मथुरा: वृंदावन में श्री हित राधा केलि कुंज आश्रम चलाने वाले प्रेमानंद महाराज लगातार सुर्खियों में रहते हैं। उनका एक और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इसमें वह आजकल के युवाओं के चरित्र पर सवाल उठाते दिख रहे हैं। उनका कहना है कि अगर कोई लड़का या लड़की शादी से पहले चार लोगों से रिलेशनशिप में रह चुकी है तो वे अपने पति या पत्नी से संतुष्ट नहीं रह पाएंगे। उनके इस बयान की काफी चर्चा हो रही है।
प्रेमानंद महाराज पहले भी जीवन से जुड़े मुद्दों पर अपने विचार रखते रहे हैं। देश और विदेश में उनके लाखों फॉलोअर्स हैं। उनके वृंदावन आश्रम में हर रोज मिलने आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मशहूर क्रिकेटर विराट कोहली और उनकी पत्नी अनुष्का शर्मा भी समय-समय पर प्रेमानंद महाराज का दर्शन करने के लिए आते रहते हैं।
कानपुर के ब्राह्मण परिवार में जन्मप्रेमानंद महाराज का बचपन से ही आध्यात्मिक झुकाव था। उनका जन्म 1969 में कानपुर के पास सरसौल ब्लॉक के अखारी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका मूल नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय है। माता का नाम रमा देवी और पिता का नाम शंभू पांडेय है। उनका एक छोटे भाई भी है। प्रेमानंद महाराज ने 13 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया और संन्यास ले लिया। उनके गुरु का नाम श्री गौरांगी शरण है।
दोनों किडनियां खराब, हफ्ते में तीन दिन डायलसिसप्रेमानंद महाराज पिछले कई सालों से किडनी की बीमारी से ग्रस्त हैं। समय समय पर उनको डायलिसिस कराना पड़ता है। दरअसल, 35 साल की उम्र में उनके पेट में भयंकर दर्द उठा। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। वहां पता चला कि कि उनकी दोनों किडनी खराब हो चुकी है। प्रेमानंद महाराज में हफ्ते में तीन बार डायलसिस की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
13 साल की उम्र में घर छोड़ने का फैसलाप्रेमानंद महाराज के परिवार में हमेशा से भक्तिमय माहौल रहा है। जब वह पांचवीं कक्षा में थे तभी से गीता का पाठ करना शुरू कर दिया था। धीरे धीरे उनका झुकाव आध्यात्म की तरफ होने लगा। 13 साल का होते ही उन्होंने सांसारिक मोह माया को त्यागने का फैसला ले लिया। संन्यासी जीवन की शुरुआत में प्रेमानंद महाराज का नाम आरयन ब्रह्माचारी रखा गया।
कानपुर से बनारस, फिर पहुंचे वृंदावनकानपुर से प्रेमानंद महाराज सबसे पहले बनारस पहुंचे। यहां वे गंगा में प्रतिदिन तीन बार स्नान करते और तुलसी घाट पर भगवान शिव और गां गंगा का ध्यान और पूजन करते। संन्यासी जीवन की दिनचर्या में प्रेमानंद महाराज ने कई दिन भूखे रहकर बिताया। इसके बाद वह वृंदावन आ गए। यहां राधारानी और श्रीकृष्ण की वंदना शुरू कर दी। वे यहां राधा वल्लभ संप्रदाय से जुड़े और सत्संग करने लगे।
प्रेमानंद महाराज पहले भी जीवन से जुड़े मुद्दों पर अपने विचार रखते रहे हैं। देश और विदेश में उनके लाखों फॉलोअर्स हैं। उनके वृंदावन आश्रम में हर रोज मिलने आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मशहूर क्रिकेटर विराट कोहली और उनकी पत्नी अनुष्का शर्मा भी समय-समय पर प्रेमानंद महाराज का दर्शन करने के लिए आते रहते हैं।
कानपुर के ब्राह्मण परिवार में जन्मप्रेमानंद महाराज का बचपन से ही आध्यात्मिक झुकाव था। उनका जन्म 1969 में कानपुर के पास सरसौल ब्लॉक के अखारी गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका मूल नाम अनिरुद्ध कुमार पांडेय है। माता का नाम रमा देवी और पिता का नाम शंभू पांडेय है। उनका एक छोटे भाई भी है। प्रेमानंद महाराज ने 13 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया और संन्यास ले लिया। उनके गुरु का नाम श्री गौरांगी शरण है।
दोनों किडनियां खराब, हफ्ते में तीन दिन डायलसिसप्रेमानंद महाराज पिछले कई सालों से किडनी की बीमारी से ग्रस्त हैं। समय समय पर उनको डायलिसिस कराना पड़ता है। दरअसल, 35 साल की उम्र में उनके पेट में भयंकर दर्द उठा। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। वहां पता चला कि कि उनकी दोनों किडनी खराब हो चुकी है। प्रेमानंद महाराज में हफ्ते में तीन बार डायलसिस की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है।
13 साल की उम्र में घर छोड़ने का फैसलाप्रेमानंद महाराज के परिवार में हमेशा से भक्तिमय माहौल रहा है। जब वह पांचवीं कक्षा में थे तभी से गीता का पाठ करना शुरू कर दिया था। धीरे धीरे उनका झुकाव आध्यात्म की तरफ होने लगा। 13 साल का होते ही उन्होंने सांसारिक मोह माया को त्यागने का फैसला ले लिया। संन्यासी जीवन की शुरुआत में प्रेमानंद महाराज का नाम आरयन ब्रह्माचारी रखा गया।
कानपुर से बनारस, फिर पहुंचे वृंदावनकानपुर से प्रेमानंद महाराज सबसे पहले बनारस पहुंचे। यहां वे गंगा में प्रतिदिन तीन बार स्नान करते और तुलसी घाट पर भगवान शिव और गां गंगा का ध्यान और पूजन करते। संन्यासी जीवन की दिनचर्या में प्रेमानंद महाराज ने कई दिन भूखे रहकर बिताया। इसके बाद वह वृंदावन आ गए। यहां राधारानी और श्रीकृष्ण की वंदना शुरू कर दी। वे यहां राधा वल्लभ संप्रदाय से जुड़े और सत्संग करने लगे।
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