शनि की साढ़ेसाती क्या है

मार्च में हुए शनि गोचर के बाद तीन राशियों पर साढ़ेसाती का असर हुआ। जिस राशि में साढ़े साती शुरू होती है वह साढ़े सात साल तक चलती है और उस अवधि में शनि ग्रह का उस राशि पर प्रभाव पड़ता है। साढ़े साती के तीन चरण होते हैं, शुरुआती, बीच का और अंत का। अभी जिन तीन राशियों पर साढ़ेसाती चल रही है उनमें मेष का पहला चरण चल रहा है, मीन का मध्य चरण है और कुंभ का अंतिम चरण है। शनि की साढ़ेसाती में मध्यम चरण सबसे ज्यादा सावधानी से चलने वाला होता है, इस समय शनि जातक की परीक्षा लेते हैं। साढ़ेसाती में शनि से जुड़े उपाय करने चाहिए और मेहनत में कोई कमी नहीं रखनी चाहिए। साथ ही अपना आचरण अच्छा रखना चाहिए।
शनि की ढैय्या क्या है
शनि की ढैय्या किसी राशि में ढाई साल तक रहती है। ढैय्या दो प्रकार की होती है जिस राशि के चतुर्थ भाव में ढैय्या लगती है उसे लघु कल्याणी ढैय्या कहते हैं और अष्टम भाव में लगने वाली ढैय्या कंटक शनि कहलाती है। अभी सिंह राशि के अष्टम ढैय्या और धनु की चतुर्थ ढैय्या चल रही है। जिस राशि में शनि की ढैय्या चलती है उनके लिए समय थोड़ा कठिन होता है। अष्टम भाव में चलने वाली ढैय्या में शनि अपना अधिक प्रभाव दिखाते हैं और उनके लिए समय थोड़ा अधिक कष्टकारी माना जाता है। ऐसे में जातकों को धैर्य रखने और मेहनत करने की जरूरत होती है। साथ ही शनि देव के उपाय करने से शनि की ढैय्या में राहत मिलती है।
शनि की महादशा क्या है
शनि की महादशा सबसे लंबी चलती है। ये करीब 19 साल की होती है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का असर राशि पर होता है लेकिन शनि की महादशा व्यक्ति की कुंडली में बन रही स्थिति के हिसाब से लगती है। इसमें व्यक्ति की कुंडली में यह देखा जाता है कि शनि किस ग्रह के साथ हैं, लग्न या कुंडली के किस भाव में बैठे हैं, उस व्यक्ति की राशि से शनि का कैसा संबंध है और वह किस राशि में हैं, कुंडली के किन भावों पर शनि की दृष्टि पड़ रही है, इससे आधार पर तय होता है कि शनि की महादशा में व्यक्ति पर कैसा प्रभाव पड़ेगा। चूंकि महादशा काफी लंबी होती है ऐसे में समय-समय पर ग्रहों की स्थिति बदलती रहती है, ऐसे में अलग-अलग समय पर व्यक्ति के जीवन पर अलग-अलग शुभ और अशुभ प्रभाव पड़ता है। वहीं शनि की महादशा के अंदर ही कुछ महीनों से लेकर कुछ वर्षों की अन्य ग्रहों की अंतर्दशा चलती है और अंतर्दशा के अंदर कुछ हफ्तों से कुछ महीनों की प्रत्यंतर दशा चलती है। प्रत्यंतर दशा में शनि की सबसे छोटी दशा होती है, जिसमें पड़ने वाले प्रभावों से पता लगाया जा सकता है कि शनि कितने लाभकारी और कष्टकारी रहेंगे।
शनि देव के उपाय
- शिवजी, हनुमान जी और शनि देव की पूजा करें। इनसे जुड़े मंत्र, स्तोत्र चालीसा आदि का पाठ करें।
- शनि देव के सामने लाल बाती से सरसों के तेल का दीया जलाएं। शनि देव को काले तिल, शमी के पत्ते, काली उड़द की दाल आदि चढ़ाएं।
- पीपल के पेड़ की जड़ में जल दें और सरसों के तेल का दीया जलाएं।
- जरूरतमंदों को जूते, काले चने, सरसों का तेल आदि का दान करें।
- रोगियों और बुजुर्गों की सेवा करें। सद्आचरण अपनाएं।
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