'टाइगर जिंदा है', 'तांडव', 'डॉक्टर जी', 'बंदिश बैंडिट्स 2' जैसे प्रॉजेक्ट्स का हिस्सा रहे ऐक्टर परेश पाहुजा हाल ही में फिल्म 'लॉर्ड कर्जन की हवेली' और वेब सीरीज '13वीं: सम लेसन्स आर नॉट टॉट इन क्लासरूम्स' को लेकर चर्चा में रहे। इसी सिलसिले में हमने उनसे की खास बातचीत:
अहमदाबाद के एक मिडल क्लास परिवार में बड़े होते हुए ऐक्टिंग का चस्का कैसे लगा?
ऐक्टिंग के बारे में जानकारी कॉलेज मिली, मगर उस वक्त मुझे पोस्ट ग्रेजुएशन करके एक जॉब चाहिए थी क्योंकि हमारे पास वो सपोर्ट सिस्टम नहीं था। छोटे शहरों में हमारे घरवालों को भी पता नहीं होता है कि कैसे सपोर्ट करें, तो हर मिडल क्लास लड़के की तरह मेरी भी यही सोच थी कि पढ़ाई खत्म करके जॉब करना है। इसलिए, ऐक्टिंग से मैं बहुत बाद में जुड़ा और इसमें किस्मत का बड़ा हाथ था, क्योंकि मुझे तो मुंबई आना ही नहीं आना था लेकिन मुझे किसी और शहर में एडमिशन ही नहीं मिला। मुझे यहीं एडमिशन मिला तो मैंने यहां पढ़ाई की। फिर ऐक्टिंग की, फिर म्यूजिक हुआ तो कहीं न कहीं मुझे लगता है कि आपके साथ जो होना होता है, वही होता है। मैंने तो जब भी किसी चीज के लिए एक्स्ट्रा कोशिश की, वो नहीं हुई है। जो चीजें खुद अचानक हुई हैं वो मेरे लिए बेस्ट रहा है।
आपकी सीरीज क्लासरूम से बाहर मिलने वाली शिक्षा पर जोर देती है और कहते हैं कि बुरे वक्त से बड़ा शिक्षक कोई और नहीं होता। आपका सबसे मुश्किल दौर क्या रहा? उसने आपको क्या सिखाया?
मेरे लिए पिछला साल सबसे मुश्किल रहा, क्योंकि कोविड महामारी के बाद से पूरी इंडस्ट्री ही उस दौर से गुजर रही थी कि क्या होगा? तो इंतजार का दौर बड़ा लंबा हो गया था और मुझे मौके के लिए इंतज़ार करना पसंद नहीं है। तब मैंने सोचा कि इस एनर्जी को सही जगह मोड़ना जरूरी है और मैंने अपना पहला कॉन्सर्ट किया। म्यूजिक को सीरियसली लेना शुरू किया क्योंकि उस पर मेरा थोड़ा कंट्रोल था कि मैं घर बैठकर भी म्यूजिक कर सकता हूं और फिर चीजें ठीक होने लगीं। ऐक्टिंग में भी मौके मिलने लगा, तो मेरी सीख यह है कि सही मौके का इंतजार करने से बेहतर है कि खुद कुछ क्रिएट करो। जब क्रिएट करते हैं तो मौके भी बढ़ते हैं। यह मेरे लिए मुश्किल दौर की सबसे बड़ी सीख रही है।
फिल्म इंडस्ट्री से आपको क्या सीख मिली?
इंडस्ट्री ने धैर्य सिखाया है। यह सिखाया कि वक्त बदलता रहता है, आपको यह भरोसा बनाए रखना होता है कि अच्छी चीजें होती हैं और आपके साथ अच्छी चीजें होंगी। वो उम्मीद बनाए रखना बहुत जरूरी है। नसीब से अभी हम बहुत अच्छे समय में रह रहे हैं, जहां इतने सारे प्लेटफॉर्म हैं, जिसकी वजह से हम इतनी सारी कहानियां कह पा रहे हैं।
सीरीज में अपने किरदार रितेश की तरह आप भी ऐक्टिंग से पहले एडवरटाइजिंग और कारपोरेट जॉब में संतुष्ट नहीं थे। ऐसे में, इस किरदार से कितना रिलेट किया?
मैं क्लाइंट सर्विसिंग, एडवरटाइजिंग में है। कभी-कभी ऐसा होता है कि आप ऐसी जॉब में होते हैं जो सही है। अच्छे पैसे मिल रहे हैं, पर आपकी रूह खुश नहीं है। उसके लिए आप एक खोज शुरू करते हैं कि आपका दिल किस काम में है, क्योंकि अगर आप बेमन से कोई काम करते हैं तो जिंदगी बहुत उदासीन और लंबी लगती है। फिर, आप इंतजार करते हैं कि ऑफिस के घंटे खत्म हो और तब मेरी जिंदगी शुरू हो। मुझे वो नहीं चाहिए था कि मैं अपनी जिंदगी ऑफिस के बाद या वीकेंड्स पर जी रहा हूं। मैं चाहता था कि मेरा काम और जिंदगी साथ-साथ चले तो मैंने उससे बहुत रिलेट किया।
अपने करियर में आपने सलमान खान, डिंपल कपाड़िया, पंकज त्रिपाठी जैसे दिग्गजों के साथ काम किया है। उनसे अदाकारी का कोई सबक सीखा?
बिल्कुल, ये सब इतने सीनियर ऐक्टर हैं। इतने सालों से कैमरे के आगे हैं तो ऐक्टिंग के अलावा भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। जैसे 'टाइगर ज़िंदा है' में एक अंडर वाटर सीन था, जिसमें सिर्फ मेरा क्लोजअप था। सलमान सर को रुकने की कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि मेरा क्लोज अप था, फिर भी वो रुके रहे, मेरे साथ डायलॉग बोलने के लिए। मैं उनकी सिंसिएरिटी, कमिटमेंट और अपने को-ऐक्टर के लिए सम्मान का कायल हो गया। मेरे लिए वह बहुत बड़ी बात थी कि इतने बड़े सुपरस्टार होने के बावजूद वे अंडरवाटर में सिर्फ मुझे क्यू देने के लिए रुके हैं। एसे ही, तांडव के दौरान मैंने अपने सीन के लिए एक छोटी सी प्लेलिस्ट बनाई थी, तो डिंपल जी आईं और पूछा कि क्या सुन रहे हो तो मैंने बताया कि मैम इस सीन के लिए मैंने एक प्लेलिस्ट बनाई है। उन्होंने पूछा कि ये क्या है, तो मैंने बताया कि मैं हर सीन के हिसाब से एक छोटी सी प्ले लिस्ट बनाता हूं, उस मूड में जाने के लिए। जब वो सीन हुआ तो उन्होंने कहा कि तुम इस सीन में बहुत अच्छे थे, मुझे भी ये टेक्निक अपनानी चाहिए और उन्होंने अपना एक सीन दिया कि इसके लिए गाने चुनों। मुझे लगा कि यार, उन्होंने सैकड़ों फिल्में की हैं। उन्हें मुझ जैसे नए ऐक्टर से सीखने की जरूरत नहीं है, मगर वह नया सीखना चाहती हैं तो मैंने उनके लिए एक प्लेलिस्ट बनाई और सीन के बाद उन्होंने आकर कहा
अहमदाबाद के एक मिडल क्लास परिवार में बड़े होते हुए ऐक्टिंग का चस्का कैसे लगा?
ऐक्टिंग के बारे में जानकारी कॉलेज मिली, मगर उस वक्त मुझे पोस्ट ग्रेजुएशन करके एक जॉब चाहिए थी क्योंकि हमारे पास वो सपोर्ट सिस्टम नहीं था। छोटे शहरों में हमारे घरवालों को भी पता नहीं होता है कि कैसे सपोर्ट करें, तो हर मिडल क्लास लड़के की तरह मेरी भी यही सोच थी कि पढ़ाई खत्म करके जॉब करना है। इसलिए, ऐक्टिंग से मैं बहुत बाद में जुड़ा और इसमें किस्मत का बड़ा हाथ था, क्योंकि मुझे तो मुंबई आना ही नहीं आना था लेकिन मुझे किसी और शहर में एडमिशन ही नहीं मिला। मुझे यहीं एडमिशन मिला तो मैंने यहां पढ़ाई की। फिर ऐक्टिंग की, फिर म्यूजिक हुआ तो कहीं न कहीं मुझे लगता है कि आपके साथ जो होना होता है, वही होता है। मैंने तो जब भी किसी चीज के लिए एक्स्ट्रा कोशिश की, वो नहीं हुई है। जो चीजें खुद अचानक हुई हैं वो मेरे लिए बेस्ट रहा है।
आपकी सीरीज क्लासरूम से बाहर मिलने वाली शिक्षा पर जोर देती है और कहते हैं कि बुरे वक्त से बड़ा शिक्षक कोई और नहीं होता। आपका सबसे मुश्किल दौर क्या रहा? उसने आपको क्या सिखाया?
मेरे लिए पिछला साल सबसे मुश्किल रहा, क्योंकि कोविड महामारी के बाद से पूरी इंडस्ट्री ही उस दौर से गुजर रही थी कि क्या होगा? तो इंतजार का दौर बड़ा लंबा हो गया था और मुझे मौके के लिए इंतज़ार करना पसंद नहीं है। तब मैंने सोचा कि इस एनर्जी को सही जगह मोड़ना जरूरी है और मैंने अपना पहला कॉन्सर्ट किया। म्यूजिक को सीरियसली लेना शुरू किया क्योंकि उस पर मेरा थोड़ा कंट्रोल था कि मैं घर बैठकर भी म्यूजिक कर सकता हूं और फिर चीजें ठीक होने लगीं। ऐक्टिंग में भी मौके मिलने लगा, तो मेरी सीख यह है कि सही मौके का इंतजार करने से बेहतर है कि खुद कुछ क्रिएट करो। जब क्रिएट करते हैं तो मौके भी बढ़ते हैं। यह मेरे लिए मुश्किल दौर की सबसे बड़ी सीख रही है।
फिल्म इंडस्ट्री से आपको क्या सीख मिली?
इंडस्ट्री ने धैर्य सिखाया है। यह सिखाया कि वक्त बदलता रहता है, आपको यह भरोसा बनाए रखना होता है कि अच्छी चीजें होती हैं और आपके साथ अच्छी चीजें होंगी। वो उम्मीद बनाए रखना बहुत जरूरी है। नसीब से अभी हम बहुत अच्छे समय में रह रहे हैं, जहां इतने सारे प्लेटफॉर्म हैं, जिसकी वजह से हम इतनी सारी कहानियां कह पा रहे हैं।
सीरीज में अपने किरदार रितेश की तरह आप भी ऐक्टिंग से पहले एडवरटाइजिंग और कारपोरेट जॉब में संतुष्ट नहीं थे। ऐसे में, इस किरदार से कितना रिलेट किया?
मैं क्लाइंट सर्विसिंग, एडवरटाइजिंग में है। कभी-कभी ऐसा होता है कि आप ऐसी जॉब में होते हैं जो सही है। अच्छे पैसे मिल रहे हैं, पर आपकी रूह खुश नहीं है। उसके लिए आप एक खोज शुरू करते हैं कि आपका दिल किस काम में है, क्योंकि अगर आप बेमन से कोई काम करते हैं तो जिंदगी बहुत उदासीन और लंबी लगती है। फिर, आप इंतजार करते हैं कि ऑफिस के घंटे खत्म हो और तब मेरी जिंदगी शुरू हो। मुझे वो नहीं चाहिए था कि मैं अपनी जिंदगी ऑफिस के बाद या वीकेंड्स पर जी रहा हूं। मैं चाहता था कि मेरा काम और जिंदगी साथ-साथ चले तो मैंने उससे बहुत रिलेट किया।
अपने करियर में आपने सलमान खान, डिंपल कपाड़िया, पंकज त्रिपाठी जैसे दिग्गजों के साथ काम किया है। उनसे अदाकारी का कोई सबक सीखा?
बिल्कुल, ये सब इतने सीनियर ऐक्टर हैं। इतने सालों से कैमरे के आगे हैं तो ऐक्टिंग के अलावा भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। जैसे 'टाइगर ज़िंदा है' में एक अंडर वाटर सीन था, जिसमें सिर्फ मेरा क्लोजअप था। सलमान सर को रुकने की कोई जरूरत नहीं थी क्योंकि मेरा क्लोज अप था, फिर भी वो रुके रहे, मेरे साथ डायलॉग बोलने के लिए। मैं उनकी सिंसिएरिटी, कमिटमेंट और अपने को-ऐक्टर के लिए सम्मान का कायल हो गया। मेरे लिए वह बहुत बड़ी बात थी कि इतने बड़े सुपरस्टार होने के बावजूद वे अंडरवाटर में सिर्फ मुझे क्यू देने के लिए रुके हैं। एसे ही, तांडव के दौरान मैंने अपने सीन के लिए एक छोटी सी प्लेलिस्ट बनाई थी, तो डिंपल जी आईं और पूछा कि क्या सुन रहे हो तो मैंने बताया कि मैम इस सीन के लिए मैंने एक प्लेलिस्ट बनाई है। उन्होंने पूछा कि ये क्या है, तो मैंने बताया कि मैं हर सीन के हिसाब से एक छोटी सी प्ले लिस्ट बनाता हूं, उस मूड में जाने के लिए। जब वो सीन हुआ तो उन्होंने कहा कि तुम इस सीन में बहुत अच्छे थे, मुझे भी ये टेक्निक अपनानी चाहिए और उन्होंने अपना एक सीन दिया कि इसके लिए गाने चुनों। मुझे लगा कि यार, उन्होंने सैकड़ों फिल्में की हैं। उन्हें मुझ जैसे नए ऐक्टर से सीखने की जरूरत नहीं है, मगर वह नया सीखना चाहती हैं तो मैंने उनके लिए एक प्लेलिस्ट बनाई और सीन के बाद उन्होंने आकर कहा
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