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Types Of Yoga: योग की विभिन्न विधाओं से पाएं बेहतर सेहत और मानसिक शांति, जानिए हठ, राज, भक्ति और कर्म योग के फायदे

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Types Of Yoga: योग की विभिन्न विधाओं से पाएं बेहतर सेहत और मानसिक शांति, जानिए हठ, राज, भक्ति और कर्म योग के फायदे

News India Live, Digital Desk: Types Of Yoga: भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत योग आज विश्व स्तर पर शरीर, मन और आत्मा के समग्र विकास का प्रमुख साधन बन गया है। संस्कृत के शब्द ‘युज’ से निकला ‘योग’ शब्द शरीर, मन और आत्मा के बीच एकता स्थापित करने की प्रक्रिया है। महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में योग को “चित्त की वृत्तियों का निरोध” कहा है, जिसका अर्थ है मन को नियंत्रित कर आंतरिक शांति और आत्म-साक्षात्कार तक पहुंचना।

योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि जीवन शैली को संपूर्ण रूप से बेहतर बनाने का तरीका है। यह तनाव, बीमारियों और आधुनिक जीवन की चुनौतियों से निपटने में प्रभावी है। आइए योग के प्रमुख प्रकारों को समझें:

1. हठ योग:

हठ योग शारीरिक मुद्राओं (आसन) और प्राणायाम (श्वास नियंत्रण) पर केंद्रित है। ‘हठ’ शब्द सूर्य (‘ह’) और चंद्र (‘ठ’) की ऊर्जा के संतुलन का प्रतीक है। यह शरीर को स्वस्थ, मजबूत और लचीला बनाता है। सूर्य नमस्कार, भुजंगासन, ताड़ासन जैसे आसन शरीर में ऊर्जा और लचीलापन लाते हैं, जबकि अनुलोम-विलोम और कपालभाति जैसे प्राणायाम श्वसन प्रणाली को मजबूत बनाते हैं।

2. राज योग:

राज योग का अर्थ ‘श्रेष्ठ योग’ है, जो मन को नियंत्रित कर आंतरिक शांति की ओर ले जाता है। यह ध्यान और मानसिक अनुशासन पर आधारित है। महर्षि पतंजलि द्वारा वर्णित अष्टांग योग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि) राज योग का मुख्य हिस्सा है। यह योग तनाव, चिंता और नकारात्मक विचारों को दूर करता है। स्वामी विवेकानंद ने इसे “मन की शक्ति जागृत करने की कला” बताया है।

3. भक्ति योग:

भक्ति योग प्रेम, श्रद्धा और समर्पण के जरिए परमात्मा से जुड़ने का मार्ग है। भगवद्गीता में भक्ति योग को “ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण” कहा गया है। यह भावनात्मक और आध्यात्मिक स्तर पर व्यक्ति को मजबूत करता है। भक्ति योग का अभ्यास भजन, कीर्तन, पूजा और सेवा के माध्यम से होता है। नारद भक्ति सूत्र में इसे “परम प्रेम” बताया गया है, जो व्यक्ति को अहंकार और सांसारिक बंधनों से मुक्त करता है।

कर्म योग निस्वार्थ कर्म करने और अपने कर्तव्यों का पालन बिना फल की इच्छा के करने पर जोर देता है। भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कर्म योग के बारे में कहा, “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन,” अर्थात् कर्म करो लेकिन उसके फल की चिंता मत करो। कर्म योग व्यक्ति को अपने हर कार्य को पूजा और सेवा मानकर करने के लिए प्रेरित करता है। स्वामी विवेकानंद ने इसे “निस्वार्थ कर्म के माध्यम से आत्मा की मुक्ति” बताया है।

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