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इस मंदिर में होती है भगवान की खेंडित मूर्ति की पूजा, क्या है इसका रहस्य, 2 मिनट के इस वीडियो में पढ़ें रोचक कहानी

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भारत के सबसे प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है दक्षिणेश्वर काली मंदिर। यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का भी एक अद्भुत केंद्र है। कोलकाता के पास हुगली नदी के किनारे बसे इस मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु और पर्यटक दर्शन करने आते हैं। यहां की भव्यता, आध्यात्मिक वातावरण और ऐतिहासिक महत्ता इसे विशेष बनाते हैं।

मां भुवनेश्वरी का यह पावन धाम

दक्षिणेश्वर मंदिर मां काली को समर्पित है, जिन्हें यहां भवतरिणी काली के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर 19वीं सदी में रानी रासमणि द्वारा बनवाया गया था। कहते हैं कि रानी रासमणि को स्वप्न में देवी काली ने दर्शन दिए थे और आदेश दिया था कि वह गंगा नदी के किनारे मंदिर बनवाएं। तब रासमणि ने अपनी संपत्ति से यह भव्य मंदिर 1855 में बनवाया और मां को समर्पित किया।

रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद का संबंध

इस मंदिर को विशेष मान्यता दिलाने वाले संत श्री रामकृष्ण परमहंस थे। वे यहीं के मुख्य पुजारी थे और यहीं उन्होंने मां काली की आराधना करते हुए परम ज्ञान प्राप्त किया। उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद भी यहां साधना के लिए आते थे। कहा जाता है कि यहीं पर स्वामी विवेकानंद को मां काली के साक्षात दर्शन हुए थे।

मंदिर की वास्तुकला और विशेषताएं

दक्षिणेश्वर काली मंदिर बंगाली नव-रिनेसां स्थापत्य शैली में बना है। मंदिर के मुख्य भवन में नौ शिखर हैं। इसके अलावा परिसर में 12 शिव मंदिर, राधा-कृष्ण का मंदिर और एक विशाल नट मंडप है। मुख्य गर्भगृह में काले पत्थर से बनी मां काली की प्रतिमा है, जो भगवान शिव के सीने पर खड़ी हुई हैं। यहां श्रद्धालु संध्या आरती के समय विशेष भीड़ में दर्शन करते हैं।

त्योहार और आयोजन

दक्षिणेश्वर मंदिर में काली पूजा, नवरात्रि, और दुर्गा पूजा विशेष धूमधाम से मनाए जाते हैं। इन अवसरों पर मंदिर को दीपों और फूलों से सजाया जाता है। गंगा नदी के किनारे स्थित यह मंदिर रात में रोशनी से जगमगाता है, जिसे देखना एक अद्भुत अनुभव होता है।

कैसे पहुंचे दक्षिणेश्वर काली मंदिर?

यह मंदिर कोलकाता शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर है। हावड़ा रेलवे स्टेशन से लोकल ट्रेन या टैक्सी के जरिए मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है। नजदीकी मेट्रो स्टेशन भी अब दक्षिणेश्वर में खुल गया है, जिससे दर्शन करना और भी सरल हो गया है।
गंगा नदी में नौका विहार करते हुए भी यहां पहुंचा जा सकता है, जो एक अलग ही अनुभव देता है।

श्रद्धालुओं का अनुभव

जो भी श्रद्धालु यहां आते हैं, वे इस स्थान को अलौकिक ऊर्जा और शांति से परिपूर्ण बताते हैं। मां भवतरिणी की कृपा से कई भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होने की बातें प्रचलित हैं।

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