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चिराग पासवान की बिहार में चुनावी एंट्री से महागठबंधन को खतरा! राहुल गांधी के 'सपने' पर फिर सकता है पानी

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पटना: लोजपा-आर के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री ने पिछले कुछ समय से बिहार की राजनीति में धमाल मचा दिया है। चिराग पासवान ने कई बार कहा है कि उनकी दिल्ली इच्छा बिहार में रह कर राजनीति करने की है। पार्टी चाहेगी तो वे विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। अब उनकी पार्टी के तमाम प्रकोष्ठों ने उन्हें चुनाव लड़ने की हरी झंडी दे दी है। खुद चिराग ने भी कह दिया है कि वे एनडीए में रह कर ही चुनाव लड़ेंगे। मुख्यमंत्री पद की दावेदारी नहीं करेंगे। नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री रहेंगे। पार्टी इस बाबत सर्वेक्षण करा रही है कि उनके चुनाव लड़ने से दल और एनडीए को कितना फायदा होगा। बहरहाल, चिराग अगर चुनाव लड़ते हैं तो इससे निश्चित तौर पर एनडीए को फायदा होगा। अलबत्त्ता महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। महागठबंधन में शामिल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की निगाहें दलित वोटरों पर लगी हुई हैं।





कांग्रेस की नजर दलित-ईबीसी वोटों पर

राहुल गांधी का बिहार के प्रति आकर्षण बढ़ा है। इसी महीने की 6 तारीख को वे फिर बिहार आ रहे हैं। वर्ष 2025 के शुरुआती छह महीनों में यह उनकी चौथी यात्रा होगी। राहुल गांधी इस बार नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में अति पिछड़ी जातियों (ईबीसी) के सम्मेलन में शिरकत करेंगे। नालंदा के राजगीर में होने वाले संविधान संरक्षण सम्मेलन में दलित, मुस्लिम और ईबीसी वोटरों को एकजुट करने के लिए राहुल जोश भरने की कोशिश करेंगे। दलित तबके पर संविधान बचाने के बहाने पहले से उनकी नजर रही है।



बिहार में दलित जातियों की आबादी तकरीबन 17 फीसद है। मुस्लिम वोटों के लिए राहुल को ज्यादा मशक्कत करने की जरूरत नहीं है। भाजपा और नरेंद्र मोदी के विरोध के कारण कांग्रेस या 'इंडिया' ब्लॉक की पार्टियां ही मुसलमानों को पसंद हैं। बिहार में मुस्लिम आबादी भी 18 प्रतिशत के करीब है। ईबीसी आबादी बिहार में 36 प्रतिशत है।



अब खोया जनाधार वापस लाने की कोशिश

आजादी के बाद से देश की सियासत में कांग्रेस का दबदबा रहा। सवर्णों में ब्राह्मण तो इसलिए भी कांग्रेस से सटे रहे कि पंडित जवाहरलाल नेहरू उन्हें अपनी ही जाति के नेता लगते थे। कांग्रेस ने भी ब्राह्मण नेताओं को आगे बढ़ाने में तब कोई कोताही नहीं की थी। दलितों में भी कांग्रेस ने उनके नेताओं को आगे बढ़ा कर अपनी पुख्ता जमीन तैयार कर ली थी। पर, कालांतर में दलितों ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। जातीय आधार पर बनीं क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस के सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया।



यूपी में कांशीराम तो बिहार में रामविलास पासवान ने अपनी-अपनी पार्टियां बना कर दलित वोटरों को कांग्रेस से अलग कर दिया। बचीखुची कसर भाजपा के हिन्दुत्व अभियान ने पूरी कर दी। संविधान की रक्षा के नाम पर राहुल गांधी संविधान निर्माता अंबेडकर को अपना आदर्श बनाए हुए हैं। वे जहां भी जाते हैं, संविधान की किताब साथ रखते हैं।



अब EBC की बड़ी आबादी पर डाल रहे डोरे

राहुल गांधी को यह भी पता है कि ईबीसी की बड़ी आबादी को साधे बगैर कांग्रेस का कायाकल्प मुश्किल है। बिहार में ईबीसी आबादी लगभग 36 प्रतिशत है। ईबीसी के वोट अब सुविधानुसार कई दलों में बंट जाते हैं। कांग्रेस भी उनका लाभ लेने की कोशिश में अब जुट गई है। बिहार में कांग्रेस का दलित प्रेम दिखाने के लिए राहुल अब तक आते रहे हैं। यह पहला मौका होगा, जब वे ईबीसी के सम्मेलन में शिरकत करने बिहार आएंगे। अलबत्ता ओबीसी के लिए कांग्रेस में उतनी बेचैनी नहीं दिख रही, जितनी दलित और ईबीसी के लिए दिखाई पड़ रही है।



चिराग पासवान ने फैसले से सबको चौंकाया

चिराग पासवान अगर बिहार की राजनीति में उतरते हैं तो दलित वोटों का ध्रुवीकरण उनके पक्ष में हो सकता है। लोजपा-आर के नेता और समर्थक जिस तरह चिराग में सीएम की छवि देख रहे हैं, अगर वे सच में मैदान में उतरे तो दलित वोट एकतरफा उनके पक्ष में गोलबंद हो सकते हैं। चिराग पासवान की ताजपोशी के पोस्टर भी हाल में लगाए गए थे। चिराग के बहनोई और लोजपा-आर के सांसद अरुण भारती भी चिराग में सीएम नने की क्षमता देखते हैं। चिराग ने लोकसभा चुनाव में जिस तरह के नतीजे दिखाए, उससे उनकी जनता पर पकड़ का अनुमान लगाया जा सकता है। लोजपा के विभाजन और अपनी पार्टी का इकलौता सांसद रह जाने के बावजूद चिराग ने अपनी क्षमता का बेहतर उदाहरण पेश किया है।

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