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1700 करोड़... विदेश पैसा भेजने वालों को चुपचाप हो रहा भारी नुकसान, जानिए क्या है पूरा खेल

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नई दिल्ली: अगर आपके बच्चे विदेश में पढ़ रहे हैं, तो ये खबर आपके लिए है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में बच्चों की पढ़ाई के लिए विदेश पैसे भेजने वाले परिवारों ने बैंक फीस और करेंसी मार्कअप में लगभग 1,700 करोड़ रुपये ($200 मिलियन) खर्च कर दिए। यह रिपोर्ट रेडसीर स्ट्रेटेजी कंसल्टेंट्स और वाइज नाम की एक कंपनी ने मिलकर बनाई है। वाइज, एक ग्लोबल क्रॉस-बॉर्डर पेमेंट कंपनी है। मतलब ये कंपनी एक देश से दूसरे देश में पैसे भेजने का काम करती है।



रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत से हर साल पढ़ाई के लिए लगभग 85,000–93,500 करोड़ रुपये ($10–11 बिलियन) विदेश भेजे जाते हैं। इसमें से 95% से ज्यादा पैसा पुराने तरीके से यानी बैंकों के ज़रिए भेजा जाता है। बैंक इस पर 3–3.5% तक एक्सचेंज रेट मार्कअप लगाते हैं। यानी बैंक पैसे बदलने के लिए ज्यादा चार्ज करते हैं। इतना ही नहीं, पैसे भेजने में दो से पांच दिन भी लग जाते हैं।





कैसे हो रहा नुकसान

अगर कोई परिवार हर साल 30 लाख रुपये विदेश भेजता है, तो उसे लगभग 75,000 रुपये तक का नुकसान हो सकता है। ये नुकसान छिपे हुए चार्ज की वजह से होता है, जिनके बारे में लोगों को पता नहीं चलता। वर्ल्ड बैंक ने भी क्रॉस बॉर्डर रेमिटेंस की लागत के बारे में ऐसी ही बातें कही हैं। क्रॉस बॉर्डर रेमिटेंस का मतलब है, एक देश से दूसरे देश में पैसे भेजना। ये लागत उन प्रवासी मजदूरों से थोड़ी कम है, जो अमीर देशों में काम करते हैं और अपने घर पैसे भेजते हैं। वर्ल्ड बैंक के अनुसार $200 भेजने की ग्लोबल एवरेज कॉस्ट 6.4% है जो पिछले साल 6.2% थी।



डिजिटल तरीके से पैसे भेजना सस्ता है। इसमें लगभग 5% फीस लगती है, जबकि नॉन-डिजिटल तरीके से 7% लगती है। लेकिन, यूनाइटेड नेशंस (UN) का एक लक्ष्य है कि 2030 तक रेमिटेंस की कॉस्ट को 3% तक लाया जाए। इससे प्रवासी मजदूरों और उनके परिवारों को ज्यादा फायदा होगा। वाइज कंपनी ने इस स्टडी को स्पॉन्सर किया है। यह कंपनी इंटरनेशनल मनी ट्रांसफर का काम करती है और उसका मुकाबला बैंकों से है। वाइज का कहना है कि इस कवायद का मकसद लोगों का ध्यान इन कमियों की ओर खींचना है।





बैंक कितना करते हैं चार्ज

उसका कहना है कि बैंक पैसे भेजने के लिए कई अलग-अलग बैंकों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे ज्यादा चार्ज लगता है। लेकिन वाइज ऐसा नहीं करती। वाइज के पास दोनों देशों में लोकल अकाउंट होते हैं। जब कोई व्यक्ति पैसे भेजता है, तो वाइज उस देश के अकाउंट से ही रेसिपिएंट को पैसे दे देती है। इससे पैसे जल्दी पहुंच जाते हैं और एक्सचेंज रेट मार्कअप भी नहीं लगता।



पुराने तरीके से बैंक ट्रांसफर करने में कई तरह के चार्ज लगते हैं। भेजने वाले बैंक 2–6% तक एक्सचेंज रेट मार्कअप लगाते हैं। बीच वाले बैंक $10–30 तक काट लेते हैं। SWIFT नेटवर्क फीस भी लगती है। और तो और, पैसे पाने वाले बैंक भी $16 तक चार्ज कर सकते हैं। इन सब चार्ज के साथ छिपे हुए कंप्लायंस कॉस्ट भी जुड़ जाते हैं, जिससे टोटल रेमिटेंस कॉस्ट 5–7% तक पहुंच जाती है। और ज्यादातर लोगों को इसके बारे में पता भी नहीं चलता।





एजुकेशन पर खर्च

वाइज की साउथ एशिया एक्सपेंशन लीड, तानिया भारद्वाज ने कहा, "पैसे भेजने में जो छिपे हुए चार्ज लगते हैं, उससे लोगों को बहुत नुकसान होता है। यह खतरे की घंटी है और लोगों को इसके बारे में जागरूक होना चाहिए।" वाइज ने 2021 में भारत में काम करना शुरू किया था। तब से एजुकेशन से जुड़े पेमेंट भारत से होने वाले टोटल पेमेंट का 75% हैं।



स्टडी के अनुसार, भारत अब अमेरिका में सबसे ज्यादा इंटरनेशनल स्टूडेंट्स भेजने वाला देश बन गया है। 2024 में भारत ने चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। अमेरिका, यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी में इंटरनेशनल स्टूडेंट्स में 30–35% भारतीय हैं। दस साल पहले यह आंकड़ा सिर्फ 11% था। एक अनुमान के मुताबिक 2030 तक भारतीय परिवारों द्वारा विदेश में एजुकेशन पर किया जाने वाला खर्च दोगुना हो जाएगा। इसलिए, पैसे भेजने की कॉस्ट भी और ज्यादा मायने रखती है।

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