इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) में अक्सर टीमें अपनी पारंपरिक जर्सी से हटकर कुछ विशेष मौकों पर खास रंगों की जर्सी में नज़र आती हैं। इसी क्रम में, गुजरात टाइटन्स (Gujarat Titans) की टीम को भी एक मैच के दौरान मनमोहक लैवेंडर रंग की जर्सी पहने देखा गया था, जिसने क्रिकेट प्रेमियों के बीच काफी उत्सुकता जगाई। आखिर, इस रंग परिवर्तन के पीछे की कहानी क्या थी? आइए, इसके पीछे की ‘अंदर की जानकारी’ को समझते हैं।
कैंसर के खिलाफ जागरूकता और समर्थन का प्रतीक:गुजरात टाइटन्स ने लैवेंडर रंग की जर्सी एक बेहद नेक और महत्वपूर्ण उद्देश्य के साथ पहनी थी – कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी के खिलाफ जागरूकता फैलाना और इससे पीड़ित लोगों के प्रति अपना एकजुट समर्थन दिखाना।
दरअसल, लैवेंडर रंग को सभी प्रकार के कैंसर (All Cancers) के लिए जागरूकता के एक वैश्विक प्रतीक के रूप में मान्यता प्राप्त है। गुजरात टाइटन्स की टीम इस पहल के माध्यम से लोगों को कैंसर के विभिन्न रूपों, इसके शुरुआती लक्षणों को पहचानने के महत्व, नियमित जांच और इस बीमारी से लड़ने वाले व्यक्तियों व उनके परिवारों को निरंतर साहस और समर्थन देने की आवश्यकता के बारे में सचेत करना चाहती थी।
कब और क्यों पहनी थी यह विशेष जर्सी?यह विशेष लैवेंडर किट गुजरात टाइटन्स ने आमतौर पर अपने घरेलू मैदान, नरेंद्र मोदी स्टेडियम, अहमदाबाद में खेले जाने वाले किसी एक महत्वपूर्ण लीग मैच के दौरान पहनी थी। उदाहरण के तौर पर, IPL 2023 में सनराइजर्स हैदराबाद के खिलाफ अपने आखिरी घरेलू लीग मैच में टीम इसी लैवेंडर जर्सी में मैदान पर उतरी थी।
इस पहल का महत्व:
व्यापक जागरूकता: IPL भारत में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले खेल आयोजनों में से एक है। इस मंच पर लैवेंडर जर्सी पहनकर टीम ने लाखों करोड़ों दर्शकों तक कैंसर जागरूकता का संदेश पहुंचाया।
समर्थन का प्रदर्शन: यह कदम कैंसर रोगियों और उनके परिवारों के प्रति टीम के समर्थन और सहानुभूति को दर्शाता है, जिससे उन्हें मानसिक मजबूती मिलती है।
प्रेरणा: टीम की यह पहल अन्य संगठनों और व्यक्तियों को भी सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर आगे आने के लिए प्रेरित करती है।
संक्षेप में, गुजरात टाइटन्स द्वारा लैवेंडर रंग की जर्सी पहनना सिर्फ एक रंग परिवर्तन नहीं था, बल्कि यह कैंसर के खिलाफ लड़ाई में उनकी सक्रिय भागीदारी और सामाजिक जिम्मेदारी का एक सशक्त प्रदर्शन था। यह दर्शाता है कि खेल सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव का एक शक्तिशाली माध्यम भी बन सकता है।
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