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एसटी वर्ग की महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए केन्द्र सरकार कानून में संशोधन करने पर करे विचार-हाईकोर्ट

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जयपुर, 1 अगस्त (Udaipur Kiran) । राजस्थान हाईकोर्ट ने एसटी वर्ग की महिला के पैतृक संपत्ति में अधिकार से जुड़े महत्वपूर्ण मामले में कहा है कि आजादी के सात दशक बाद भी एसटी समुदाय की बेटियों को समान अधिकारों से वंचित करना अनुचित है। ऐसे में यह जरूरी है कि भारत सरकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, की धारा 2(2) के प्रावधानों की समीक्षा करे और यदि जरूरत हो तो प्रावधानों में संशोधन करे। अदालत ने आशा जताई है कि केन्द्र सरकार इस मामले में विचार करेगी और सुप्रीम कोर्ट की ओर से कमला नेती के मामले में निर्देश निर्देश के आधार पर उचित निर्णय लेगी। जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश मन्नी देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए। वहीं अदालत ने याचिकाकर्ता से जुड़े मामले में प्रतिवादी पक्ष की ओर से सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत पेश अर्जी को खारिज करते हुए एसडीओ को निर्देश दिए हैं कि वह दो साल में लंबित वाद का निस्तारण करे।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि महिलाओं ने राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके बावजूद भी उन्हें अक्सर सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों में समान भागीदारी के लिए बाधाओं का सामना करना पडता है। अदालत ने कहा कि भारतीय संविधान के प्रावधान स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि कोई भी ऐसा कानून नहीं बनाया जा सकता जो महिलाओं के खिलाफ भेदभाव पैदा करता हो। अनुच्छेद 14 महिलाओं के लिए समानता की गारंटी देता है।

याचिका में अधिवक्ता प्रहलाद शर्मा और अधिवक्ता लखन शर्मा ने बताया कि याचिकाकर्ता अपने पिता की इकलौती संतान है। उसने अपनी पैतृक संपत्ति में अपने अधिकारों की घोषणा के लिए उपखंड अधिकारी के समक्ष वाद दायर किया था। इस दौरान प्रतिवादी ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, की धारा 2(2) के प्रावधानों के आधार पर सीपीसी के आदेश 7 नियम 11 के तहत अर्जी पेश कर वाद खारिज करने की मांग की। प्रतिवादी ने कहा कि यह अधिनियम एससी वर्ग के सदस्यों पर लागू नहीं होता। इस अर्जी को एसडीओ ने खारिज कर दिया। इसके खिलाफ प्रतिवादी ने राजस्व मंडल में याचिका पेश की। जिसे मंडल ने गत 9 जून को स्वीकार कर लिया। बोर्ड ने माना की याचिकाकर्ता मीणा समुदाय की सदस्य है और उसे पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकार का कोई अधिकार नहीं है। ऐसे में एसडीओ के सम्मुख लंबित वाद खारिज हो गया। इसे याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि एसटी वर्ग की बेटियों के खिलाफ भेदभाव करना संविधान के प्रावधानों के खिलाफ है और सुप्रीम कोर्ट भी इस संबंध में निर्देश दे चुका है। इसलिए याचिकाकर्ता की ओर से एसडीओ के समक्ष पेश वाद सुनवाई योग्य था और मंडल ने उसे गलत तरीके से खारिज किया है। इसका विरोध करते हुए प्रतिवादी के वकील ने कहा कि धारा 2(2) स्पष्ट रूप से एसटी वर्ग के सदस्यों पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के लागू होने पर रोक लगाती है। केन्द्र सरकार की आरे से जब तक गजट अधिसूचना जारी कर इस संबंध में प्रावधान नहीं किया जाता, तब तक एसटी महिला सदस्य उत्तराधिकार का दावा करने का हक नहीं रखती है।

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(Udaipur Kiran)

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