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राजस्थान के चमत्कारी गणेश मंदिर! जहां मात्र दर्शन से पूरी होती हैं मनोकामनाएं, जानिए इन मंदिरों की रहस्यमयी मान्यताएं

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आज हम आपके लिए राजस्थान के प्रसिद्ध गणेश मंदिरों की जानकारी लेकर आए हैं, जिनकी मान्यताएं बेहद खास हैं और साथ ही यहां दर्शन करने से भक्तों की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। सभी मंदिरों का अपना अलग और मजबूत इतिहास है।


ये हैं राज्य के प्रमुख गणेश मंदिर
त्रिनेत्र मंदिर, रणथंभौर

राज्य के सवाई माधोपुर जिले से 10 किलोमीटर दूर रणथंभौर किले में प्रसिद्ध गणेश मंदिर स्थापित है। यहां भगवान गणेश अपनी पत्नियों ऋद्धि सिद्धि और पुत्र शुभ लाभ के साथ विराजमान हैं। मान्यता है कि कोई भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान को पत्र भेजकर आमंत्रित किया जाता है, ताकि उनका कार्य बिना किसी बाधा के पूरा हो सके। यहां लगातार गणेश जी के चरणों में शादी के कार्ड चढ़ाए जाते हैं। यहां भगवान की मूर्ति की तीन आंखें हैं, जिसके कारण उन्हें त्रिनेत्र गजानन के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण रणथंभौर के राजा हमीर ने 10वीं शताब्दी में करवाया था। मंदिर की मूर्ति स्वयंभू है।

गढ़ गणेश, जयपुर
संभवतः यह देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां गणेश जी बिना सूंड के विराजमान हैं। दरअसल, यहां गणेश जी का बाल रूप विराजमान है।राजसी काल का यह मंदिर किला शैली में बना है। इसलिए इसका नाम गढ़ गणेश मंदिर रखा गया है। जयपुर की नींव गणेश जी के आशीर्वाद से रखी गई थी। यहां गणेश जी की दो मूर्तियां हैं। पहली मूर्ति अंकड़े के पेड़ की जड़ से बनी है और दूसरी अश्वमेध यज्ञ की राख से बनी है। महाराजा सवाई जयसिंह ने नाहरगढ़ पहाड़ी पर अश्वमेध यज्ञ करके विधिवत रूप से गणेश जी की बाल रूप वाली इस मूर्ति को स्थापित किया था। मंदिर परिसर में दो पत्थर के चूहे स्थापित हैं, जिनके कान में भक्त अपनी इच्छा बताते हैं और चूहे उनकी इच्छा बालक गणेश तक पहुंचाते हैं। मंदिर केवल गणेश चतुर्थी के दिन ही खुलता है।

मोती डूंगरी, जयपुर
मोती डूंगरी जयपुर के लोगों के लिए खास मंदिर है। मंदिर की एक खास मान्यता है, जिसके चलते शहर के कोने-कोने से भक्त यहां पहुंचते हैं। दरअसल जयपुर के लोगों का मानना है कि नई गाड़ी खरीदने के तुरंत बाद सबसे पहले उसे इस मंदिर में लाकर पूजा करनी चाहिए। इससे गाड़ी को शुभ फल मिलता है। मंदिर में स्थापित भगवान की मूर्ति जयपुर के राजा माधोसिंह प्रथम की रानी के मायके मावली से लाई गई थी। माना जाता है कि यह मूर्ति करीब पांच सौ साल पुरानी है। इस मूर्ति को पालीवाल नामक सेठ मावली से जयपुर लाए थे। मोती डूंगरी के इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण सेठ पालीवाल की देखरेख में हुआ था।

सिद्ध गजानंद, जोधपुर
जोधपुर के रातानाडा में स्थित यह मंदिर 150 साल पुराना बताया जाता है। पहाड़ी पर बने इस मंदिर की ऊंचाई जमीन से करीब 108 फीट है। मंदिर श्रद्धालुओं के साथ-साथ कला और शिल्प प्रेमियों को भी पसंद आता है। शहर के लोगों का मानना है कि शादी के दौरान यहां निमंत्रण देने से शुभ कार्य में कोई बाधा नहीं आती है। इसलिए जोधपुर के हर घर में शादी से पहले यहां निमंत्रण दिया जाता है और गणेश जी की प्रतीकात्मक मूर्ति को ले जाकर पूरे विधि-विधान के साथ विवाह स्थल पर स्थापित किया जाता है। विवाह के बाद मूर्ति को फिर से मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। लोग मंदिर में पवित्र धागा बांधते हैं और भगवान से अपनी मनोकामना बताते हैं। कहा जाता है कि यहां जो भी मांगा जाता है, वह मिलता है। मंदिर के बारे में एक और मान्यता है। चूंकि मंदिर ऊंचाई पर स्थित है, इसलिए यहां मौजूद पत्थरों से एक छोटा सा घर बनाया गया है। कहा जाता है कि ऐसा करने से लोग अपना खुद का घर बनाते हैं।

इश्किया गजानन, जोधपुर
जोधपुर शहर के किले के भीतर आड़ा बाजार जूनी मंडी में प्रथम पूज्य गणेशजी का एक अनूठा मंदिर है, जहां न केवल गणेश चतुर्थी बल्कि हर बुधवार शाम को मेले जैसा माहौल रहता है। दर्शन करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या युवाओं की होती है, जो इस अनोखे विनायक को अपना 'हीरो' मानते हैं। मूल रूप से गुरु गणपति मंदिर की प्रसिद्धि पूरे शहर में 'इश्किया गजानन' जी मंदिर के नाम से प्रचलित है। संकरी गली के अंत में स्थित सौ साल से भी ज्यादा पुराने गुरु गणपति मंदिर की तुलना चार दशक पहले इलाके के कुछ लोगों ने हथेलियों पर बने 'इश्किया गजानन' से की थी। युवा जोड़े प्रेम में सफलता पाने के लिए यहां आते हैं। कहा जाता है कि महाराजा मानसिंह के समय गुरु का तालाब की खुदाई के दौरान गुरु गणपति की मूर्ति मिली थी। बाद में मूर्ति को गुरु का तालाब से घोड़ागाड़ी में लाकर जूनी मंडी स्थित निवास के सामने चबूतरे पर स्थापित किया गया।

बोहरा गणेश मंदिर, उदयपुर
उदयपुर का यह मंदिर करीब 350 साल पुराना है। 7-8 दशक पहले तक जब लोगों को पैसों की जरूरत होती थी तो वे एक कागज पर अपनी जरूरत लिखकर मूर्ति के पास रख देते थे। बाद में वे यह पैसा ब्याज सहित भगवान को लौटा देते थे।

नाहर के गणेश जी, जयपुर
जयपुर में नाहरगढ़ पहाड़ियों की तलहटी में बने इस मंदिर में विराजमान गणेश जी की मूर्ति की सूंड दाईं ओर है। मान्यता के अनुसार यहां उल्टा स्वास्तिक बनाने मात्र से ही बिगड़े काम बनने लगते हैं।

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