तुओं से परहेज करना चाहिए, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, और शराब व नशे जैसी चीज़ों से दूर रहना चाहिए। ऐसा न केवल शरीर के लिए, बल्कि आध्यात्मिक विकास एवं भविष्य के लिए भी लाभकारी होता है। सात्त्विक भोजन का ही सेवन करना चाहिए।
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा
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