सोने की कीमतों में पिछले कुछ महीनों से अप्रत्याशित वृद्धि देखी जा रही है, जो किसी के लिए भी चौंकाने वाली है। साल 2024 के अगस्त महीने में 10 ग्राम सोने का मूल्य 74,222 रुपये था, लेकिन 12 अप्रैल, 2025 तक यह बढ़कर 96,450 रुपये तक पहुंच गया, और ट्रेड के दौरान यह 97,000 रुपये तक भी छुआ। यानी महज 7 महीनों में सोना 22,000 रुपये से भी ज्यादा महंगा हो गया है। इस अचानक बढ़ोतरी ने आम लोगों के लिए परेशानी पैदा कर दी है, खासकर शादी-ब्याह के सीजन में, जब लोग अपनी जरूरत के अनुसार सोने की ज्वैलरी नहीं खरीद पा रहे हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सोने की कीमत में यह बबल फूटने वाला है? 2013 के घटनाक्रम से समझते हुए, एक्सपर्ट्स इस बारे में चेतावनी दे रहे हैं। उस समय सोने की कीमतों में रिकॉर्ड तेजी के बाद अचानक गिरावट आई थी। क्या वही कहानी फिर से दोहराई जा सकती है? आइए जानते हैं कि 2013 में ऐसा क्या हुआ था और क्यों विशेषज्ञ वर्तमान में सतर्क हैं।?
2013 में गोल्ड क्रैश का इतिहास
सोने की कीमतों में ऐतिहासिक उतार-चढ़ाव के उदाहरणों में 2013 का गोल्ड क्रैश प्रमुख है। उस साल सोने की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई थीं, जब वर्ल्ड मार्केट में इसका भाव 1930 डॉलर प्रति औंस तक जा पहुंचा था। लेकिन इसके बाद अचानक एक बड़ी गिरावट आई और सोना टूटकर 1100 डॉलर प्रति औंस पर आ गया, यानी लगभग 47% की भारी गिरावट। इस गिरावट के पीछे कई कारण थे। सबसे प्रमुख कारण था अमेरिका द्वारा Quantitative Easing (QE) में कमी करने का ऐलान, जिसके चलते वैश्विक वित्तीय स्थिति में बदलाव आया। इसके अलावा, गोल्ड ETF से भारी पैमाने पर निवेशकों ने अपनी स्थिति निकाली और डॉलर की मजबूती ने भी सोने की कीमतों पर दबाव डाला। इस तरह, 2013 में सोने की कीमतों में अचानक आई गिरावट ने निवेशकों को बड़ा झटका दिया।
एक्सपर्ट दे रहे सोने को लेकर बड़ी चेतावनी!
द बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन के चेयरमैन, योगेश सिंघल ने इंडिया टीवी से बातचीत में सोने की वर्तमान तेजी को लेकर गंभीर चेतावनी दी है। उनका कहना है कि सोने में जिस प्रकार की बढ़त देखी जा रही है, वह एक खतरे का संकेत हो सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि इतिहास खुद को दोहराता है, और वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए सोने की कीमतों में तेजी एक अस्थिर स्थिति का संकेत है। सिंघल के मुताबिक, डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वॉर और वैश्विक आर्थिक अस्थिरता के कारण सोने की मांग बढ़ी है, क्योंकि इसे सेफ हेवन (सुरक्षित निवेश) के तौर पर देखा जा रहा है। इसके अलावा, ट्रेड वॉर के चलते डॉलर भी कमजोर हुआ है, जो सोने की तेजी को और बढ़ावा दे रहा है। साथ ही, दुनियाभर के केंद्रीय बैंक सोने की भारी खरीददारी कर रहे हैं।
हालांकि, योगेश सिंघल का मानना है कि यह स्थिति हमेशा के लिए नहीं रहने वाली है। उनके अनुसार, जैसे ही वैश्विक स्थितियां सुधरती हैं, सोने में बड़ी गिरावट आ सकती है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि यदि 2013 जैसे हालात बनते हैं, तो सोने का भाव 3230 डॉलर प्रति औंस से घटकर 1820 डॉलर प्रति औंस तक गिर सकता है। इससे घरेलू बाजार में सोने की कीमत 97 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम से घटकर 55 से 60 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम तक आ सकती है।
उन्होंने यह भी बताया कि परंपरागत रूप से सोने और चांदी के बीच एक निश्चित रेश्यो रहता था, जहां चांदी का भाव सोने के आधे से कम हुआ करता था। लेकिन अब यह रेश्यो टूट चुका है, क्योंकि अब सोने की कीमत 97 हजार रुपये के आसपास है, जबकि चांदी भी इसी स्तर पर है। यह बड़ी गिरावट की ओर इशारा करता है।
रिकॉर्ड हाई के बावजूद Gold ETF से निकासी शुरू
हालांकि सोने की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई हैं, लेकिन इसके बावजूद Gold ETF से निकासी की रफ्तार तेज हो गई है। एएमएफआई (Association of Mutual Funds in India) के आंकड़ों के अनुसार, मार्च में निवेशकों ने गोल्ड ईटीएफ से कुल 77 करोड़ रुपये की निकासी की है। यह आंकड़ा इस बात का संकेत है कि सोने के बढ़ते मूल्य के बावजूद निवेशकों की प्राथमिकताएं बदल रही हैं और वे गोल्ड ईटीएफ से अपने निवेश को निकालने लगे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस समय सोने में निवेश करने से पहले निवेशकों को अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए। उनका कहना है कि सोने की कीमतों में जो रिकॉर्ड वृद्धि हो रही है, वह एक अस्थिरता का संकेत हो सकती है और इस कारण से निवेशकों को इस समय सावधानी से कदम उठाने की आवश्यकता है।
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