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चुनौतियां नई, संकल्प वही

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आजादी की 79वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लाल किले से दिया गया भाषण अगर याद रखे जाने लायक कहा जाएगा तो सिर्फ इसलिए नहीं कि यह उनका अब तक का सबसे लंबा भाषण रहा या लाल किले के प्राचीर से उन्होंने लगातार बारहवीं बार राष्ट्र को संबोधित किया, जिसका मौका पंडित जवाहरलाल नेहरू के अलावा किसी और प्रधानमंत्री को नहीं मिला। जिन हालात में और जिन चुनौतियों के बीच पीएम मोदी ने राष्ट्र को संबोधित किया, वे भी इस भाषण को अहम बना रहे थे।



मेक इन इंडिया पर जोर: आज अमेरिका टैरिफ वॉर के जरिये अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश कर रहा है, जबकि चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स को हथियार बनाया हुआ है। इन सबके बीच भारत को तरक्की जारी रखने के लिए रास्ता तलाशना ही होगा। स्वाभाविक ही प्रधानमंत्री ने ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पर खासा जोर दिया। उन्होंने क्रिटिकल अर्थ मिनरल्स, तेल और गैस, सेमीकंडक्टर से लेकर हथियारों तक में आत्मनिर्भरता की बात की। दुनिया जिस तरह से बदल रही है, उसमें यह जरूरी भी है कि दूसरों पर निर्भरता कम करने पर ध्यान दिया जाए।



लक्ष्य पाना संभव: अभी देश की GDP में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान केवल 12% है और ग्लोबल सप्लाई में केवल 2.8%। इसकी तुलना में चीन दुनिया के लिए 28.8% सामान बना रहा है। इस साल अप्रैल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि सरकार अगले दो दशकों में मैन्युफैक्चरिंग को GDP के 23% के बराबर करना चाहती है। सरकार ने जो लक्ष्य तय किया है, वह नामुमकिन बिल्कुल नहीं है।



गुणवत्ता की कद्र: ऑटो इक्विपमेंट, इलेक्ट्रॉनिक्स, खासतौर पर आईफोन का उदाहरण बताता है कि भारत में वैश्विक जरूरतों को पूरा करने की क्षमता है। एपल करीब 20% आईफोन अब भारत में बना रही है, जबकि कभी चीन इसका केंद्र हुआ करता था। हालांकि पीएम मोदी ने ठीक ही ध्यान दिलाया कि दुनिया गुणवत्ता की कद्र करती है और अगर ग्लोबल मार्केट में भारत की छवि को चमकाना है तो हाई क्वॉलिटी प्रॉडक्ट्स बनाने होंगे।



चुनौतियों पर नजर: अपने लक्ष्यों को स्पष्ट करते हुए पीएम मोदी चुनौतियों की ओर संकेत करना भी नहीं भूले। उन्होंने न केवल किसानों, पशुपालकों और मछुआरों के हितों की बात की बल्कि सिंधु जल समझौते को मौजूदा स्वरूप में स्वीकार न करने की दो टूक घोषणा भी कर दी। स्पष्ट है कि भारत किसी भी सूरत में अवांछित दबाव को स्वीकार नहीं कर सकता। लेकिन इसे लेकर भी कोई भ्रम नहीं होना चाहिए कि भारत की आत्मनिर्भरता का मतलब बाकी दुनिया से कटना नहीं है। परस्पर सम्मान और सहयोग के आधार पर तालमेल के साथ आगे बढ़ते हुए ही भारत अपनी मंजिल तय करेगा।

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