बिहार के सुपौल जिले से एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जहां बुधवार को जिला व्यवहार न्यायालय परिसर से एक विचाराधीन बंदी पुलिस को चकमा देकर फरार हो गया। घटना ने पुलिस महकमे में हड़कंप मचा दिया है और सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
जानकारी के अनुसार, फरार बंदी की पहचान नेपाल के सुनसरी जिले अंतर्गत भांटाबारी थाना क्षेत्र के कोसी गांवपालिका वार्ड 6 निवासी 31 वर्षीय रामनाथ यादव के रूप में हुई है। रामनाथ को किसी पुराने आपराधिक मामले में गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेजा गया था। बुधवार को उसे पेशी के लिए सुपौल जिला व्यवहार न्यायालय लाया गया था, लेकिन इसी दौरान वह पुलिस अभिरक्षा से भाग निकला।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, न्यायालय परिसर में बंदियों को लेकर पुलिस पहुंची थी। इसी दौरान किसी बहाने से रामनाथ यादव ने पुलिस की नजरों से बचते हुए मौके से भागने की योजना बनाई और सफल भी रहा। बताया जा रहा है कि वह काफी चालाकी से पहले बाथरूम जाने का बहाना बनाकर पुलिस को गुमराह किया और फिर वहां से निकल भागा।
पुलिसकर्मी जब तक कुछ समझ पाते, तब तक वह न्यायालय परिसर से बाहर निकल चुका था। घटनास्थल पर मौजूद पुलिसकर्मियों ने तुरंत पीछा करने की कोशिश की, लेकिन वह ओझल हो चुका था। घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया और तत्काल जिले के सभी थानों को अलर्ट कर दिया गया। सीमावर्ती इलाकों में सघन तलाशी अभियान शुरू कर दिया गया है।
इस मामले में संबंधित पुलिसकर्मियों की लापरवाही सामने आने पर उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू कर दी गई है। जिला पुलिस अधीक्षक ने कहा है कि जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि न्यायालय परिसर जैसी संवेदनशील जगहों पर सुरक्षा के ऐसे चूक को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
रामनाथ यादव की पृष्ठभूमि को लेकर पुलिस ने बताया कि उस पर नेपाल और भारत दोनों जगहों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं। खासकर सीमावर्ती इलाकों में उसकी गतिविधियों को लेकर खुफिया एजेंसियों की भी नजर थी। अब उसके फरार होने से न सिर्फ बिहार पुलिस, बल्कि नेपाल पुलिस भी सतर्क हो गई है। दोनों देशों की एजेंसियों के बीच संपर्क स्थापित किया जा रहा है ताकि उसे जल्द से जल्द पकड़ा जा सके।
फिलहाल पुलिस ने न्यायालय परिसर के आसपास लगे सीसीटीवी फुटेज खंगालने शुरू कर दिए हैं ताकि उसके भागने की पूरी प्रक्रिया और इसमें किसी की मदद का भी पता लगाया जा सके। यह घटना एक बार फिर से न्यायालय परिसरों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा करती है।
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