नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई बड़े फैसले लिए हैं। वहीं आम लोग पाकिस्तान से बदला लेने की मांग कर रहे हैं। पहलगाम के बाद युद्ध होगा या नहीं ये तो देखना होगा, लेकिन आज का दिन इतिहास में दर्ज है। आज ही के दिन 26 साल पहले यानी 3 मई 1999 को भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐसी जंग शुरू हुई, जिसने दोनों देशों के इतिहास में एक गहरी छाप छोड़ी। यह था कारगिल युद्ध, जो जम्मू-कश्मीर के कारगिल जिले में लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) के पास लड़ा गया। इस युद्ध को भारत में ऑपरेशन विजय के नाम से जाना जाता है। यह युद्ध भारत की सैन्य शक्ति, एकता और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की जीत का प्रतीक भी है कश्मीर को लेकर कई बार हो चुकी है जंगभारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर विवाद 1947 में बंटवारे के समय से चला आ रहा है। दोनों देश कश्मीर पर अपना दावा करते हैं और इसी वजह से 1947-48, 1965 और 1971 में युद्ध हो चुके थे। 1972 में शिमला समझौते के बाद LoC को दोनों देशों के बीच कश्मीर में एक अस्थायी सीमा के रूप में मान्यता दी गई। इसके बावजूद, सीमा पर तनाव और छोटी-मोटी झड़पें आम थीं।1998 में भारत और पाकिस्तान, दोनों ने परमाणु परीक्षण किए, जिससे दक्षिण एशिया में तनाव और बढ़ गया। इसके बाद फरवरी 1999 में दोनों देशों ने लाहौर घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसमें शांति और कश्मीर मुद्दे को बातचीत से सुलझाने की बात कही गई। लेकिन, इस समझौते के कुछ ही महीनों बाद पाकिस्तान ने LoC पार करके कारगिल में घुसपैठ शुरू कर दी। कैसे शुरू हुआ कारगिल युद्ध?कारगिल युद्ध की शुरुआत का आधार 1998-99 की सर्दियों में तैयार किया गया था। हर साल सर्दियों में, कारगिल की ऊंची चोटियों पर बर्फबारी और कठिन मौसम के कारण भारतीय और पाकिस्तानी सेनाएं अपनी-अपनी चौकियों को खाली कर देती थीं। पाकिस्तानी सेना ने इस मौके का फायदा उठाया। फरवरी 1999 में, पाकिस्तान की नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री और स्पेशल सर्विस ग्रुप के सैनिकों ने, कथित तौर पर कश्मीरी आतंकवादियों के भेष में, LoC पार करके भारतीय क्षेत्र में 132 महत्वपूर्ण चोटियों और चौकियों पर कब्जा कर लिया।3 मई 1999 को स्थानीय चरवाहों ने भारतीय सेना को इन घुसपैठियों की मौजूदगी की जानकारी दी। शुरुआत में इन्हें कश्मीरी आतंकवादी समझा गया, लेकिन जल्द ही यह साफ हो गया कि यह पाकिस्तानी सेना की एक सुनियोजित सैन्य कार्रवाई थी, जिसे ऑपरेशन बद्र नाम दिया गया। इस ऑपरेशन का मकसद था- श्रीनगर-लेह राजमार्ग को काटना, जो भारतीय सेना के लिए सियाचिन ग्लेशियर तक आपूर्ति का मुख्य रास्ता था, कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उछालना और भारतीय सेना को कमजोर करना और LoC को बदलने की कोशिश करना।पाकिस्तान ने शुरू में इस घुसपैठ को कश्मीरी आतंकवादियों का काम बताया, लेकिन बाद में पकड़े गए दस्तावेजों और सैनिकों के बयानों से साफ हुआ कि यह पाकिस्तानी सेना की कार्रवाई थी। बेहद मुश्किल थी ये जंगकारगिल युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्रों में से एक था, जहां लड़ाई 16,500 फीट (5,000 मीटर) से अधिक ऊंचाई पर हुई। इस इलाके में ऑक्सीजन की कमी, माइनस 10 डिग्री से नीचे का तापमान और खड़ी चट्टानें सैनिकों के लिए बड़ी चुनौती थीं। पाकिस्तानी सैनिकों ने ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया था, जिससे उन्हें भारतीय सैनिकों पर गोलीबारी में रणनीतिक लाभ मिल रहा था।भारतीय सेना को इन चोटियों को वापस लेने के लिए खड़ी चढ़ाई करनी पड़ती थी, जहां दुश्मन ऊपर से हमला करता था। इसके अलावा, अपर्याप्त खुफिया जानकारी, शुरुआती कमजोर तैयारी और हथियारों की कमी ने भारतीय सेना के सामने मुश्किलें खड़ी कीं। फिर भी भारतीय सैनिकों का हौसला और देशभक्ति इस युद्ध में उनकी सबसे बड़ी ताकत बनी। ऑपरेशन विजय और ऑपरेशन सफेद सागरघुसपैठ की खबर मिलते ही भारत ने ऑपरेशन विजय शुरू किया, जिसका मकसद था घुसपैठियों को हटाना और LoC को बहाल करना। भारतीय सेना ने पैदल सेना, तोपखाने और इंजीनियरिंग इकाइयों को एक साथ लगाया। इसके साथ ही, भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन सफेद सागर के तहत हवाई हमले शुरू किए। मिग-21, मिग-27, मिराज 2000 और हेलिकॉप्टर गनशिप का इस्तेमाल किया गया। वायुसेना ने पाकिस्तानी ठिकानों पर सटीक हमले किए, हालांकि इस दौरान दो भारतीय लड़ाकू विमान और एक हेलिकॉप्टर भी खो गए। ये लड़ाई थी बेहद खासजून 1999 में भारतीय सेना ने टोलोलिंग चोटी को वापस लिया, जो युद्ध का एक टर्निंग पॉइंट था। इसके बाद 4 जुलाई 1999 को भारतीय सैनिकों ने भारी गोलीबारी के बीच टाइगर हिल पर कब्जा किया। वहीं पॉइंट 4875 चोटी को वापस लेने में कैप्टन विक्रम बत्रा जैसे सैनिकों ने अदम्य साहस दिखाया। इन लड़ाइयों में भारतीय सैनिकों ने असाधारण वीरता दिखाई। कैप्टन मनोज पांडे, कैप्टन विक्रम बत्रा, सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव और राइफलमैन संजय कुमार को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। काम आई भारत की कूटनीतिपाकिस्तान ने इस युद्ध को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की कोशिश की, लेकिन उसे वैश्विक समर्थन नहीं मिला। अमेरिका ने साफ कर दिया कि पाकिस्तान को अपनी सेना LoC के पीछे हटानी होगी। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 4 जुलाई 1999 को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ वाशिंगटन समझौते में यह शर्त रखी। चीन ने भी तटस्थ रुख अपनाया और दोनों देशों को शांतिपूर्ण समाधान की सलाह दी। पाकिस्तान की इस हरकत की वजह से उसे वैश्विक स्तर पर अलग-थलग होना पड़ा। भारत ने कूटनीतिक और सैन्य दबाव बनाए रखा, जिसके चलते पाकिस्तान को पीछे हटना पड़ा। जब पाकिस्तान ने डाले हथियार11 जुलाई 1999 से पाकिस्तानी सेना ने पीछे हटना शुरू किया। 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने आखिरी चोटी को भी मुक्त कर लिया, और युद्ध आधिकारिक तौर पर खत्म हुआ। इस दिन को भारत में कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस युद्ध में भारत के लगभग 527 सैनिक शहीद हुए, और 1,363 घायल हुए। वहीं पाकिस्तान के करीब 4,000 सैनिक मारे गए। नवाज शरीफ ने इस बात को बाद में स्वीकार किया।
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