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माता सीता को अशोक वाटिका में दिव्य खीर खिलाने आए थे देवता, रामायण की इन 5 बातों को नहीं जानते ज्यादातर लोग

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महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के बारे में वर्णन किया गया है। रामायण की मूल कहानी तो ज्यादातर लोग जानते हैं। इस कहानी के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न थे। श्रीराम का विवाह हुआ, जिसके बाद उनका राज्याभिषेक होना था लेकिन मंथरा ने रानी केकैयी की मति हरण करके भरत का राजतिलक कराने के लिए उन्हें उकसाया और दूसरी तरफ श्रीराम को वनवास भेजने का सुझाव दिया। राजा दशरथ ने कैकेयी को दिए वचन की वजह से श्रीराम को वनवास भेज दिया। श्रीराम के साथ माता सीता और लक्ष्मण भी वनवास के चले गए। इसके बाद माता सीता का रावण द्वारा अपहरण और फिर श्रीराम द्वारा रावण का वध करने की कहानी रामायण का सार है। रामायण की मूल कहानी के साथ कुछ ऐसे भी अनसुने पहलू हैं, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। आइए, जानते हैं रामायण के अनसुने पहलू।
माता सीता को अशोक वाटिका में लाने के बाद ब्रह्मा जी ने भेजी थी दिव्य खीर image

रावण जब माता सीता का अपहरण करके अशोक वाटिका में लाया था, तो माता सीता भूख से व्याकुल थीं लेकिन वे रावण का अधर्म से कमाया अन्न नहीं खाना चाहती थीं। यह देखकर ब्रह्मा जी ने इंद्रदेव के हाथों एक दिव्य खीर भेजी। इंद्र ने छल से सभी राक्षसों को यह दिव्य खीर खिलाई, जिसे खाकर सारे राक्षस गहरी नींद में सो गए और इसके बाद माता सीता ने ब्रह्मा जी के अनुरोध पर खीर खाई, जिससे कि उनकी भूख-प्यास शांत हो गई।


रावण को रंभा नाम की अप्सरा ने दिया था शाप image

रामायण के अनुसार रावण ज्ञानी होने के साथ मायावी भी था इसलिए अपनी माया का प्रयोग करके कहीं भी जा सकता था। एक बार रावण स्वर्गलोक पहुंचा। वहां वो रंभा नाम की अप्सरा पर मोहित हो गया। वो रंभा के साथ प्रेम संबंध बनाने की चाह रखने लगा लेकिन रंभा ने रावण की मंशा को समझकर उससे कहा कि मैं आपके बड़े भाई कुबेर के पुत्र नलकुबेर की प्रेमिका हूं इसलिए मैं आपकी पुत्रवधु हुई लेकिन रावण ने रंभा की एक नहीं सुनी और उसके साथ दुराचार किया। रावण के इस काम से क्रोधित होकर रंभा ने रावण को शाप दिया कि भविष्य में यदि रावण किसी भी स्त्री को उसकी मर्जी के बिना स्पर्श करेगा, तो उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे। यही वजह है कि रावण ने माता सीता को कभी स्पर्श नहीं किया।


गिद्धराज जटायु के पिता अरुण हैं सूर्यदेव के रथ के सारथी image

बहुत कम लोग यह बात जानते हैं कि सीता हरण के समय जिस गिद्धराज जटायु ने माता सीता को बचाने का प्रयास किया था, उनके पिता अरुण हैं। अरुण सूर्यदेव के रथ के सारथी भी हैं। जटायु की मृत्यु के बाद भगवान राम ने जटायु का अंतिम संस्कार गोदावरी नदी के तट पर किया था। छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में गिद्धराज जटायु का प्रसिद्ध मंदिर भी है।


33 करोड़ देवी-देवता नहीं, 33 देवी-देवता हैं image

आपने अक्सर सुना होगा कि लोग कहते हैं हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं लेकिन रामायण के अरण्डकांड के 14वें सर्ग के 14वें श्लोक में इस बात का उल्लेख किया गया है कि केवल 33 देवी-देवता हैं जिन्हें आमतौर पर 33 कोटि के देवी-देवता कहा जाता है। रामायण ग्रंथ के अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार यही 33 कोटि के देवी-देवताओं की श्रेणी है।


शूर्पनखा ने मन ही मन दिया था रावण को शाप image

रावण की बहन शूर्पनखा राजा कालकेय के सेनापति विद्युतजिव्ह से प्रेम करती थी। शूर्पनखा विद्युतजिव्ह से विवाह करना चाहती थी लेकिन रावण ने राजा कालकेय के राज्य पर विजय प्राप्त करने के बाद विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। रावण यह बात जानता था कि उसकी बहन विद्युतजिव्ह से विवाह करना चाहती है लेकिन फिर भी उसने अपनी विजय को सबसे ऊपर रखा। जब शूर्पनखा को इस बात का पता चला, तो उसने अपने प्रेमी की मृत्यु पर मौन विलाप किया और अपने भाई रावण को मन ही मन शाप दिया कि "जिस तरह तूने मेरा घर बसने से पहले ही उजाड़ दिया है उसी तरह मैं भी तेरे घर, परिवार और पूरे कुल के विनाश का कारण बनूंगी। तेरा विनाश मेरे ही कारण होगा।"

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