नई दिल्ली: पहाड़ी राज्यों में इन दिनों पर्यटकों की भीड़भाड़ काफी बढ़ गई है। पहाड़ों में ज्यादातर टूरिस्ट स्पॉट्स पर अब सालभर लोग ही लोग नजर आते हैं। बढ़ते पर्यटकों के बोझ का असर पहाड़ी राज्यों पर साफतौर पर देखा जा सकता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश को लेकर बेहद अहम टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से कहा है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन हिमाचल प्रदेश देश के नक्शे से ही गायब हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को याद दिलाते हुए कहा कि सिर्फ टैक्स वसूलना पर्यावरण के मुद्दे से ऊपर नहीं हो सकता। अदालत ने हिमाचल प्रदेश में बेरोकटोक तेजी से हो रहे निर्माण और पर्यटकों की बढ़ती तादाद पर गहरी चिंता जताई। इस मामले जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेव की पीठ ने सुनवाई की। पीठ ने कहा कि पिछले कुछ सालों में राज्य ने कई प्राकृतिक आपदाएं झेली हैं।
प्रकृति नहीं, इंसान हैं जिम्मेदारसुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि बाढ़, पहाड़ों और जमीन के लगातार खिसकने, घरों और इमारतों के ढहने के लिए प्रकृति नहीं, बल्कि इंसान जिम्मेदार हैं। इन घटनाओं में सैकड़ों लोगों की मौत हुई है। लेकिन इसके लिए प्रकृति को दोष देना ठीक नहीं है। केंद्र और राज्य सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करके इसे रोकना चाहिए।
फोर नेल का निर्माण शुरू कियासुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रकृति ने हिमाचल प्रदेश को प्रचुर सौंदर्य दिया है। इसी प्राकृतिक सौंदर्य का फायदा उठाकर सरकार ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में प्रचारित किया और अब फोर लेन वाली सड़कों का निर्माण शुरू कर दिया है। रिपोर्ट्स के अनुसार इन सड़कों के निर्माण के लिए पहाड़ काटे जा रहे हैं। इसके लिए भारी मशीनरी और विस्फोटक सामग्री का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने लगा है।
पर्यावरण की कीमत पर राजस्व नहींसर्वोच्च अदालत ने आगे कहा कि हम राज्य सरकार और भारत संघ को यह समझाना चाहते हैं कि राजस्व कमाना ही सब कुछ नहीं है। पर्यावरण और पारिस्थितिकी की कीमत पर राजस्व नहीं कमाया जा सकता। अगर हालात आज की तरह ही चलते रहे, तो वह दिन दूर नहीं जब पूरा हिमाचल हवा में साफ हो जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को याद दिलाते हुए कहा कि सिर्फ टैक्स वसूलना पर्यावरण के मुद्दे से ऊपर नहीं हो सकता। अदालत ने हिमाचल प्रदेश में बेरोकटोक तेजी से हो रहे निर्माण और पर्यटकों की बढ़ती तादाद पर गहरी चिंता जताई। इस मामले जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेव की पीठ ने सुनवाई की। पीठ ने कहा कि पिछले कुछ सालों में राज्य ने कई प्राकृतिक आपदाएं झेली हैं।
प्रकृति नहीं, इंसान हैं जिम्मेदारसुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि बाढ़, पहाड़ों और जमीन के लगातार खिसकने, घरों और इमारतों के ढहने के लिए प्रकृति नहीं, बल्कि इंसान जिम्मेदार हैं। इन घटनाओं में सैकड़ों लोगों की मौत हुई है। लेकिन इसके लिए प्रकृति को दोष देना ठीक नहीं है। केंद्र और राज्य सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करके इसे रोकना चाहिए।
फोर नेल का निर्माण शुरू कियासुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रकृति ने हिमाचल प्रदेश को प्रचुर सौंदर्य दिया है। इसी प्राकृतिक सौंदर्य का फायदा उठाकर सरकार ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में प्रचारित किया और अब फोर लेन वाली सड़कों का निर्माण शुरू कर दिया है। रिपोर्ट्स के अनुसार इन सड़कों के निर्माण के लिए पहाड़ काटे जा रहे हैं। इसके लिए भारी मशीनरी और विस्फोटक सामग्री का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने लगा है।
पर्यावरण की कीमत पर राजस्व नहींसर्वोच्च अदालत ने आगे कहा कि हम राज्य सरकार और भारत संघ को यह समझाना चाहते हैं कि राजस्व कमाना ही सब कुछ नहीं है। पर्यावरण और पारिस्थितिकी की कीमत पर राजस्व नहीं कमाया जा सकता। अगर हालात आज की तरह ही चलते रहे, तो वह दिन दूर नहीं जब पूरा हिमाचल हवा में साफ हो जाएगा।
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