नई दिल्ली: इस साल भारत में सरसों (रेपसीड) की बुवाई रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने की उम्मीद है। इसकी वजह चीन की ओर से सरसों की खली की जबरदस्त खरीद और अच्छी बारिश है। सरसों की खली एक बाय-प्रोडक्ट है जो सरसों के बीजों से तेल निकालने के बाद बचता है। यह कृषि और पशुपालन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण उत्पाद है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक है। सरसों के उत्पादन में इस बढ़ोतरी से वह महंगे विदेशी तेलों की खरीद को कम कर पाएगा। किसानों को पिछले साल सरसों की फसल से अच्छा मुनाफा हुआ था। इसलिए वे इस साल और भी ज्यादा बुवाई कर रहे हैं।
जयपुर के एक बड़े व्यापारी अनिल छतर ने बताया कि इस साल सरसों की बुवाई का रकबा 7% से 8% तक बढ़ने की उम्मीद है। भारतीय किसान आमतौर पर अक्टूबर और नवंबर में रेपसीड की बुवाई करते हैं। इस साल अब तक 41.7 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी है, जो पिछले साल इसी समय के मुकाबले 13.5% ज्यादा है। पिछले साल देश में 89.3 लाख हेक्टेयर में रेपसीड की बुवाई हुई थी। यह पिछले पांच साल के औसत 79 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है।
चीन से जबरदस्त है मांग
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बीवी मेहता ने कहा कि इस साल देश में रेपसीड तेल की मांग अच्छी है। वहीं, चीन से रेपसीड मील (सरसों की खली) की निर्यात मांग बहुत मजबूत है। चीन ने मार्च में कनाडा से रेपसीड मील और तेल के आयात पर 100% रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया था। कनाडा उसका सबसे बड़ा सप्लायर था। इसके बाद चीन ने भारत से रेपसीड मील की खरीद तेजी से शुरू कर दी। एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में चीन ने भारत से रिकॉर्ड 488,168 टन रेपसीड मील का आयात किया। वहीं, पूरे 2024-25 वित्त वर्ष में यह आंकड़ा सिर्फ 60,759 टन था।
छतर ने बताया कि खली और तेल दोनों की मजबूत मांग के कारण रेपसीड की कीमतें पिछले साल की फसल के लिए तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,950 रुपये प्रति 100 किलोग्राम से ऊपर बनी रहीं। भारत ने नए सीजन के लिए रेपसीड का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4.2% बढ़ाकर 6,200 रुपये कर दिया है।
एक ग्लोबल ट्रेड हाउस के मुंबई स्थित डीलर ने कहा, 'रेपसीड में सोयाबीन से कहीं ज्यादा तेल होता है। अगर उत्पादन बुवाई के हिसाब से बढ़ा तो भारत के खाद्य तेल आयात में बढ़ोतरी को धीमा करने में मदद मिलेगी।' भारत अपनी लगभग एक तिहाई खाना पकाने के तेल की जरूरतें मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्राजील, अर्जेंटीना, यूक्रेन और रूस से पाम तेल, सोयाबीन तेल और सूरजमुखी तेल के आयात से पूरी करता है।
किसानों को किया जा रहा प्रोत्साहित
खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों और आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए भारत सरकार किसानों को तिलहन फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है। भारत में सरसों महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। इसकी बुवाई रबी (सर्दियों) के मौसम में की जाती है। इस साल अच्छी बारिश और जमीन में पर्याप्त नमी होने से किसानों को सरसों की खेती के लिए अनुकूल माहौल मिला है।
चीन की ओर से खली की बढ़ती मांग भारत के किसानों के लिए बड़ा अवसर लेकर आई है। सरसों की खली का इस्तेमाल पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा पशुधन उत्पादक है। उसे अपने पशुओं के लिए प्रोटीन युक्त चारे की भारी जरूरत रहती है। भारत से रेपसीड मील का निर्यात बढ़ने से किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम मिल रहा है। इससे वे सरसों की खेती के प्रति और भी उत्साहित हो रहे हैं।
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि सरसों तेल सोयाबीन तेल की तुलना में स्वास्थ्य के लिए ज्यादा फायदेमंद माना जाता है। इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड की मात्रा अधिक होती है। इसलिए, घरेलू बाजार में भी सरसों तेल की मांग बढ़ रही है। किसानों के लिए यह दोहरा लाभ है।
जयपुर के एक बड़े व्यापारी अनिल छतर ने बताया कि इस साल सरसों की बुवाई का रकबा 7% से 8% तक बढ़ने की उम्मीद है। भारतीय किसान आमतौर पर अक्टूबर और नवंबर में रेपसीड की बुवाई करते हैं। इस साल अब तक 41.7 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी है, जो पिछले साल इसी समय के मुकाबले 13.5% ज्यादा है। पिछले साल देश में 89.3 लाख हेक्टेयर में रेपसीड की बुवाई हुई थी। यह पिछले पांच साल के औसत 79 लाख हेक्टेयर से ज्यादा है।
चीन से जबरदस्त है मांग
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बीवी मेहता ने कहा कि इस साल देश में रेपसीड तेल की मांग अच्छी है। वहीं, चीन से रेपसीड मील (सरसों की खली) की निर्यात मांग बहुत मजबूत है। चीन ने मार्च में कनाडा से रेपसीड मील और तेल के आयात पर 100% रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया था। कनाडा उसका सबसे बड़ा सप्लायर था। इसके बाद चीन ने भारत से रेपसीड मील की खरीद तेजी से शुरू कर दी। एसोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में चीन ने भारत से रिकॉर्ड 488,168 टन रेपसीड मील का आयात किया। वहीं, पूरे 2024-25 वित्त वर्ष में यह आंकड़ा सिर्फ 60,759 टन था।
छतर ने बताया कि खली और तेल दोनों की मजबूत मांग के कारण रेपसीड की कीमतें पिछले साल की फसल के लिए तय न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 5,950 रुपये प्रति 100 किलोग्राम से ऊपर बनी रहीं। भारत ने नए सीजन के लिए रेपसीड का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4.2% बढ़ाकर 6,200 रुपये कर दिया है।
एक ग्लोबल ट्रेड हाउस के मुंबई स्थित डीलर ने कहा, 'रेपसीड में सोयाबीन से कहीं ज्यादा तेल होता है। अगर उत्पादन बुवाई के हिसाब से बढ़ा तो भारत के खाद्य तेल आयात में बढ़ोतरी को धीमा करने में मदद मिलेगी।' भारत अपनी लगभग एक तिहाई खाना पकाने के तेल की जरूरतें मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्राजील, अर्जेंटीना, यूक्रेन और रूस से पाम तेल, सोयाबीन तेल और सूरजमुखी तेल के आयात से पूरी करता है।
किसानों को किया जा रहा प्रोत्साहित
खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों और आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए भारत सरकार किसानों को तिलहन फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है। भारत में सरसों महत्वपूर्ण तिलहन फसल है। इसकी बुवाई रबी (सर्दियों) के मौसम में की जाती है। इस साल अच्छी बारिश और जमीन में पर्याप्त नमी होने से किसानों को सरसों की खेती के लिए अनुकूल माहौल मिला है।
चीन की ओर से खली की बढ़ती मांग भारत के किसानों के लिए बड़ा अवसर लेकर आई है। सरसों की खली का इस्तेमाल पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा पशुधन उत्पादक है। उसे अपने पशुओं के लिए प्रोटीन युक्त चारे की भारी जरूरत रहती है। भारत से रेपसीड मील का निर्यात बढ़ने से किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम मिल रहा है। इससे वे सरसों की खेती के प्रति और भी उत्साहित हो रहे हैं।
यह भी ध्यान देने वाली बात है कि सरसों तेल सोयाबीन तेल की तुलना में स्वास्थ्य के लिए ज्यादा फायदेमंद माना जाता है। इसमें ओमेगा-3 फैटी एसिड की मात्रा अधिक होती है। इसलिए, घरेलू बाजार में भी सरसों तेल की मांग बढ़ रही है। किसानों के लिए यह दोहरा लाभ है।
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