पटना: बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए मतदाता सूची को अपडेट करने का काम चल रहा है। इसे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) कहा जा रहा है। लगभग ढाई महीने से यह काम चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एक सितंबर के बाद दावों और आपत्तियों की अवधि बढ़ाने से इनकार कर दिया था। इसके बाद बिहार के लिए मतदाता सूची का मसौदा तैयार हो गया है। हालांकि, नागरिक अभी भी हर निर्वाचन क्षेत्र में नामांकन की अंतिम तिथि तक आवेदन कर सकते हैं। विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया 22 नवंबर तक पूरी होनी है। अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को आ जाएगी। चुनाव का कार्यक्रम कुछ ही हफ्तों में आने की उम्मीद है। इसके बाद प्रचार शुरू हो जाएगा।
1.6 लाख बीएलओ ने सिर्फ 150 मामले दर्ज कराए
राज्य के 65 लाख से अधिक नामों को मतदाता सूची से हटाने को लेकर भारी हंगामा होता रहा है, लेकिन इस संख्या के मुकाबले दावे और आपत्तियां पेश नहीं हुईं। मतदाताओं ने लगभग 2.5 लाख मुद्दे उठाए। इनमें ज्यादातर नाम हटाने से जुड़े थे। राजनीतिक दलों ने 1.6 लाख बूथ-स्तरीय एजेंट (BLA) तैनात किए थे। लेकिन उन्होंने केवल 150 मामले ही दर्ज कराए। अगर इससे यह पता चलता है कि मसौदा सूची को जमीनी स्तर पर राजनीतिक समर्थन मिला था और इसमें ज्यादा सुधार की जरूरत नहीं थी, तो चुनाव आयोग (ECI) बधाई का पात्र है। लेकिन अगर यह राजनीतिक उदासीनता को दर्शाता है, तो यह देश की चुनावी प्रणाली के लिए अच्छा संकेत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस निष्क्रियता पर हैरानी जताई। कोर्ट ने नागरिकों को दावे और आपत्तियां दर्ज करने में मदद करने के लिए पैरा-लीगल स्वयंसेवकों को बुलाने की बात कही। पार्टियों के लिए चुनाव के नतीजे मायने रखते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद एसआईआर की शुरुआत की तुलना में अब चीजें आसान हो गई हैं। एक अगस्त की मसौदा सूची से गायब नागरिक अब आधार कार्ड की कॉपी के साथ दावा कर सकते हैं। जिन लोगों के नाम हटा दिए गए हैं, वे जिलों की वेबसाइटों पर मसौदा सूची में अपने नाम देख सकते हैं। साथ ही नाम हटाने के कारणों की जानकारी भी ले सकते हैं।
मामलों की जांच 25 सितंबर तक
अब बिहार के 243 निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ERO) पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। उनकी मदद के लिए 3,000 एईआरओ, 90,000 से अधिक बूथ-स्तरीय अधिकारी (BLO) और लाखों स्वयंसेवक हैं। ईआरओ 25 सितंबर तक हर मामले की जांच करेंगे और दस्तावेजों का सत्यापन करेंगे। इसके बाद अंतिम सूची प्रकाशित की जाएगी। जिला मजिस्ट्रेट और राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) के पास अपील करने का विकल्प खुला रहेगा।
ज्यादा आपत्तियां नहीं आने के कारण मसौदा सूची से हटाए गए 65 लाख मतदाताओं में से ज्यादातर के नाम शायद सूची में वापस नहीं आएंगे। इन लोगों के नाम मृत्यु, पलायन, अनुपस्थिति या डुप्लिकेसी के कारण हटाए गए थे। 7.24 करोड़ मतदाताओं की मसौदा सूची में शायद ही कोई बदलाव हो। लगभग 99.5% लोगों ने अपने दस्तावेज जमा कर दिए हैं। लगभग 17 लाख नए मतदाताओं ने नामांकन के लिए आवेदन किया है। ये वे लोग हैं जो हाल ही में 18 साल के हुए हैं। यह चुनाव आयोग के प्रयासों का नतीजा है। आयोग ने इस बड़े काम के लिए अपने जमीनी कर्मचारियों को लगाया है। साथ ही एक दशक के बाद चुनाव अधिकारियों का वेतन भी बढ़ाया है।
क्या वोटर लिस्ट का पूरी तरह "शुद्धिकरण" संभव?
चुनाव आयोग को संवैधानिक अधिकार मिले हुए हैं। उसने एसआईआर को "शुद्धिकरण" अभ्यास बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे करने की उसकी क्षमता का समर्थन किया है। लेकिन वास्तव में यह कितना प्रभावी होता है, यह देखने वाली बात होगी।
दुनिया की सबसे बड़ी मतदाता सूची (जो अब एक अरब की ओर बढ़ रही है) में सब कुछ सही होना मुश्किल है। हालांकि वर्तमान एसआईआर से वार्षिक संशोधन में और बारीकी से जांच करने में मदद मिल सकती है। इससे पता चलता है कि पूरे देश में एक और गहन संशोधन की जरूरत है। बिहार और अन्य जगहों पर वास्तविक शिकायतों को आयोग के स्थानीय कार्यालयों या अदालतों में हल किया जा सकता है। स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर जो विवाद था, वह अब खत्म हो गया है। बहस और विरोध से कुछ सुधार और स्पष्टीकरण हुए हैं। अब आगे बढ़ने का समय है।
1.6 लाख बीएलओ ने सिर्फ 150 मामले दर्ज कराए
राज्य के 65 लाख से अधिक नामों को मतदाता सूची से हटाने को लेकर भारी हंगामा होता रहा है, लेकिन इस संख्या के मुकाबले दावे और आपत्तियां पेश नहीं हुईं। मतदाताओं ने लगभग 2.5 लाख मुद्दे उठाए। इनमें ज्यादातर नाम हटाने से जुड़े थे। राजनीतिक दलों ने 1.6 लाख बूथ-स्तरीय एजेंट (BLA) तैनात किए थे। लेकिन उन्होंने केवल 150 मामले ही दर्ज कराए। अगर इससे यह पता चलता है कि मसौदा सूची को जमीनी स्तर पर राजनीतिक समर्थन मिला था और इसमें ज्यादा सुधार की जरूरत नहीं थी, तो चुनाव आयोग (ECI) बधाई का पात्र है। लेकिन अगर यह राजनीतिक उदासीनता को दर्शाता है, तो यह देश की चुनावी प्रणाली के लिए अच्छा संकेत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इस निष्क्रियता पर हैरानी जताई। कोर्ट ने नागरिकों को दावे और आपत्तियां दर्ज करने में मदद करने के लिए पैरा-लीगल स्वयंसेवकों को बुलाने की बात कही। पार्टियों के लिए चुनाव के नतीजे मायने रखते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद एसआईआर की शुरुआत की तुलना में अब चीजें आसान हो गई हैं। एक अगस्त की मसौदा सूची से गायब नागरिक अब आधार कार्ड की कॉपी के साथ दावा कर सकते हैं। जिन लोगों के नाम हटा दिए गए हैं, वे जिलों की वेबसाइटों पर मसौदा सूची में अपने नाम देख सकते हैं। साथ ही नाम हटाने के कारणों की जानकारी भी ले सकते हैं।
मामलों की जांच 25 सितंबर तक
अब बिहार के 243 निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों (ERO) पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। उनकी मदद के लिए 3,000 एईआरओ, 90,000 से अधिक बूथ-स्तरीय अधिकारी (BLO) और लाखों स्वयंसेवक हैं। ईआरओ 25 सितंबर तक हर मामले की जांच करेंगे और दस्तावेजों का सत्यापन करेंगे। इसके बाद अंतिम सूची प्रकाशित की जाएगी। जिला मजिस्ट्रेट और राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) के पास अपील करने का विकल्प खुला रहेगा।
ज्यादा आपत्तियां नहीं आने के कारण मसौदा सूची से हटाए गए 65 लाख मतदाताओं में से ज्यादातर के नाम शायद सूची में वापस नहीं आएंगे। इन लोगों के नाम मृत्यु, पलायन, अनुपस्थिति या डुप्लिकेसी के कारण हटाए गए थे। 7.24 करोड़ मतदाताओं की मसौदा सूची में शायद ही कोई बदलाव हो। लगभग 99.5% लोगों ने अपने दस्तावेज जमा कर दिए हैं। लगभग 17 लाख नए मतदाताओं ने नामांकन के लिए आवेदन किया है। ये वे लोग हैं जो हाल ही में 18 साल के हुए हैं। यह चुनाव आयोग के प्रयासों का नतीजा है। आयोग ने इस बड़े काम के लिए अपने जमीनी कर्मचारियों को लगाया है। साथ ही एक दशक के बाद चुनाव अधिकारियों का वेतन भी बढ़ाया है।
क्या वोटर लिस्ट का पूरी तरह "शुद्धिकरण" संभव?
चुनाव आयोग को संवैधानिक अधिकार मिले हुए हैं। उसने एसआईआर को "शुद्धिकरण" अभ्यास बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे करने की उसकी क्षमता का समर्थन किया है। लेकिन वास्तव में यह कितना प्रभावी होता है, यह देखने वाली बात होगी।
दुनिया की सबसे बड़ी मतदाता सूची (जो अब एक अरब की ओर बढ़ रही है) में सब कुछ सही होना मुश्किल है। हालांकि वर्तमान एसआईआर से वार्षिक संशोधन में और बारीकी से जांच करने में मदद मिल सकती है। इससे पता चलता है कि पूरे देश में एक और गहन संशोधन की जरूरत है। बिहार और अन्य जगहों पर वास्तविक शिकायतों को आयोग के स्थानीय कार्यालयों या अदालतों में हल किया जा सकता है। स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर जो विवाद था, वह अब खत्म हो गया है। बहस और विरोध से कुछ सुधार और स्पष्टीकरण हुए हैं। अब आगे बढ़ने का समय है।
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