पितृ दोष की अवधारणा: पितरों के प्रति लोगों में हमेशा जिज्ञासा बनी रहती है। वे कौन हैं, उनकी नाराजगी का क्या कारण है, और इससे क्या परिणाम होते हैं। पंडित सुनील शर्मा के अनुसार, पितृ हमारे पूर्वज होते हैं, जिनका ऋण हमारे ऊपर है। मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है, और इसके ऊपर सूर्य लोक और स्वर्ग लोक हैं।
आत्मा का पितृ लोक में जाना: धर्मशास्त्रों के अनुसार, जब आत्मा शरीर को छोड़ती है, तो वह सबसे पहले पितृ लोक में जाती है। यदि आत्मा के पास अच्छे पुण्य हैं, तो पूर्वज उसे सम्मान देते हैं। इसके बाद आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की ओर बढ़ती है।
पितृ दोष की परिभाषा: जब पूर्वज अपने परिवार के सदस्यों को श्रद्धा और प्यार नहीं पाते, तो वे दुखी होकर श्राप दे देते हैं, जिसे पितृ दोष कहा जाता है।
पितृ दोष के कारण: यह एक अदृश्य बाधा है, जो पितरों के रुष्ट होने के कारण उत्पन्न होती है। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे गलत आचरण, श्राद्ध कर्म न करना, या अंत्येष्टि में त्रुटि।
पितृ दोष के प्रभाव: यह मानसिक अवसाद, व्यापार में नुकसान, विवाह में समस्याएं, और जीवन के हर क्षेत्र में बाधाएं उत्पन्न करता है।
पितृ दोष के प्रकार: यह दो प्रकार से प्रभावित करता है: अधोगति वाले पितरों के कारण और उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण।
पितृ दोष के निवारण के उपाय: पितृ दोष को दूर करने के लिए कई उपाय हैं, जैसे पिंड दान, ब्राह्मण को दान, और मंत्र जाप।
पितृ दोष के लक्षण: खाने में बाल निकलना, घर में दुर्गंध आना, शुभ कार्य में बाधा आना, और संतान सुख से वंचित रहना इसके प्रमुख लक्षण हैं।
विशेष उपाय: नारायणबलि और नागबलि जैसे विशेष उपाय पितृ दोष के निवारण के लिए किए जाते हैं।
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