नई दिल्ली: दिग्गज अर्थशास्त्री संजीव सान्याल मानते हैं कि भारत की बढ़ती ताकत ने दुनिया की महाशक्तियों की बेचैनी बढ़ा दी है। हालांकि, भारत को अपनी बढ़ती ताकत पर शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य के मुताबिक, भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। दशक के अंत तक दोनों पैमानों पर तीसरे स्थान पर होगा। उसका आर्थिक प्रभाव अब दुनिया के कई तय मापदंडों को बदलने की क्षमता रखता है। यह बढ़ती ताकत स्वाभाविक रूप से दूसरों को असहज करेगी। इसमें पारंपरिक सहयोगी भी शामिल हैं। जैसे एक व्यक्ति के सफल होने पर उसके दोस्त और परिवार भी असहज हो जाते हैं। वैसे ही देशों के साथ भी होता है। सान्याल ने वैश्विक असहजता के कारण अपनी रफ्तार धीमी करने के खिलाफ चेतावनी दी। इसे हारने वालों का नजरिया बताया। उन्होंने कहा कि भारत ने लंबे समय तक अपनी क्षमता से कम प्रदर्शन किया है। अब अपनी क्षमता के अनुसार प्रदर्शन करने पर दूसरों की असहजता को सहन करना होगा।
सान्याल ने अमेरिका के साथ हालिया टैरिफ टेंशन का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि यह भारत के बढ़ते प्रभाव की स्पष्ट मिसाल है। यह मुद्दा भारत ने नहीं उठाया है। न ही भारत इसे बढ़ाना चाहता है। भारत का नजरिया शांत और दृढ़ रहा है। भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के करीबी सलाहकार भारत के खिलाफ अपमानजनक और कभी-कभी नस्लवादी टिप्पणियां करते रहे हैं।
आ गया है रवैया बदलने का समय
सान्याल के अनुसार, भारत के संयम का मतलब पीछे हटना नहीं है। यह अन्य बड़े देशों के व्यवहार से अलग है। उन्होंने कहा कि भारत की वर्तमान रणनीति यह है कि वह मामलों को बढ़ाए नहीं। लेकिन, साथ ही अगर उसकी मांगें उचित हैं तो वह पीछे न हटे। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर भारत हर कदम पर पीछे हटने की प्रतिष्ठा बना लेता है तो उसे कई अन्य मुद्दों पर भी पीछे हटना पड़ेगा।
सान्याल ने मानसिकता में बदलाव की वकालत करते हुए कहा कि 78 सालों के स्वतंत्र जीवन में भारत कई चीजों को लेकर बहुत ज्यादा माफी मांगता रहा है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि यह रवैया बदला जाए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत की मुखरता मापी हुई लेकिन दृढ़ होनी चाहिए। इसका मतलब आग में घी डालना नहीं है। अलबत्ता, अपने हितों और दुनिया की एक-छठे हिस्से की आबादी के हितों के लिए खड़ा होना है। उन्होंने कहा कि जो भारत के लिए अच्छा है, वह पूरी मानवता के लिए अच्छा है।
इतिहास का दिया हवाला
ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए सान्याल ने कहा कि हर उभरती हुई शक्ति को अपना स्थान खुद बनाना पड़ता है। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे ब्रिटिशों को नेपोलियन के साथ दशकों तक युद्ध करना पड़ा। रूसियों को अलास्का तक विजय प्राप्त करनी पड़ी और क्रीमिया में तत्कालीन महान शक्तियों का सामना करना पड़ा। जर्मनों को फ्रेंको-रूसी युद्ध जीतना पड़ा। जापानियों ने 1905 में रूस को हराया। अमेरिकियों को दो विश्व युद्ध जीतने पड़े। चीन ने कोरिया और वियतनाम में अमेरिका का सामना किया। सान्याल ने कहा कि भारत को भी अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का सामना करना पड़ रहा है।
टॉप इकोनॉमिस्ट ने निष्कर्ष निकाला कि भारत का टारगेट बिना अनावश्यक टकराव के अपने सर्वोत्तम हितों में काम करना है। उन्होंने दोहराया कि भारत का अनावश्यक रूप से चीजों को बढ़ाने या बिगाड़ने में कोई हित नहीं है। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि भारत अपने हितों को नहीं समझता या उनके लिए खड़ा नहीं होगा। उन्होंने कहा कि यदि उचित व्यापारिक समझौते करने की आवश्यकता होगी तो वे किए जाएंगे। लेकिन, वे उचित होने चाहिए और देश के लिए शुद्ध लाभ स्पष्ट रूप से सकारात्मक होना चाहिए।
दुनिया के कई तय पैमानों पर असर डाल सकता है भारत सान्याल ने इस बात पर जोर दिया कि भारत की आर्थिक स्थिति अब इतनी मजबूत हो गई है कि वह दुनिया के कई तय मापदंडों को प्रभावित कर सकता है। भारत की आबादी बहुत बड़ी है। इसी वजह से वह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (नॉमिनल मामले में) और क्रय शक्ति समता (पीपीपी मामले में) के आधार पर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। उन्होंने भविष्यवाणी की कि दशक के अंत तक भारत दोनों पैमानों पर तीसरे स्थान पर होगा। यह आर्थिक शक्ति भारत को वैश्विक मंच पर अधिक प्रभावशाली बनाती है।
उन्होंने कहा कि यह बढ़ती शक्ति स्वाभाविक रूप से दूसरों को असहज करेगी। यहां तक कि वे देश जो भारत के प्रति मित्रवत रहे हैं, वे भी भारत के बढ़ते प्रभाव से थोड़ा असहज महसूस कर सकते हैं। सान्याल ने इसकी तुलना व्यक्तिगत संबंधों से की, जहां किसी व्यक्ति के अधिक सफल होने पर उसके अपने दोस्त और परिवार भी थोड़ा असहज हो जाते हैं। यही बात देशों के बीच भी लागू होती है।
सान्याल ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को वैश्विक असहजता के कारण अपनी प्रगति धीमी नहीं करनी चाहिए। उन्होंने इसे 'हारने वालों का नजरिया' कहा। उनका मानना था कि भारत ने लंबे समय तक अपनी क्षमता से कम प्रदर्शन किया है। अब जब भारत अपनी क्षमता के अनुसार प्रदर्शन कर रहा है तो दूसरों की असहजता को सहन करना होगा। उन्हें इस नई वास्तविकता को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करना होगा। उन्होंने कहा कि भारत को यह सब देखने के लिए तैयार रहना होगा।
सान्याल ने अमेरिका के साथ हालिया टैरिफ टेंशन का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि यह भारत के बढ़ते प्रभाव की स्पष्ट मिसाल है। यह मुद्दा भारत ने नहीं उठाया है। न ही भारत इसे बढ़ाना चाहता है। भारत का नजरिया शांत और दृढ़ रहा है। भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के करीबी सलाहकार भारत के खिलाफ अपमानजनक और कभी-कभी नस्लवादी टिप्पणियां करते रहे हैं।
आ गया है रवैया बदलने का समय
सान्याल के अनुसार, भारत के संयम का मतलब पीछे हटना नहीं है। यह अन्य बड़े देशों के व्यवहार से अलग है। उन्होंने कहा कि भारत की वर्तमान रणनीति यह है कि वह मामलों को बढ़ाए नहीं। लेकिन, साथ ही अगर उसकी मांगें उचित हैं तो वह पीछे न हटे। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर भारत हर कदम पर पीछे हटने की प्रतिष्ठा बना लेता है तो उसे कई अन्य मुद्दों पर भी पीछे हटना पड़ेगा।
सान्याल ने मानसिकता में बदलाव की वकालत करते हुए कहा कि 78 सालों के स्वतंत्र जीवन में भारत कई चीजों को लेकर बहुत ज्यादा माफी मांगता रहा है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि यह रवैया बदला जाए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत की मुखरता मापी हुई लेकिन दृढ़ होनी चाहिए। इसका मतलब आग में घी डालना नहीं है। अलबत्ता, अपने हितों और दुनिया की एक-छठे हिस्से की आबादी के हितों के लिए खड़ा होना है। उन्होंने कहा कि जो भारत के लिए अच्छा है, वह पूरी मानवता के लिए अच्छा है।
इतिहास का दिया हवाला
ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए सान्याल ने कहा कि हर उभरती हुई शक्ति को अपना स्थान खुद बनाना पड़ता है। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे ब्रिटिशों को नेपोलियन के साथ दशकों तक युद्ध करना पड़ा। रूसियों को अलास्का तक विजय प्राप्त करनी पड़ी और क्रीमिया में तत्कालीन महान शक्तियों का सामना करना पड़ा। जर्मनों को फ्रेंको-रूसी युद्ध जीतना पड़ा। जापानियों ने 1905 में रूस को हराया। अमेरिकियों को दो विश्व युद्ध जीतने पड़े। चीन ने कोरिया और वियतनाम में अमेरिका का सामना किया। सान्याल ने कहा कि भारत को भी अब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का सामना करना पड़ रहा है।
टॉप इकोनॉमिस्ट ने निष्कर्ष निकाला कि भारत का टारगेट बिना अनावश्यक टकराव के अपने सर्वोत्तम हितों में काम करना है। उन्होंने दोहराया कि भारत का अनावश्यक रूप से चीजों को बढ़ाने या बिगाड़ने में कोई हित नहीं है। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि भारत अपने हितों को नहीं समझता या उनके लिए खड़ा नहीं होगा। उन्होंने कहा कि यदि उचित व्यापारिक समझौते करने की आवश्यकता होगी तो वे किए जाएंगे। लेकिन, वे उचित होने चाहिए और देश के लिए शुद्ध लाभ स्पष्ट रूप से सकारात्मक होना चाहिए।
दुनिया के कई तय पैमानों पर असर डाल सकता है भारत सान्याल ने इस बात पर जोर दिया कि भारत की आर्थिक स्थिति अब इतनी मजबूत हो गई है कि वह दुनिया के कई तय मापदंडों को प्रभावित कर सकता है। भारत की आबादी बहुत बड़ी है। इसी वजह से वह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (नॉमिनल मामले में) और क्रय शक्ति समता (पीपीपी मामले में) के आधार पर तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। उन्होंने भविष्यवाणी की कि दशक के अंत तक भारत दोनों पैमानों पर तीसरे स्थान पर होगा। यह आर्थिक शक्ति भारत को वैश्विक मंच पर अधिक प्रभावशाली बनाती है।
उन्होंने कहा कि यह बढ़ती शक्ति स्वाभाविक रूप से दूसरों को असहज करेगी। यहां तक कि वे देश जो भारत के प्रति मित्रवत रहे हैं, वे भी भारत के बढ़ते प्रभाव से थोड़ा असहज महसूस कर सकते हैं। सान्याल ने इसकी तुलना व्यक्तिगत संबंधों से की, जहां किसी व्यक्ति के अधिक सफल होने पर उसके अपने दोस्त और परिवार भी थोड़ा असहज हो जाते हैं। यही बात देशों के बीच भी लागू होती है।
सान्याल ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को वैश्विक असहजता के कारण अपनी प्रगति धीमी नहीं करनी चाहिए। उन्होंने इसे 'हारने वालों का नजरिया' कहा। उनका मानना था कि भारत ने लंबे समय तक अपनी क्षमता से कम प्रदर्शन किया है। अब जब भारत अपनी क्षमता के अनुसार प्रदर्शन कर रहा है तो दूसरों की असहजता को सहन करना होगा। उन्हें इस नई वास्तविकता को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करना होगा। उन्होंने कहा कि भारत को यह सब देखने के लिए तैयार रहना होगा।