– राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद के निदेशक डॉ. शम्स इकबाल ने पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में एक आशाजनक घोषणा की
नई दिल्ली, 17 अप्रैल . राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद (एनसीपीयूएल) की अनुदान योजनाओं की बहाली का लंबा इंतजार अब खत्म होने जा रहा है. यह आशाजनक घोषणा आज परिषद के निदेशक डॉ. शम्स इकबाल ने राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के जसोला स्थित फोरोग-ए-उर्दू भवन में पत्रकारों के साथ अनौपचारिक बातचीत में की.
ज्ञात हो कि गवर्निंग काउंसिल के गठन न होने के कारण उर्दू विकास परिषद के तहत चल रही कई योजनाएं पिछले कई वर्षों से ठप पड़ी हुई हैं, लेकिन काउंसिल के निदेशक ने अब इन योजनाओं के जल्द बहाल करने की प्रबल संभावना जताई है. हालांकि उन्होंने अभी यह नहीं बताया कि गवर्निंग काउंसिल के गठन के बारे में सरकार की ओर से उन्हें कोई स्पष्ट संकेत मिला है या नहीं या शिक्षा मंत्रालय ने कोई अन्य उपाय बताया है, लेकिन वह इसे लेकर काफी आशावादी हैं.
परिषद के निदेशक के रूप में अपनी नियुक्ति के एक वर्ष पूरा होने पर अपनी उपलब्धियों पर चर्चा के लिए आयोजित इस अनौपचारिक बातचीत में डॉ. शम्स इकबाल ने पिछले वर्ष विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर दिल्ली में चार विश्वविद्यालयों सहित पांच स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों से लेकर श्रीनगर में आयोजित चिनार पुस्तक मेले और कई वर्षों से रुके पड़े विश्व उर्दू सम्मेलन के सफल आयोजन जैसी प्रमुख उपलब्धियों का उल्लेख किया. इतना ही नहीं, एनसीपीयूएल ने सीमा पार कर पहली बार जर्मनी जैसे यूरोपीय देश (फ्रैंकफर्ट शहर) में राष्ट्रीय उर्दू परिषद का प्रतिनिधित्व किया. इसके साथ ही उन्होंने उर्दू भाषा की कुछ बेहतरीन किताबों का अन्य भाषाओं में अनुवाद करने के साथ-साथ बच्चों की किताबों के प्रकाशन को अपने एक साल की प्रमुख उपलब्धियां बताईं.
उन्होंने कहा कि इस दौरान उन्हें सरकार से पूरा सहयोग मिला और परिषद के बजट को लेकर कभी कोई परेशानी नहीं आई. इसलिए, किसी को भी परिषद के भविष्य के बारे में निराशावादी होने की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने अपनी बात के समर्थन में कुछ आंकड़े प्रस्तुत किए. इन आंकड़ों के अनुसार, एनसीपीयूएल के माध्यम से उर्दू लिपि सीखने वाले गैर-उर्दू भाषी लोगों की संख्या सालाना एक लाख से अधिक है. ऑनलाइन पाठ्यक्रम से लाभान्वित होने वाले लोगों की संख्या लगभग 25,000 है. एनसीपीयूएल की साइट पर 680 पुस्तकें और लगभग 250 ई-पुस्तकें अपलोड हैं.
उन्होंने कहा कि एनसीपीयूएल एकमात्र ऐसी संस्था है जो उर्दू के सर्वांगीण विकास के लिए काम करती है तथा उर्दू के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ उर्दू साहित्य, कविता, संस्कृति और प्रौद्योगिकी आदि के क्षेत्र में भी काम करती है.
उर्दू को रोजगार से जोड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि भाषाएं रोजगार की नहीं बल्कि सभ्यता और संस्कृति की संरक्षक होती हैं. फिर भी, उर्दू वह भाषा है जो अंग्रेजी और हिंदी के बाद सबसे अधिक रोजगार के अवसर पैदा करती है. उन्होंने उर्दू का रोना रोने वालों को सलाह दी कि हमें उर्दू किताबें, अखबार और पत्रिकाएं पढ़ने की आदत डालनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अजीब विडंबना है कि उर्दू लेखक किताबें तो लिखते हैं, लेकिन अपनी रचनाओं (किताबों) को उत्पाद नहीं मानते. वह लेखन में रुचि रखते हैं लेकिन उसे खरीदने और बेचने में उनकी कोई रुचि नहीं है. उन्होंने कहा कि उर्दू का प्रचार-प्रसार तभी संभव है जब हम इसे अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना लें.
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/ मोहम्मद शहजाद
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