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ये 'बाहुबली' कौन जो हर तूफान से निकाल लेते हैं भारत की कश्ती? दूर बैठे-बैठे कर देते हैं खेल

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नई दिल्‍ली: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अर्थशास्त्रियों NRI को भारत की ताकत बताते हैं। ये बाहुबली भारत की संस्कृति को विदेश में फैलाते हैं। देश को आर्थिक रूप से भी मजबूत करते हैं। RBI के अनुसार, सही नीतियों से भारत वैश्विक अस्थिरता को अवसर में बदल सकता है। एनआरआई के भेजे पैसे और सर्विस एक्सपोर्ट से भारत के करंट अकाउंट को मदद मिलेगी। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, 11 अप्रैल, 2025 को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 1.5 अरब डॉलर बढ़कर 677.84 अरब डॉलर हो गया। इसमें एनआरआई के पैसे का भी बड़ा योगदान है। एनआरआई का पैसा भारत की जीडीपी का लगभग 3% है। यह भारत के बाहरी क्षेत्र के लिए एक सुरक्षा कवच है। 2024 में एनआरआई ने रिकॉर्ड 129.4 अरब डॉलर भारत भेजे। अकेले दिसंबर तिमाही में 36 अरब डॉलर आए। भारत लगातार तीसरे साल 100 अरब डॉलर से ज्यादा रेमिटेंस हासिल करने वाला देश बना। 1990 से 2024 तक भारत से बाहर जाने वाले लोगों की संख्या 66 लाख से बढ़कर 1.85 करोड़ हो गई है। खाड़ी देशों (GCC) में लगभग आधे भारतीय प्रवासी रहते हैं। RBI का कहना है कि एनआरआई रेमिटेंस भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आरबीआई इन्हें बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठा रहा है। एनआरआई रेमिटेंस भारत की जीडीपी का 3%रेमिटेंस भारत की जीडीपी का लगभग 3% है। यह भारत के बाहरी क्षेत्र के लिए एक सुरक्षा कवच है। जब भारत का व्यापार घाटा बढ़ता है तो रेमिटेंस महत्वपूर्ण सहारा प्रदान करते हैं। यह सर्विस एक्सपोर्ट के बाद एक्‍सटर्नल फाइनेंस का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है। रेमिटेंस से विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ता है, जिससे देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। रेमिटेंस की ताकत ने ही भारत को हर तूफान से बाहर निकलने में मदद की है। 2024 में एनआरआई ने रिकॉर्ड 129.4 अरब डॉलर भारत भेजे। अकेले दिसंबर तिमाही में 36 अरब डॉलर आए। भारत लगातार तीसरे साल 100 बिलियन डॉलर से ज्यादा रेमिटेंस पाने वाला देश बना। 1990 के दशक में IT बूम के बाद से भारत रेमिटेंस प्राप्त करने वाले शीर्ष देशों में से एक रहा है। 2008 से यह लगातार पहले स्थान पर है।रेमिटेंस आमतौर पर उस देश में रोजगार की स्थिति और प्रवासन पैटर्न से जुड़े होते हैं जहां से पैसा भेजा जा रहा है और जहां पैसा प्राप्त हो रहा है। 1990 से 2024 तक भारत से बाहर जाने वाले लोगों की संख्या 66 लाख से बढ़कर 1.85 करोड़ हो गई है। इस दौरान वैश्विक प्रवासियों में इसकी हिस्सेदारी 4.3% से बढ़कर 6% से अधिक हो गई है। खाड़ी देशों (GCC) में लगभग आधे भारतीय प्रवासी रहते हैं।आरबीआई के एक बुलेटिन में कहा गया है कि 21वीं सदी की शुरुआत में भारतीय IT सेवाओं की प्रतिस्पर्धात्मकता और विदेश में पहुंच के कारण कुशल प्रवासियों की संख्या, खासकर अमेरिका में काफी बढ़ गई है। इस प्रकार, जीसीसी के अलावा, विकसित अर्थव्यवस्थाएं भी भारत में रेमिटेंस का एक प्रमुख स्रोत बन गई हैं।हालांकि, ऊंची लेनदेन लागत, करेंसी में अस्थिरता और नियामक जटिलताओं जैसी चुनौतियां अभी भी हैं। लेकिन, आरबीआई एनआरआई रेमिटेंस के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए सक्रिय कदम उठा रहा है। आरबीआई जमा पर बेहतर रिटर्न देकर, विदेशी मुद्रा नियमों को सरल बनाकर और डिजिटल भुगतान समाधानों को बढ़ावा देकर रेमिटेंस इनफ्लो को बढ़ावा देना चाहता है। इससे भारत के करंट अकाउंट और समग्र आर्थिक स्थिरता को मजबूत किया जा सकेगा। रेमिटेंस में अमेरिका की हिस्सेदारी सबसे बड़ी खाड़ी देशों (GCC) में भारतीय प्रवासियों की संख्या दुनिया भर के कुल भारतीय प्रवासियों का लगभग आधा है। संयुक्त अरब अमीरात (UAE) भारतीय प्रवासी श्रमिकों का सबसे बड़ा केंद्र है, जो मुख्य रूप से निर्माण उद्योग, स्वास्थ्य सेवा, आतिथ्य और पर्यटन में ब्‍लू कॉलर जॉब में लगे हुए हैं।RBI के एक हालिया लेख के अनुसार, रेमिटेंस के स्रोतों में धीरे-धीरे बदलाव देखा जा रहा है। सर्वे के परिणामों से पता चलता है कि भारत में रेमिटेंस का प्रभुत्व धीरे-धीरे जीसीसी देशों से एई (विकसित अर्थव्यवस्थाओं) की ओर बढ़ रहा है, विशेष रूप से अमेरिका, ब्रिटेन, सिंगापुर, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया, जिनका 2023-24 में कुल रेमिटेंस में आधे से अधिक का योगदान था।जीसीसी देशों (यूएई, सऊदी अरब, कुवैत, कतर, ओमान और बहरीन) ने मिलकर 2023-24 में भारत को प्राप्त कुल रेमिटेंस में 38% का योगदान दिया। यह 2020-21 (कोरोना महामारी वर्ष) में दर्ज की गई हिस्सेदारी से अधिक है।भारत के कुल रेमिटेंस में अमेरिका की हिस्सेदारी सबसे बड़ी रही, जो बढ़कर 27.7% हो गई। यूएई ने भारत में रेमिटेंस के दूसरे सबसे बड़े स्रोत के रूप में अपनी स्थिति बनाए रखी। इसकी हिस्सेदारी 2020-21 में 18% से बढ़कर 2023-24 में 19.2% हो गई। यह अमेरिका के विपरीत है, जहां भारतीय प्रवासी मुख्य रूप से व्‍हाइट कॉलर जॉब में लगे हैं। इस प्रकार UAE की तुलना में प्रवासियों की संख्या कम होने के बावजूद अमेरिका से प्राप्त ऊंचे रेमिटेंस की व्याख्या की जा सकती है। एनआरआई भारत में ज्‍यादा निवेश क्यों कर रहे हैं? 1. तेजी से दौड़ती भारतीय अर्थव्यवस्था भारत की तेज इकनॉमिक ग्रोथ दुनिया भर से निवेश आकर्षित करने का एक बड़ा कारण रही है। यह विशाल खपत और मैन्‍यूफैक्‍चरिंग वाला देश है। 2025 तक इसके 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का अनुमान है। संरचनात्मक सुधारों और बुनियादी ढांचे पर भारी खर्च के साथ सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि भारत को 2047 तक एक विकसित अर्थव्यवस्था बनने के लिए सही ग्रोथ ड्राइवर मौजूद हैं। 2. भारतीय शेयर बाजार का प्रदर्शनभारतीय शेयर बाजार ने पिछले वर्षों में लगातार मजबूत रिटर्न दिया है। इसमें खुदरा भागीदारी बढ़ ही है। भारतीय शेयर बाजार को दुनिया में सबसे अच्छी तरह से विनियमित बाजारों में से एक माना जाता है। 3. जीवन स्तर में सुधारभारत में रिवर्स ब्रेन ड्रेन ट्रेंड तेजी से दिख रहा है। अवसरों की भरमार और स्टार्टअप इकोसिस्टम के परिपक्व होने के साथ बहुत सारे वैश्विक भारतीय इस ट्रेंड का लाभ उठाने के लिए वापस आ रहे हैं। बुनियादी ढांचे के अपग्रेड के साथ बेहतर जीवन स्तर भारत को एनआरआई के लिए यहां संपत्ति रखने के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना रहा है। 4. भारतीय रुपये की कमजोरीप्रमुख वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले भारतीय रुपये का कमजोर होना एनआरआई को अनुकूल विनिमय दर लाभ प्रदान करता है। यह डेप्रिसिएशन NRI के लिए भारतीय संपत्तियों, जिसमें रियल एस्टेट और इक्विटी शामिल हैं, में निवेश करना अधिक फायदेमंद बनाता है जो विदेशी मुद्रा में कमाते हैं।
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