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संघ साहित्य परिचर्चा में विद्वानों ने आरएसएस के कार्यों का किया उल्लेख, बताया इतिहास

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New Delhi, 4 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में अखिल Indian साहित्य परिषद के तत्वावधान में दो दिवसीय समग्र संघ साहित्य परिचर्चा का आयोजन नेहरू नगर स्थित पीजीडीएवी महाविद्यालय में किया गया. परिचर्चा का उद्घाटन Saturday को हुआ.

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने की. मुख्यमतिथि के रूप में केंद्रीय विश्वविद्यालय, सागर के पूर्व कुलाधिपति डॉ. बलवंत जानी उपस्थित रहे. इस अवसर पर सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव तुली भी मंच पर मौजूद थे. दो दिवसीय इस साहित्यिक परिचर्चा में बड़ी संख्या में विद्वानों, प्राध्यापकों और विद्यार्थियों ने सहभागिता की.

कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि संघ का सौ वर्ष का इतिहास सेवा, संघर्ष, कार्य और प्रेरणा से भरा हुआ है. उन्होंने कहा, “संघ व्यक्ति नहीं, न ही केवल व्यक्तियों का समूह है, बल्कि यह एक विचार है जो व्यक्ति निर्माण और समाज निर्माण पर केंद्रित है. संघ का कार्य चरित्र निर्माण का है और वही ईश्वरीय कार्य है.”

उन्होंने कहा कि भारत में राष्ट्रीय चरित्र और एकता की कमी को संघ ने दूर करने का काम किया. गुलामी के आठ सौ वर्षों ने देश को कमजोर किया, लेकिन संघ ने चाणक्य की नीतियों की तरह राष्ट्र के पुनर्निर्माण का कार्य किया. उन्होंने सरसंघचालक मोहन भागवत का उल्लेख करते हुए कहा कि “संघ लेने के लिए नहीं, देने के लिए प्रेरित करता है. यदि धर्म की रक्षा करोगे तो धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा.”

डॉ. बलवंत जानी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ Indian परंपरा और ज्ञान परंपरा का संवाहक है. उन्होंने कहा कि संघ का रचित साहित्य केवल भारत या एशिया तक सीमित नहीं है, बल्कि विश्व के लिए भी महत्वपूर्ण है.

सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव तुली ने कहा कि संघ की नींव ऐसे लोगों ने रखी जिन्होंने कभी रुके नहीं, झुके नहीं और टूटे नहीं. उन्होंने बताया कि आने वाले समय में संघ साहित्य का प्रकाशन समय की आवश्यकता और मांग के अनुसार किया जाएगा.

इस परिचर्चा में विचार-विमर्श के माध्यम से संघ के शताब्दी वर्ष में उसके साहित्य, विचारधारा और समाज निर्माण में योगदान पर गहन मंथन किया गया.

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(Udaipur Kiran) / माधवी त्रिपाठी

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