Next Story
Newszop

टैरिफ पर ट्रंप जो भी कहें, मामला लीगल है

Send Push
नीरज कौशल: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एकतरफा टैरिफ घोषणाओं से वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचल मचाए हुए हैं। इसी सिलसिले में बुधवार को उन्होंने इग्जेक्यूटिव ऑर्डर के जरिए भारत पर 25% का अतिरिक्त शुल्क लगाने का ऐलान कर दिया। वजह यह बताई कि भारत रूस से तेल खरीद रहा है। सवाल यह है कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति को इस तरह से टैरिफ लगाने का संवैधानिक अधिकार है या नहीं। इसका स्पष्ट जवाब है- नहीं।



अधिकारों का अतिक्रमण । जाने-माने अमेरिकी अर्थशास्त्री पॉल क्रूगमैन ने 1 अगस्त को एक लेख में लिखा है, ‘ट्रंप ट्रेड के सवाल पर जो कुछ भी कर रहे हैं, वह गैरकानूनी है।’ क्रूगमैन इस मामले में अकेले नहीं हैं। अमेरिका में एक दर्जन राज्य सरकारें, कई बिजनेस ग्रुप और विभिन्न व्यक्तियों ने इस तरह टैरिफ लगाए जाने को लेकर ट्रंप प्रशासन पर मुकदमा किया है। उनका कहना है कि वह विधायी प्रक्रिया का अतिक्रमण कर रहे हैं।



असाधारण खतरे का दावा । सुनवाई के दौरान फेडरल अपील कोर्ट के जजों ने टैरिफ लगाने के राष्ट्रपति के अधिकारों पर संदेह जताते हुए इसे आपातकालीन शक्तियों का अभूतपूर्व इस्तेमाल करार दिया। दिलचस्प बात यह है कि ट्रंप अपने इन आदेशों के बचाव में 1977 के जिस इंटरनैशनल इमर्जेंसी इकॉनमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) का हवाला दे रहे हैं। उसमें टैरिफ शब्द का जिक्र ही नहीं है। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि व्यापार घाटे और मादक पदार्थों की तस्करी की वजह से ‘देश असाधारण खतरे’ का सामना कर रहा है। मगर विरोधी इन खतरों को फर्जी बताते हैं।



निजी खुन्नस का नतीजा । कुछ मामलों में तो खास नेताओं से निजी खुन्नस के चलते टैरिफ लगाए जा रहे हैं। मिसाल के तौर पर, ट्रंप ने ब्राजील पर 50% टैरिफ लगा दिया है और वहां ‘इमर्जेंसी’ यह है कि पूर्व राष्ट्रपति बोलसोनारो पर मुकदमा चलाया जा रहा है, जो कि ट्रंप के दोस्त रहे हैं। विरोधियों के मुताबिक, यह अमेरिकी राष्ट्रपति के अधिकारों का खुला दुरुपयोग और दूसरे देश के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी है।



संवैधानिक प्रावधान । अमेरिकी संविधान राष्ट्रपति को अपवाद स्वरूप तीन परिस्थितियों में टैरिफ लगाने का अधिकार देता है - सुरक्षा कारणों से, अनफेयर ट्रेड (मसलन, जब कोई देश अमेरिका में बाजार मूल्य से कम कीमतों पर माल डंप कर रहा हो) के मामलों में और आर्थिक आपातकालीन स्थितियों में। अभी इन तीनों में से कोई भी स्थिति अमेरिका में नहीं है। आर्थिक आपातकाल की जहां तक बात है तो ट्रंप खुद यह दावा करते रहे हैं कि उनके शासन काल में अमेरिकी अर्थव्यवस्था अपने सबसे अच्छे दौर में है। जाहिर है, देश की अर्थव्यवस्था अपने सबसे अच्छे दौर में रहते हुए आपातकाल से जूझ रही हो, यह संभव नहीं है।



कोर्ट का रुख । इसी मई में अमेरिका के कोर्ट ऑफ इंटरनैशनल ट्रेड ने माना कि ट्रंप प्रशासन ने कांग्रेस द्वारा राष्ट्रपति को सौंपी गई शक्तियों की सीमा को पार कर लिया है। इसी आधार पर अदालत ने ट्रंप टैरिफ पर अमल रोकने का आदेश दे दिया। लेकिन सरकार इस फैसले के खिलाफ फेडरल सर्किट में चली गई जिसने मुकदमा चलने की अवधि में टैरिफ लागू करने की इजाजत दी। यह कानूनी लड़ाई संभवत: ट्रंप के मौजूदा कार्यकाल के आखिर तक खिंच जाएगी। मसला सुप्रीम कोर्ट के पास जाएगा जहां कंजर्वेटिव जजों का बहुमत है। फिर भी ट्रंप के पक्ष में फैसला आने की ज्यादा संभावना नहीं है क्योंकि ज्यादातर कंजर्वेटिव जज संवैधानिक नजरिया रखते हैं।



विधायी मंजूरी आसान नहीं । ट्रंप कांग्रेस की विधायी मंजूरी लेने की कोशिश कर सकते हैं लेकिन एक तो यह प्रक्रिया बड़ी लंबी है और दूसरी बात यह कि उनके काम करने की शैली को देखते हुए रिपब्लिकन सांसद भी शायद ही उन्हें यह ताकत सौंपना चाहें। एक बार इस टैरिफ से अर्थव्यवस्था को होने वाला नुकसान स्पष्ट हो जाए तो उसके बाद उन्हें मिल रहे रिपब्लिकन समर्थन में भी गिरावट आएगी।



भारत की दो टूक । ऐसे में सवाल यह उठता है कि ट्रंप की ओर से 50% टैरिफ का ऐलान होने के बाद अब भारत क्या करे। ट्रंप-2.0 की शुरुआत के वक्त जानकारों का कहना था कि भारत को अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर में उलझने से बचना चाहिए। यह बात अब भी सही है। भारत ने स्पष्ट किया है कि वह ट्रंप को उसकी विदेश नीति निर्धारित नहीं करने देगा न ही यह तय करने देगा कि वह किससे तेल खरीदे या न खरीदे।



बढ़ाए कॉम्पिटिटिवनेस । यह भारत के हित में है कि रूस से तेल खरीदना जारी रखा जाए। अगर रूसी तेल ग्लोबल मार्केट से हट गया, जैसा कि ट्रंप चाहते हैं, तो तेल कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल को भी पार कर जाएंगी। इससे आयात पर होने वाला भारत का खर्च बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा। इस बीच भारत को ट्रंप टैरिफ से उपजे अवसर का इस्तेमाल करते हुए टैरिफ दरें कम करके वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए।

(लेखिका कोलंबिया यूनिवर्सिटी में प्रफेसर हैं)



Loving Newspoint? Download the app now