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Bihar Byelections: बिहार उपचुनाव में राजद के 'मुखिया' की प्रतिष्ठा दांव पर, 'भाई' की सीट बचा पाएगा 'भाई'

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पटना: जातीय समीकरण में उलझी रामगढ़ सीट पर विधानसभा उपचुनाव नाक की लड़ाई है। वो इसलिए कि इस सीट पर राजद के बिहार 'मुखिया' यानी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लग चुकी है। राजद और रामगढ़ विधानसभा को ले कर जगदानंद सिंह का नाम कई कारणों से जुड़ गया है। इस बार तो यह चुनाव राजद अध्यक्ष जगदानंद सिंह से इसलिए भी जुड़ गया है कि पुराने संबंधों का ख्याल कर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने एक तरह से वीटो लगाकर यह सीट उनके पुत्र अजीत सिंह के नाम कर दी। रामगढ़ सीट और जगदानंद सिंहरामगढ़ ही वो सीट है जहां से जगदानंद सिंह पहली बार जीत कर विधानसभा पहुंचे थे। इसके बाद उनका और रामगढ़ सीट का नाता ही बन गया। धीरे-धीरे रामगढ़ विधानसभा सीट का मतलब ही जगदानंद सिंह हो गया। इसकी वजह थी 1985 से ले कर 2005 तक लगातार जीत का परचम लहराना। इस बीच जगदानंद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के काफी करीबी और विश्वसनीय नेताओं में शुमार किए जाने लगे। नंबर टू में गिनती होने लगी। जल संसाधन मंत्री के रूप में काफी ख्याति भी मिली। जब जगदानंद ने अपने पुत्र सुधाकर सिंह को हरायायह मामला 2010 विधानसभा चुनाव का है। जगदानंद सिंह के बक्सर से सांसद बनने के बाद जब राजद ने उनके पुत्र सुधाकर सिंह को विरासत सौंपनी चाही तो खुद जगदानंद सिंह ने ही इस प्रस्ताव का विरोध कर दिया। मगर जगदानंद सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह को यह बात रास नहीं लगी तो पिता का विरोध कर वे स्वयं रामगढ़ विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हो गए। भाजपा ने इस स्थिति को भुनाने की कोशिश की और निर्दलीय उम्मीदवार सुधाकर सिंह को भाजपा ने अपना समर्थन दे कर अपना उम्मीदवार बना डाला। इस बगावत पर उतरे पुत्र सुधाकर सिंह को पिता जगदानंद का साथ नहीं मिला। जगदानंद सिंह ने अपनी पार्टी के उम्मीदवार अंबिका यादव का प्रचार किया। परिणाम यह हुआ कि तब रामगढ़ में राजद उम्मीदवार की जीत हुई और भाजपा समर्थित उम्मीदवार सुधाकर सिंह की हार। राजद उम्मीदवार अजीत सिंह चतुष्कोणीय संघर्ष में फंसेइस दफे यानी 2024 में हो रहे विधानसभा उप चुनाव में तो मामला और भी गजब का हो गया है। राजद के बिहार अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र अजीत सिंह की जीत केवल पिता की नहीं बल्कि राजद अध्यक्ष की पद की भी प्रतिष्ठा बन चुकी है। पर राजद उम्मीदवार अजीत सिंह का हाल बेहाल है। दरअसल इस बार राजद उम्मीदवार अजीत सिंह चतुष्कोणीय संघर्ष में फंस गए हैं। भाजपा की तरफ से स्वजातीय पूर्व विधायक अशोक सिंह,ब हुजन समाज पार्टी से पूर्व विधायक अंबिका यादव के भतीजे पिंटू यादव उन्हें चुनौती दे रहे थे। लेकिन प्रशांत किशोर ने अपनी जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार सुशील सिंह कुशवाहा को मैदान में उतार दिया। जातीय समीकरण में उलझ रही गाड़ी जातिगत समीकरण की नजरों से देखे तो रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में आबादी के हिसाब से नंबर वन राजपूत जाति है। इनकी संख्या करीब कुल वोटों का 21% है। दूसरे नंबर पर मुस्लिम मतदाता हैं, ये कुल मतों में 8.5% हिस्सेदारी रखते हैं। वहीं 6.8 फीसदी के साथ तीसरे नंबर पर यादव वोटर हैं। राजद उम्मीदवार अजीत सिंह और भाजपा उम्मीदवार अशोक सिंह की दावेदारी राजपूत वोटों पर है। ये है जगदानंद सिंह की परेशानीराजद प्रदेश अध्यक्ष के लिए परेशानी दो तीनों उम्मीदवार हैं। तीनों ही उनके बेटे और उनकी सीट पर जमा-जमाया खेल बिगाड़ने की हैसियत रखते हैं। बसपा के उम्मीदवार पिंटू यादव और जन सुराज के उम्मीदवार सुशील सिंह कुशवाहा दोनों ही माई समीकरण में सेंध मारी कर सकते हैं। खास कर दूसरे नंबर पर यादव जाति और उसके उम्मीदवार पिंटू यादव से खतरा है। राजद यहां एम वाई समीकरण को दुरुस्त करने में लगा है। इस समीकरण का बिखराव राजद उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकता है। भाजपा उम्मीदवार अशोक सिंह की भी दिक्कत यह है कि एनडीए के फोल्ड में रह रहे कुशवाहा वोट की घेराबंदी जन सुराज के उम्मीदवार सुशील सिंह कुशवाहा कर रहे हैं। विश्लेषकों की मानें तो जो प्रमुख दल अपने आधार वोट पर कुंडली जमा लेगा जीत उसी के दरवाजे पर दस्तक देगी।
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