पिथौरागढ़: उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के लोगों ने अपने अधिकारों की लंबी लड़ाई लड़ने और जीतने का कारनामा कर दिखाया है। पिथौरागढ़ जिले के 600 से अधिक ग्रामीणों को आखिरकार सरकारी नौकरी का अधिकार मिल गया है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की उस विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने ग्रामीणों को दिए गए 19 साल पुराने रोजगार के वादे को चुनौती दी थी। यह फैसला 8 अप्रैल को सुनाया गया, जिससे दशकों से चले आ रहे विवाद का अंत हुआ और ग्रामीणों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया। क्या है मामला?1992 में नैनी-सैनी एयरपोर्ट के निर्माण के लिए सरकार ने पिथौरागढ़ जिले के छह गांवों से करीब 27.5 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित की थी। इस अधिग्रहण से लगभग 600 ग्रामीण प्रभावित हुए थे। 2006 में स्थानीय प्रशासन ने इन ग्रामीणों से वादा किया कि उन्हें एयरपोर्ट या अन्य सरकारी विभागों में नौकरी दी जाएगी। लेकिन वर्षों बीतने के बावजूद केवल छह लोगों को ही संविदा पर नौकरी दी गई, जिससे अधिकांश ग्रामीण बेरोजगार ही रहे। न्याय के लिए लंबी लड़ाईन्याय की उम्मीद में ग्रामीणों ने 'नैनी सैनी ग्रामीण विकास समिति' का गठन किया और 2014 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। 2018 में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 10 हफ्तों के भीतर वादा निभाने और योग्य ग्रामीणों को सरकारी नौकरी देने का आदेश दिया। राज्य सरकार ने नौकरी देने की जगह सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दे दी। आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की विशेष अनुमति याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि हम इस याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं। अदालत ने साफ कहा कि राज्य सरकार का 2006 में दिया गया रोजगार का आश्वासन कानूनी रूप से वैध विचार था, जिसे नकारा नहीं जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब राज्य सरकार के सामने हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन का ही विकल्प बचता है। क्या है हाई कोर्ट का आदेश?उत्तराखंड हाई होर्ट ने वर्ष 2018 में दिए गए फैसले में राज्य सरकार की मामले में निष्क्रियता की आलोचना की थी। कोर्ट ने आदेश में कहा कि ग्रामीणों को दिए गए स्पष्ट आश्वासन के बावजूद उन्हें कोई सरकारी नौकरी नहीं दी गई। राज्य सरकार ने वादा करके और उसके बाद अपने कर्तव्य से मुकर कर सबसे गरीब ग्रामीणों को उनकी जमीन से वंचित करने का अनोखा तरीका निकाला है। भोले-भाले ग्रामीणों को झांसे में लिया गया है।हाई कोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार को इन मामलों में संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। ग्रामीणों ने निजी बातचीत और डीएम की ओर से दिए गए आश्वासन के आधार पर अपनी जमीन दी है, लेकिन आज तक उस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। संविधान के अनुच्छेद 300ए का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 300ए के तहत कानून के अनुसार ही किसी नागरिक की संपत्ति छीनी जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि दिया गया आश्वासन वैध विचार का हिस्सा था। राज्य सरकार इसे अस्वीकार नहीं कर सकती। इसलिए राज्य सरकार को आज से 10 सप्ताह के भीतर वादे के आधार पर अंतिम निर्णय लेने और नैनी सैनी रनवे के निर्माण के लिए जिन ग्रामीणों की जमीन अधिग्रहित की गई है, उन्हें नियुक्ति देने पर विचार करने का निर्देश दिया जाता है। समिति की आई प्रतिक्रियानैनी सैनी समिति के अध्यक्ष कुंदन सिंह महार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खुशी जताई। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने हमारी 27.5 हेक्टेयर जमीन ली, लेकिन वादे के अनुसार रोजगार नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला हमारे संघर्ष की जीत है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, उत्तराखंड सरकार को अब 10 सप्ताह के भीतर यह तय करना होगा कि किन ग्रामीणों को सरकारी नौकरी दी जाए। कुंदन कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल ग्रामीणों के लिए राहत लेकर आया है, बल्कि यह सरकारों के लिए भी एक चेतावनी है कि वे किए गए वादों से मुकर नहीं सकते। (पिथौरागढ़ से प्रेम पुनेथा के इनपुट के साथ)
You may also like
भाजपा ने प्रदेश भर में बूथ स्तर पर मनाई आम्बेडकर जयंती
पांच लाख लाओ पत्नी ले जाओ, ससुर की डिमांड सुन दामाद हैरान
भीमराव अंबेडकर जयंती पर CM भजनलाल शर्मा ने लोगों को दिया बड़ा तोहफा, जल्द शुरू होगी ये खास योजना
कंबल में लिपटी लाश: लिव-इन पार्टनर की हैवानियत का खुलासा
इस्लाम अपनाना चाहते थे बाबासाहेब अंबेडकर, लेकिन इस वजह से चुना बौद्ध धर्म!