झारखंड चुनाव 2024 के नजदीक आते ही राजनीतिक माहौल गरमा गया है. इसी बीच, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार पर अवैध घुसपैठियों को समर्थन देने का गंभीर आरोप लगाया है. शाह ने यह बयान देकर राज्य में एक नई बहस को जन्म दे दिया है. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो अवैध घुसपैठियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा. शाह का यह बयान झारखंड में आदिवासी और स्थानीय समुदाय के मन में घुसपैठ के मसले पर गहरी चिंताओं को आवाज देता है.
झारखंड में जनसांख्यिकी बदलाव और घुसपैठ का मुद्दाझारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में जनसांख्यिकी बदलाव का मुद्दा लंबे समय से उठता रहा है. राज्य में स्थानीय समुदायों की बढ़ती चिंता है कि इस बदलाव से उनकी पहचान, संसाधनों पर उनका हक, और सांस्कृतिक धरोहरें खतरे में पड़ सकती हैं. साहिबगंज और संथाल परगना जैसे इलाकों में हालात बदतर हो चुके हैं. अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साहिबगंज के जिलाधिकारी ने स्वीकार किया है कि 2017 से अब तक 4 बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़ा गया है. अधिकारियों का मानना है कि इन क्षेत्रों में जनसांख्यिकी बदलाव अब नजरअंदाज करने लायक नहीं है.
संथाल क्रांति का प्रतीक भोगनाडीह गांव का जनसांख्यिकी बदलावसंथाल क्रांति के प्रतीक सिद्धो-कान्हू का गांव भोगनाडीह अब एक जीता-जागता उदाहरण बन चुका है जहां आदिवासी आबादी में भारी गिरावट आई है. यह गांव मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्वाचन क्षेत्र बेरहट में स्थित है, जहां मुसलमान बहुसंख्यक हो चुके हैं और आदिवासी समुदाय अल्पसंख्यक में बदल गए हैं. यह बदलाव स्थानीय समुदायों के लिए चिंता का बड़ा कारण है और इसे लेकर सरकार की भूमिका पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं.
अवैध घुसपैठ और राज्य की सुरक्षा पर सवालराजनीतिक विश्लेषकों और सामाजिक संगठनों का मानना है कि अवैध घुसपैठियों का राज्य में बढ़ता दखल न केवल झारखंड की सुरक्षा बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी खतरा है. ऐसा कहा जाता है कि प्रशासन की ढिलाई के कारण कई घुसपैठियों ने आवश्यक दस्तावेज हासिल कर लिए हैं, जिससे उन्हें पहचानना और रोकना मुश्किल हो गया है. यह मुद्दा संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रों में गंभीर सुरक्षा चुनौतियों को जन्म दे सकता है.
अंकिता हत्याकांड और सरकार का विवादास्पद रवैयाझारखंड में अंकिता हत्याकांड के प्रति राज्य सरकार के रवैए ने भी जनता में आक्रोश और संदेह को बढ़ाया है. इस कांड में न सिर्फ अंकिता की हत्या की गई, बल्कि उसके साथ जबरन धर्मांतरण का प्रयास भी किया गया. जनता का मानना है कि इस हत्याकांड के प्रति राज्य सरकार का रवैया असंवेदनशील और धीमा रहा है. इस घटना ने राज्य के कानून-व्यवस्था और महिलाओं की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
घुसपैठियों को संरक्षण देने का आरोप: वोट बैंक की राजनीति या राज्य का दुर्भाग्य?आरोप यह भी है कि जेएमएम सरकार वोट बैंक की राजनीति के चलते अवैध घुसपैठियों के मसले को नजरअंदाज कर रही है. जबकि राज्य सरकार हर बार अदालत और जनता के सामने यही कहती है कि राज्य में अवैध घुसपैठ का कोई मुद्दा ही नहीं है. परंतु साहिबगंज जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में सरकारी अधिकारियों का यह स्वीकारना कि जनसांख्यिकी में बदलाव हो रहा है, सरकार के दावों पर गंभीर सवाल खड़े करता है. विरोधियों का आरोप है कि यह पूरी रणनीति केवल सत्ता में बने रहने और वोट बैंक को बचाने के लिए बनाई गई है.
अमित शाह का संदेश: भाजपा की सरकार आई तो घुसपैठियों को नहीं छोड़ेंगेकेंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने स्पष्ट संदेश दिया कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो घुसपैठियों को किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा जाएगा. उन्होंने कहा, “हेमंत सोरेन की सरकार घुसपैठियों को शह दे रही है. अगर भाजपा की सरकार आई, तो हम इन घुसपैठियों को झारखंड की धरती से बाहर करेंगे.” शाह का यह बयान उन लोगों के लिए आश्वासन है जो राज्य में सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान को लेकर चिंतित हैं.
राज्य की पहचान और संस्कृति पर मंडराते खतरेझारखंड के आदिवासी और स्थानीय समुदाय इस बदलाव को अपनी पहचान और संसाधनों पर खतरे के रूप में देख रहे हैं. उनके लिए यह सिर्फ सुरक्षा का मुद्दा नहीं, बल्कि उनकी पीढ़ियों से चली आ रही संस्कृति, भाषा, और रीति-रिवाजों को बनाए रखने का सवाल भी है. संथाल परगना जैसे इलाकों में अब आदिवासी समुदाय के लिए अपने ही इलाके में अपनी पहचान को सुरक्षित रखना एक चुनौती बन गया है.
निष्कर्ष: क्या घुसपैठियों पर रोक लगाएगी अगली सरकार?झारखंड के चुनावों में अब यह मुद्दा मुख्य बहस का विषय बन चुका है. भाजपा ने साफ कर दिया है कि घुसपैठियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई उसकी प्राथमिकता होगी. सवाल यह है कि क्या झारखंड की जनता इस मुद्दे पर बदलाव की चाह रखती है और क्या वे इसे लेकर नई सरकार चुनने के लिए तैयार हैं?
झारखंड में अब चुनावी माहौल में घुसपैठ का मुद्दा केंद्र में है, और जनता की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि चुनाव के बाद राज्य में क्या कदम उठाए जाएंगे. राज्य की संस्कृति, पहचान और सुरक्षा के इस महत्वपूर्ण प्रश्न पर सभी राजनीतिक दलों की अग्निपरीक्षा होना तय है.