मधुलिका सिन्हा, वॉशिंगटन: H1-B वीजा शुल्क में एक लाख डॉलर प्रति वर्ष का इजाफा करने के अमेरिकी सरकार के फैसले से भारत की आईटी कंपनियों के साथ ही अमेरिकी कंपनियों में भी हड़कंप मच गया है। भारतीय टेक कंपनियों के शीर्ष संगठन-नैसकॉम ने वीजा शुल्क में की गई बढ़ोतरी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि निश्चित रूप से भारत की आईटी कंपनियां इससे प्रभावित होंगी। ऑनशोर परियोजनाओं के लिए व्यावसायिक निरंतरता बाधित होगी और अतिरिक्त लागत में समायोजन की आवश्यकता होगी। फिर भी भारतीय टेक कंपनियां वर्तमान के बदलावों के अनुरुप खुद को प्रबंधित करने के लिए ग्राहकों के साथ मिलकर काम करेंगी।
नैसकॉम ने कहा कि हाल के वर्षों में भारतीय टेक कंपनियों नें इस वीजा पर अपनी निर्भरता लगातार कम की है। साथ ही अमेरिका में H-1B प्रक्रियाओं के लिए सभी नियमों का पालन करते हुए वहां की अर्थव्यवस्था में योगदान देती रही हैं। शिक्षा जगत और स्टार्टअप्स के साथ नवाचार साझेदारी करती हैं। इन कंपनियों में कार्यरत H-1B वीजा धारक कर्मचारी किसी भी तरह से अमेरिका में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा नहीं हैं।
बड़ी कंपनियों ने जारी किए बयानइस बीच दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी अमेजानॅ के साथ ही माइक्रोसाफ्ट ने बयान जारी कर अपने कर्मचारियों से कहा है कि जिनके पास H-1B वीजा है और वह अमेरिका में हैं तो वे फिलहाल अमेरिका से बाहर नहीं जाएं। जो लोग बाहर हैं वे 21 सिंतबर की मध्यरात्रि से पहले अमेरिका लौट आएं। वित्तीय सेवा क्षेत्र की कंपनी जेपी मॉर्गन चेज ने भी अपने आव्रजन वकील के जरिए अपने सभी H-1B वीजा धारकों को अगले निर्देश तक अमेरिका में ही रहने और विदेश यात्रा से बचने की सलाह दी है।
अमेरिका में बैंक, बीमा कंपनियां, एयरलाइंस, औद्योगिक प्रतिष्ठान, स्वास्थ्य सेवा प्रदाता, निर्माता, होटल उद्योग और टेक कंपनियों में प्रवासी कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए H-1B वीजा का प्रावधान है। इसका सबसे ज्यादा लाभ टेक कपंनियां ही उठाती हैं। लिहाजा बढ़े हुए वीजा शुल्क का असर भी इनपर ही सबसे ज्यादा आने वाला है।
वीजा शुल्क बढ़ोतरी का आदेशअमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को देर शाम “विशेष गैर-प्रवासी श्रमिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध” शीर्षक वाले कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत H-1B वीजा शुल्क बढ़ाकर एक लाख डॉलर सालाना किया जा रहा है, जो कि करीब 88 लाख रूपए हो जाएगा। तीन साल की अवधि के लिए यह राशि करीब 2 करोड 64 लाख रूपए होगी। वीजा प्रोसेसिंग की अवधि के हिसाब से वर्तमान मे एचवन बी वीसा शुल्क 1700 से लेकर 4500 डॉलर के बीच है।
एच1 बी वीजा तीन साल के लिए दिया जाता है। अगले तीन साल के लिए इसे और नवीकृत किया जा सकता है। वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने शुक्रवार शाम पत्रकारों को बताया कि टेक कंपनियों से बातचीत के बाद सरकार ने यह फैसला लिया है। सभी कंपनियों ने एच1 बी आवेदन के लिए प्रति वर्ष 100,000 डॉलर के शुल्क, साथ ही वेटिंग शुल्क पर भी सहमति जताई है। हालांकि सच्चाई इससे परे है।
दोधारी तलवार पर कंपनियांअमेजन, माइक्रोसाफ्ट, गूगल और मेटा जैसी दिग्गज टेक कंपनियां अपने एचवन बी वीजा धारक कर्मचारियों को जिस तरह से संदेश भेज रहीं हैं। उससे लगता है कि सबकुछ इतना ठीक नहीं है, जितना कहा जा रहा है। कंपनियां इसलिए चिंतित हैं क्योंकि अप्रवासी पेशेवरों की नियुक्ति के लिए H-1B वीजा का आवेदन करते समय यह वीजा शुल्क नियोक्ता कंपनियों को देना होता है।
अमेरिकी कंपनी हो या वहां अपने कार्यालय खोलकर बैठी भारतीय टेक कंपनियां हों, बढ़े हुए वीजा शुल्क का बोझ उठाने से हिचकेंगी। उनकी कोशिश होगी कि वह स्थानीय स्तर पर ही कुशल पेशेवरों की तलाश करें। लेकिन यहां भी उन्हें राहत नहीं मिलेगी क्योंकि अभी तक अप्रवासी पेशेवरों के रूप में उन्हें जो सस्ता श्रम बल मिलता आया था उसकी जगह उन्हें उंचे वेतनमानों पर स्थानीय कर्मचारियों को रखना पड़ेगा। इससे उनके परिचालन खर्चे बढ़ेगें और इसका सीधा असर आय पर पड़ेगा। ऐसे में कंपनियों की हालत दोधारी तलवार पर चलने जैसी हो जाएगी।
दो खेमों में बंटा अमेरिकाट्रंप प्रशासन के फैसले के बाद बढ़े हुए वीजा शुल्क पर केवल भारत में ही चिंता नहीं है। अमेरिका भी इस मामले में दो खेमे में बंटा दिखाई दे रहा है। अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि H-1B वीजा कार्यक्रम अमेरिकी कंपनियों को प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रखने और अपने व्यवसाय को बढ़ाने में मदद करता है। इससे अमेरिका में अधिक रोजगार पैदा होते हैं। ऐसे में इसके शुल्क में बढ़ोतरी अमेरिकी अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाने की बजाए उसके लिए नुसानदेह साबित हो जाएगी।
व्यापार, आव्रजन, शिक्षा और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर सरकार की उचित भूमिका पर सार्वजनिक नीति अनुसंधान के लिए समर्पित गैर राजनीतिक अमेरिकी संस्था- नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी के कार्यकारी निदेशक स्टुअर्ट एंडरसन ने कहा कि अगर यह योजना कुशल अप्रवासी पेशेवरों को दूसरे देशों में रोजगार की तलाश में जाने को मजबूर करेगी तो इसका नुकसान अमेरिका को ही होगा।
अमेरिका को क्या नुकसानएंडरसन ने सीबीएस न्यूज को बताया है कि इसका दूसरा प्रभाव यह होगा कि इससे उन अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में और कमी आएगी, जो अमेरिका में अध्ययन करने के लिए आने में रुचि रखते हैं। अगर अमेरिका में काम के कोई अवसर नहीं रह जाएंगे तो फिर यहां पढ़ने के लिए विदेश छात्र आएंगे ही नहीं। छात्रों की संख्या में कमी का सीधा असर कंपनियों पर भी पड़ेगा।
शुल्क बढ़ोतरी का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि यह ऐसे समय में हो रहा है, जब अमेरिका में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में तेजी से काम हो रहा है। देश का सबसे बड़ा आईटी हब कैलीफोर्निया को सिलकॉन वैली के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र भारतीय आइटी पेशेवरों की बदौलत ही टिका है। ऐसे में यह कदम बेहद घातक साबित हो जाएगा। ट्रंप के करीबी रहे एलन मस्क भी वीजा में छेड़छाड़ का विरोध करते रहे हैं।
शुल्क बढ़ोतरी के समर्थन में तर्कदूसरी ओर ट्रंप और उनके समर्थक लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि H1-B वीजा कार्यक्रम कम वेतन पर काम करने के लिए तैयार हो जाने वाले विदेशी कर्मचारियों के लिए अमेरिका में घुसने का एक ऐसा जरिया बन गया जो स्थानीय लोगों की नौकरियां खा रहा है। आलोचकों का यह भी कहना है कि कुछ नियोक्ता कंपनियां H-1B वीजा के जरिए वरिष्ठ पदों पर कम अनुभव वाले लोगों को कम वेतन पर ले आती हैं। जबकि ऐसे पदों लिए अधिक कौशल की आवश्यकता होती है और ऐसे कौशल वाले स्थानीय अमेरिकी लोगों को ज्यादा वेतन देना पड़ता है। ट्रंप ने जिस कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, उसमें एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया है। इसमें कहा गया है कि कई अमेरिकी टेक कंपनियों ने अपने योग्य और कुशल अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया और उनकी जगह हजारों की संख्या में कम वेतन पर H-1B वीजा धारकों को काम पर रखा।
रिपोर्ट के अनुसार एक सॉफ्टवेयर कंपनी को वित्त वर्ष 2025 में 5,000 से अधिक H-1B कर्मचारियों के लिए मंजूरी दी गई थी। उसी समय इसने 15,000 से अधिक कर्मचारियों की छंटनी की। ऐसे ही एक अन्य आईटी फर्म को वित्त वर्ष 2025 में 1,700 H-1B कर्मचारियों के लिए मंजूरी दी गई थी, जिसने जुलाई में ओरेगन में 2,400 अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी कर दी । एक तीसरी कंपनी ने 2022 से अपने कर्मचारियों की संख्या में लगभग 27,000 अमेरिकी कर्मचारियों की कमी की, जबकि उसी वित्त वर्ष 25,000 से अधिक H-1B कर्मचारियों को नौकरी पर रखा।
नए आदेश देंगे ट्रंपब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति ट्रंप अपने श्रम सचिव को H-1B वीजा कार्यक्रम के लिए वेतन स्तर को नए सीरे से निर्धारित करने का आदेश देने वाले हैं। अमेरिकी श्रम विभाग के अनुसार, अब अमेरिकी कंपनियों को समान योग्यता वाले कर्मचारियों को आमतौर पर दिए जाने वाले वेतन या वास्तविक वेतन, जो भी अधिक होगा, उसकी पेशकश करनी होगी।
कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि ट्रंप सरकार अमेरिकी लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने की आड़ में देश में अप्रवासियों के लिए रास्ते धीरे धीरे बंद कर रही है। पहले अवैध अप्रवासियों को खदेड़ने का अभियान चलाया। अब वैध तरीके से अमेरिका में रह रहे अप्रवासियों के लिए भी ऐसे नियम काननू बनाए जा रहे हैं, जो उन्हें हतोत्साहित करने वाले हैं।
(यह लेख मधुलिका सिन्हा ने लिखा है। मधुलिका सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय से अमेरिका में रह रही हैं।)
नैसकॉम ने कहा कि हाल के वर्षों में भारतीय टेक कंपनियों नें इस वीजा पर अपनी निर्भरता लगातार कम की है। साथ ही अमेरिका में H-1B प्रक्रियाओं के लिए सभी नियमों का पालन करते हुए वहां की अर्थव्यवस्था में योगदान देती रही हैं। शिक्षा जगत और स्टार्टअप्स के साथ नवाचार साझेदारी करती हैं। इन कंपनियों में कार्यरत H-1B वीजा धारक कर्मचारी किसी भी तरह से अमेरिका में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा नहीं हैं।
बड़ी कंपनियों ने जारी किए बयानइस बीच दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी अमेजानॅ के साथ ही माइक्रोसाफ्ट ने बयान जारी कर अपने कर्मचारियों से कहा है कि जिनके पास H-1B वीजा है और वह अमेरिका में हैं तो वे फिलहाल अमेरिका से बाहर नहीं जाएं। जो लोग बाहर हैं वे 21 सिंतबर की मध्यरात्रि से पहले अमेरिका लौट आएं। वित्तीय सेवा क्षेत्र की कंपनी जेपी मॉर्गन चेज ने भी अपने आव्रजन वकील के जरिए अपने सभी H-1B वीजा धारकों को अगले निर्देश तक अमेरिका में ही रहने और विदेश यात्रा से बचने की सलाह दी है।
अमेरिका में बैंक, बीमा कंपनियां, एयरलाइंस, औद्योगिक प्रतिष्ठान, स्वास्थ्य सेवा प्रदाता, निर्माता, होटल उद्योग और टेक कंपनियों में प्रवासी कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए H-1B वीजा का प्रावधान है। इसका सबसे ज्यादा लाभ टेक कपंनियां ही उठाती हैं। लिहाजा बढ़े हुए वीजा शुल्क का असर भी इनपर ही सबसे ज्यादा आने वाला है।
वीजा शुल्क बढ़ोतरी का आदेशअमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को देर शाम “विशेष गैर-प्रवासी श्रमिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध” शीर्षक वाले कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत H-1B वीजा शुल्क बढ़ाकर एक लाख डॉलर सालाना किया जा रहा है, जो कि करीब 88 लाख रूपए हो जाएगा। तीन साल की अवधि के लिए यह राशि करीब 2 करोड 64 लाख रूपए होगी। वीजा प्रोसेसिंग की अवधि के हिसाब से वर्तमान मे एचवन बी वीसा शुल्क 1700 से लेकर 4500 डॉलर के बीच है।
एच1 बी वीजा तीन साल के लिए दिया जाता है। अगले तीन साल के लिए इसे और नवीकृत किया जा सकता है। वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने शुक्रवार शाम पत्रकारों को बताया कि टेक कंपनियों से बातचीत के बाद सरकार ने यह फैसला लिया है। सभी कंपनियों ने एच1 बी आवेदन के लिए प्रति वर्ष 100,000 डॉलर के शुल्क, साथ ही वेटिंग शुल्क पर भी सहमति जताई है। हालांकि सच्चाई इससे परे है।
दोधारी तलवार पर कंपनियांअमेजन, माइक्रोसाफ्ट, गूगल और मेटा जैसी दिग्गज टेक कंपनियां अपने एचवन बी वीजा धारक कर्मचारियों को जिस तरह से संदेश भेज रहीं हैं। उससे लगता है कि सबकुछ इतना ठीक नहीं है, जितना कहा जा रहा है। कंपनियां इसलिए चिंतित हैं क्योंकि अप्रवासी पेशेवरों की नियुक्ति के लिए H-1B वीजा का आवेदन करते समय यह वीजा शुल्क नियोक्ता कंपनियों को देना होता है।
अमेरिकी कंपनी हो या वहां अपने कार्यालय खोलकर बैठी भारतीय टेक कंपनियां हों, बढ़े हुए वीजा शुल्क का बोझ उठाने से हिचकेंगी। उनकी कोशिश होगी कि वह स्थानीय स्तर पर ही कुशल पेशेवरों की तलाश करें। लेकिन यहां भी उन्हें राहत नहीं मिलेगी क्योंकि अभी तक अप्रवासी पेशेवरों के रूप में उन्हें जो सस्ता श्रम बल मिलता आया था उसकी जगह उन्हें उंचे वेतनमानों पर स्थानीय कर्मचारियों को रखना पड़ेगा। इससे उनके परिचालन खर्चे बढ़ेगें और इसका सीधा असर आय पर पड़ेगा। ऐसे में कंपनियों की हालत दोधारी तलवार पर चलने जैसी हो जाएगी।
दो खेमों में बंटा अमेरिकाट्रंप प्रशासन के फैसले के बाद बढ़े हुए वीजा शुल्क पर केवल भारत में ही चिंता नहीं है। अमेरिका भी इस मामले में दो खेमे में बंटा दिखाई दे रहा है। अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि H-1B वीजा कार्यक्रम अमेरिकी कंपनियों को प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रखने और अपने व्यवसाय को बढ़ाने में मदद करता है। इससे अमेरिका में अधिक रोजगार पैदा होते हैं। ऐसे में इसके शुल्क में बढ़ोतरी अमेरिकी अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाने की बजाए उसके लिए नुसानदेह साबित हो जाएगी।
व्यापार, आव्रजन, शिक्षा और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर सरकार की उचित भूमिका पर सार्वजनिक नीति अनुसंधान के लिए समर्पित गैर राजनीतिक अमेरिकी संस्था- नेशनल फाउंडेशन फॉर अमेरिकन पॉलिसी के कार्यकारी निदेशक स्टुअर्ट एंडरसन ने कहा कि अगर यह योजना कुशल अप्रवासी पेशेवरों को दूसरे देशों में रोजगार की तलाश में जाने को मजबूर करेगी तो इसका नुकसान अमेरिका को ही होगा।
अमेरिका को क्या नुकसानएंडरसन ने सीबीएस न्यूज को बताया है कि इसका दूसरा प्रभाव यह होगा कि इससे उन अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या में और कमी आएगी, जो अमेरिका में अध्ययन करने के लिए आने में रुचि रखते हैं। अगर अमेरिका में काम के कोई अवसर नहीं रह जाएंगे तो फिर यहां पढ़ने के लिए विदेश छात्र आएंगे ही नहीं। छात्रों की संख्या में कमी का सीधा असर कंपनियों पर भी पड़ेगा।
शुल्क बढ़ोतरी का विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि यह ऐसे समय में हो रहा है, जब अमेरिका में आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में तेजी से काम हो रहा है। देश का सबसे बड़ा आईटी हब कैलीफोर्निया को सिलकॉन वैली के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र भारतीय आइटी पेशेवरों की बदौलत ही टिका है। ऐसे में यह कदम बेहद घातक साबित हो जाएगा। ट्रंप के करीबी रहे एलन मस्क भी वीजा में छेड़छाड़ का विरोध करते रहे हैं।
शुल्क बढ़ोतरी के समर्थन में तर्कदूसरी ओर ट्रंप और उनके समर्थक लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं कि H1-B वीजा कार्यक्रम कम वेतन पर काम करने के लिए तैयार हो जाने वाले विदेशी कर्मचारियों के लिए अमेरिका में घुसने का एक ऐसा जरिया बन गया जो स्थानीय लोगों की नौकरियां खा रहा है। आलोचकों का यह भी कहना है कि कुछ नियोक्ता कंपनियां H-1B वीजा के जरिए वरिष्ठ पदों पर कम अनुभव वाले लोगों को कम वेतन पर ले आती हैं। जबकि ऐसे पदों लिए अधिक कौशल की आवश्यकता होती है और ऐसे कौशल वाले स्थानीय अमेरिकी लोगों को ज्यादा वेतन देना पड़ता है। ट्रंप ने जिस कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, उसमें एक रिपोर्ट का हवाला दिया गया है। इसमें कहा गया है कि कई अमेरिकी टेक कंपनियों ने अपने योग्य और कुशल अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया और उनकी जगह हजारों की संख्या में कम वेतन पर H-1B वीजा धारकों को काम पर रखा।
रिपोर्ट के अनुसार एक सॉफ्टवेयर कंपनी को वित्त वर्ष 2025 में 5,000 से अधिक H-1B कर्मचारियों के लिए मंजूरी दी गई थी। उसी समय इसने 15,000 से अधिक कर्मचारियों की छंटनी की। ऐसे ही एक अन्य आईटी फर्म को वित्त वर्ष 2025 में 1,700 H-1B कर्मचारियों के लिए मंजूरी दी गई थी, जिसने जुलाई में ओरेगन में 2,400 अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी कर दी । एक तीसरी कंपनी ने 2022 से अपने कर्मचारियों की संख्या में लगभग 27,000 अमेरिकी कर्मचारियों की कमी की, जबकि उसी वित्त वर्ष 25,000 से अधिक H-1B कर्मचारियों को नौकरी पर रखा।
नए आदेश देंगे ट्रंपब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रपति ट्रंप अपने श्रम सचिव को H-1B वीजा कार्यक्रम के लिए वेतन स्तर को नए सीरे से निर्धारित करने का आदेश देने वाले हैं। अमेरिकी श्रम विभाग के अनुसार, अब अमेरिकी कंपनियों को समान योग्यता वाले कर्मचारियों को आमतौर पर दिए जाने वाले वेतन या वास्तविक वेतन, जो भी अधिक होगा, उसकी पेशकश करनी होगी।
कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि ट्रंप सरकार अमेरिकी लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने की आड़ में देश में अप्रवासियों के लिए रास्ते धीरे धीरे बंद कर रही है। पहले अवैध अप्रवासियों को खदेड़ने का अभियान चलाया। अब वैध तरीके से अमेरिका में रह रहे अप्रवासियों के लिए भी ऐसे नियम काननू बनाए जा रहे हैं, जो उन्हें हतोत्साहित करने वाले हैं।
(यह लेख मधुलिका सिन्हा ने लिखा है। मधुलिका सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार हैं और लंबे समय से अमेरिका में रह रही हैं।)
You may also like
भारतीय फुटबॉल को जूनियर स्तर पर मजबूत करने की जरुरत : बाइचुंग भूटिया
महाराष्ट्र : भारत-पाक मैच का फायदा उठाकर चोरों ने 5 लाख कैश उड़ाए, पुलिस ने दबोचा
प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र से मिल रही सस्ती दवाओं से आमजन को बड़ी राहत
अश्विनी वैष्णव ने बुलेट ट्रेन सुरंग का किया उद्घाटन, कहा- 'पहला चरण 2027 में होगा शुरू'
भारत आने वाले 25 प्रतिशत चिकित्सा पर्यटक तमिलनाडु आते हैं, यह गर्व की बात : स्वास्थ्य मंत्री एम. सुब्रमण्यम