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राजस्थान का पहला 251 किलो पारे से बना पारदेश्वर महादेव

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भीलवाड़ा, 23 जुलाई (Udaipur Kiran) । शिवभक्ति के पावन महीने श्रावण में राजस्थान के श्रद्धालुओं के बीच एक नया अध्याय जुड़ गया है। भीलवाड़ा जिले के जहाजपुर उपखंड के शक्करगढ़ कस्बे में स्थित श्री संकट हरण हनुमत धाम मंदिर में स्थापित 251 किलो पारे से निर्मित पारदेश्वर महादेव शिवलिंग आज न केवल राजस्थान, बल्कि देशभर के शिवभक्तों के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र बन गया है। सावन मास में यहां भक्ति और दर्शनार्थियों का मेला जैसा माहौल बना रहता है।

शिवलिंग के अनेक स्वरूप होते हैं, लेकिन पारे से निर्मित शिवलिंग दुर्लभतम माने जाते हैं। यह 251 किलो का पारद शिवलिंग राजस्थान में अपनी तरह का पहला और अब तक का सबसे भारी शिवलिंग है। यह दिखने में छोटा लगता है, पर इसका वजन सुनकर कोई भी चकित हो सकता है। पारा (पारद) एक तरल धातु है, जिससे ठोस रूप में शिवलिंग बनाना शास्त्र सम्मत प्रक्रिया और तपस्वी संन्यासियों का कार्य है।

पारा न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी इसकी महत्ता अनंत है। तापमापी यंत्र (थर्मामीटर) से लेकर दवाओं तक, पारा एक संवेदनशील और उपयोगी धातु है। पारद शिवलिंग का निर्माण चांदी और औषधीय जड़ी-बूटियों को मिलाकर किया जाता है। इसे केवल संन्यासी संत ही बना सकते हैं, गृहस्थों को इसकी अनुमति नहीं होती।

महामंडलेश्वर स्वामी जगदीश पुरी महाराज बताते हैं कि पारद शिवलिंग में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों का वास होता है। इसे स्पर्श, पूजन और अभिषेक करने से व्यक्ति पर किसी भी प्रकार का तांत्रिक या नकारात्मक प्रभाव नहीं होता। यह शिवलिंग मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है।

इस शिवलिंग को सिद्ध संत स्वामी नारदा नंद महाराज द्वारा महाकाल की नगरी उज्जैन में शास्त्रीय विधि से निर्मित किया गया। अमर निरंजनी आश्रम के स्वामी महामंडलेश्वर जगदीश पुरी महाराज के विशेष आग्रह पर इसे 18 फरवरी 2023 को उज्जैन से शक्करगढ़ लाया गया और 22 फरवरी को भव्य प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में स्थापित किया गया। तभी से यह स्थान श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र बन गया है।

सावन का महीना शिवभक्तों के लिए अत्यंत पूजनीय होता है और इस अवसर पर पारद शिवलिंग के दर्शन एवं अभिषेक का विशेष महत्व होता है। यहां मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर, जोधपुर, अजमेर, कोटा, सूरत, ब्यावर समेत दूर-दराज से हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन आकर दर्शन एवं पूजन कर रहे हैं। सावन के प्रत्येक सोमवार को यहां विशाल जनसमूह की उपस्थिति से मेले का दृश्य बन जाता है।

पारद शिवलिंग की महिमा बताते हुए मंदिर के आचार्य हंस चेतन्य कहते हैं कि अगर आप किसी अन्य शिवलिंग पर 100 बार अभिषेक करते हैं, तो जितना पुण्य मिलता है, उतना पुण्य पारद शिवलिंग पर एक बार अभिषेक करने से प्राप्त होता है। श्रद्धालु दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अभिषेक करते हैं और पंचामृत को प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं। पूजा में रुद्राभिषेक, शिव चालीसा, महामृत्युंजय जाप जैसे अनुष्ठान दिनभर चलते रहते हैं।

श्री संकट हरण हनुमत धाम केवल शिवलिंग के लिए ही नहीं, बल्कि यहां एक साथ हनुमानजी, राम दरबार, राधा-कृष्ण और पारदेश्वर महादेव के दर्शन का सौभाग्य मिलता है। तीनों मंदिरों के शिखर इतनी ऊँचाई पर स्थित हैं कि दूर से ही उनकी झलक दिखाई देती है।

आश्रम के मीडिया प्रभारी सुरेंद्र जोशी बताते हैं कि पारद शिवलिंग के दर्शन से त्रिदेव का आशीर्वाद मिलता है। इस विशेष शिवलिंग की स्थापना राजस्थान में पहली बार शक्करगढ़ स्थित अमर निरंजनी आश्रम में की गई है। इसका निर्माण न केवल धार्मिक महत्व रखता है बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा और मनोबल बढ़ाने में सहायक है।

यहां दर्शन के लिए आने वाले भक्तों का कहना है कि इस मंदिर में पहुंचते ही आत्मिक शांति की अनुभूति होती है। एक बार जो यहां आता है, वह बार-बार लौटकर आता है। मंदिर परिसर में फैली पवित्रता, मंत्रोच्चार की गूंज और पूजा-पाठ की सकारात्मक ऊर्जा एक अलग ही अनुभूति प्रदान करती है। महामंडलेश्वर स्वामी जगदीश पुरी महाराज के अनुसार जो व्यक्ति जीवन में मानसिक तनाव, रोग या दुःख से ग्रसित है, उन्हें पारदेश्वर महादेव की पूजा अवश्य करनी चाहिए। यह शिवलिंग उनके लिए उपचारात्मक शक्ति का स्रोत बनता है।

धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भीलवाड़ा जिले का शक्करगढ़ का यह हनुमत धाम अब एक प्रमुख तीर्थ स्थल बनता जा रहा है। यहां आने वाले श्रद्धालु न केवल दर्शन करते हैं, बल्कि स्थानीय संस्कृति, धार्मिक आयोजन और सादगीपूर्ण वातावरण का भी अनुभव करते हैं। इससे क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था और पर्यटन को भी बढ़ावा मिल रहा है। श्रावण मास में शिव की भक्ति का विशेष महत्व है, और इस अवसर पर पारे से निर्मित 251 किलो वजनी पारदेश्वर शिवलिंग न केवल अद्भुत चमत्कारिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय का जीवंत उदाहरण भी है। जो भी इस पावन स्थल पर आता है, वह यही कहता है यहां आने से आत्मा को जो शांति मिलती है, वह कहीं और नहीं।

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(Udaipur Kiran) / मूलचंद

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