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रामकृष्ण परमहंस: एक महान संत की पुण्यतिथि पर विशेष

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रामकृष्ण परमहंस का जीवन और शिक्षाएँ

लाइव हिंदी खबर :-भारतीय संस्कृति में कई संत और महापुरुष हुए हैं, जिनके उपदेश और कार्य आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। इनमें से एक प्रमुख नाम है 'रामकृष्ण परमहंस' का, जिनकी जयंती हर साल 18 फरवरी को मनाई जाती है।


रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को पश्चिम बंगाल के कमारपुकुर गांव में हुआ। उनका असली नाम गदाधार था। उनका बचपन गांव में ही बीता, लेकिन बड़े होने पर उनके भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय उन्हें कलकत्ता ले गए। 23 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ। स्वामी विवेकानंद, जो रामकृष्ण के शिष्य थे, ने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।


रामकृष्ण परमहंस मां काली के भक्त थे, लेकिन उन्होंने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। कलकत्ता पहुंचने के बाद, 1855 में उनके भाई को एक काली मंदिर में पुजारी की नौकरी मिली, और कुछ समय बाद रामकृष्ण को भी पुजारी नियुक्त किया गया। हालांकि, 15 दिनों के भीतर ही उन्हें मंदिर की कमेटी के सामने पेश होना पड़ा।


कमेटी के सदस्यों ने रामकृष्ण पर दो शिकायतें कीं। पहली शिकायत थी कि वे देवी को फूल चढ़ाने से पहले उन्हें सूंघते थे। जब उनसे पूछा गया, तो उन्होंने कहा, "मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूं कि फूलों में सुगंध हो।" दूसरी शिकायत थी कि वे देवी को भोग लगाने से पहले भोग को चखते थे। रामकृष्ण ने उत्तर दिया, "मेरी मां भी मुझे कुछ देने से पहले चखती थीं, ताकि मुझे कुछ गलत न मिले।"


रामकृष्ण की समझदारी भरी बातें सुनकर कमेटी के सदस्य हैरान रह गए और उनके सामने कोई तर्क नहीं रख सके।


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