चंडीगढ़: पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को बड़ा झटका दिया है। हाईकोर्ट ने उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने पंचकुला की विशेष सीबीआई अदालत के आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश के तहत मानेसर भूमि सौदे के मामले में हुड्डा के खिलाफ आरोप तय करने की प्रक्रिया आगे बढ़नी थी। हुड्डा ने सीबीआई कोर्ट के 19 सितंबर 2025 के आदेश को रद्द करने की मांग की थी। ट्रायल कोर्ट ने आरोप तय करने की प्रक्रिया को स्थगित करने से इनकार किया था और 30 अक्टूबर की तारीख तय की थी। लेकिन हुड्डा ने 9 अक्टूबर को हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी थी, जिससे यह प्रक्रिया रुक गई थी। सीबीआई के वकील रवि कमल गुप्ता ने बताया कि हाई कोर्ट ने कहा कि सह-आरोपियों पर लगी रोक का अर्थ यह नहीं कि याचिकाकर्ता पर भी मुकदमे को रोका जाए। उन्होंने कहा कि आरोप तय करने और सबूत दर्ज करने की प्रक्रिया जारी रह सकती है। मामले का विस्तृत आदेश अभी जारी होना बाकी है।
जानें क्या है मामला
यह पूरा मामला 2004 का है। हरियाणा सरकार ने 27 अगस्त 2004 को मानेसर, लखनौला और नौरंगाबाद गांवों में 912 एकड़ जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की थी। जांच में पाया गया कि जमीन मालिकों ने डर के कारण अपनी जमीनें बहुत कम दामों पर बेच दीं। इससे सरकार को करीब 1,500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।सीबीआई के अनुसार, 24 अगस्त 2007 को तत्कालीन उद्योग निदेशक ने सरकारी नीति का उल्लंघन करते हुए जमीन मूल मालिकों की बजाय खरीदारों को लौटा दी। सीबीआई ने सितंबर 2015 में जांच शुरू की और 2018 में 34 आरोपियों, जिनमें हुड्डा भी शामिल थे, के खिलाफ 80,000 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की।
हुड्डा ने दी थी ये दलील
इस साल मई में हाई कोर्ट ने कई अधिकारियों की याचिकाएं खारिज कर दी थीं। हालांकि, चार पूर्व आईएएस अधिकारियों राजीव अरोड़ा, सुदीप सिंह ढिल्लों, मुरारी लाल तायल और डी. आर. ढींगरा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। हुड्डा ने इसी रोक का हवाला देकर कहा था कि जब सुप्रीम कोर्ट ने सह-आरोपियों पर रोक लगाई है, तो मेरे खिलाफ भी कार्यवाही रोकी जानी चाहिए। उनका कहना था कि सभी आरोप आपस में जुड़े हैं और अलग-अलग नहीं चलाए जा सकते। लेकिन हाई कोर्ट ने यह तर्क खारिज करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट की रोक केवल उन्हीं आरोपियों पर लागू होती है जिन्होंने वहां याचिका दायर की थी। अब हुड्डा को आरोप तय होने की प्रक्रिया का सामना करना पड़ेगा।
जानें क्या है मामला
यह पूरा मामला 2004 का है। हरियाणा सरकार ने 27 अगस्त 2004 को मानेसर, लखनौला और नौरंगाबाद गांवों में 912 एकड़ जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की थी। जांच में पाया गया कि जमीन मालिकों ने डर के कारण अपनी जमीनें बहुत कम दामों पर बेच दीं। इससे सरकार को करीब 1,500 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।सीबीआई के अनुसार, 24 अगस्त 2007 को तत्कालीन उद्योग निदेशक ने सरकारी नीति का उल्लंघन करते हुए जमीन मूल मालिकों की बजाय खरीदारों को लौटा दी। सीबीआई ने सितंबर 2015 में जांच शुरू की और 2018 में 34 आरोपियों, जिनमें हुड्डा भी शामिल थे, के खिलाफ 80,000 पन्नों की चार्जशीट दाखिल की।
हुड्डा ने दी थी ये दलील
इस साल मई में हाई कोर्ट ने कई अधिकारियों की याचिकाएं खारिज कर दी थीं। हालांकि, चार पूर्व आईएएस अधिकारियों राजीव अरोड़ा, सुदीप सिंह ढिल्लों, मुरारी लाल तायल और डी. आर. ढींगरा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाही पर रोक लगा दी थी। हुड्डा ने इसी रोक का हवाला देकर कहा था कि जब सुप्रीम कोर्ट ने सह-आरोपियों पर रोक लगाई है, तो मेरे खिलाफ भी कार्यवाही रोकी जानी चाहिए। उनका कहना था कि सभी आरोप आपस में जुड़े हैं और अलग-अलग नहीं चलाए जा सकते। लेकिन हाई कोर्ट ने यह तर्क खारिज करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट की रोक केवल उन्हीं आरोपियों पर लागू होती है जिन्होंने वहां याचिका दायर की थी। अब हुड्डा को आरोप तय होने की प्रक्रिया का सामना करना पड़ेगा।
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