राजस्थान सरकार अब पारंपरिक बजरी की जगह पर्यावरण के अनुकूल एम-सेंड (M-Sand) को बढ़ावा देने की दिशा में तेजी से कदम उठा रही है। खान विभाग के प्रमुख शासन सचिव टी. रविकांत ने जानकारी दी कि वर्तमान में प्रदेश में एम-सेंड का उत्पादन 8 मिलियन टन प्रतिवर्ष है, जिसे बढ़ाकर वर्ष 2028-29 तक 30 मिलियन टन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए नई एम-सेंड इकाइयों की स्थापना को प्रोत्साहित किया जा रहा है। हाल ही में सरकार द्वारा 24 प्लॉट्स की सफलतापूर्वक नीलामी की गई है, जो इस दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है। टी. रविकांत ने बताया कि सभी जिलाधिकारियों को पत्र जारी कर कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि एम-सेंड उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की सुचारु आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। इसके अलावा, वेस्ट डंप्स से परमिट जारी करने तथा मेसेनरी स्टोन के साथ प्लॉट तैयार कर नीलामी कराने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है।
एम-सेंड को मिला उद्योग का दर्जा, नई नीति से उद्यमियों को राहत और अवसर
राजस्थान सरकार ने पर्यावरण-संवेदनशील निर्माण सामग्री एम-सेंड (M-Sand) को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक बड़ा निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा द्वारा 4 दिसंबर, 2024 को घोषित नई एम-सेंड नीति के तहत इसे उद्योग का दर्जा प्रदान किया गया है। साथ ही, राजस्थान निवेश प्रोत्साहन योजना (RIIPS) में विशेष रियायतें भी शामिल की गई हैं। इस नीति का मुख्य उद्देश्य एम-सेंड को एक सहज, किफायती और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प के रूप में स्थापित करना है, जिससे नदियों से बजरी की अत्यधिक निर्भरता कम हो और पारिस्थितिकीय संतुलन बना रहे। प्रमुख खान सचिव के अनुसार, नई नीति में निवेशकों और उद्यमियों के लिए पात्रता मापदंडों को सरल किया गया है। अब एम-सेंड यूनिट लगाने के लिए तीन वर्षों के अनुभव और तीन करोड़ रुपये के टर्नओवर जैसी शर्तें समाप्त कर दी गई हैं। इससे नए और छोटे उद्यमियों को भी इस क्षेत्र में प्रवेश का अवसर मिलेगा, जिससे राज्य में रोजगार के नए रास्ते खुलेंगे और निर्माण सामग्री की मांग पूरी करने में भी मदद मिलेगी।
एम-सेंड नीति को मिला नया प्रोत्साहन: अब सरकारी निर्माण में 50% तक अनिवार्य उपयोग
राजस्थान सरकार ने एम-सेंड (M-Sand) को निर्माण क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए एक और बड़ा कदम उठाया है। खान विभाग के प्रमुख शासन सचिव टी. रविकांत ने जानकारी दी कि अब सरकारी और गैर-सरकारी निर्माण परियोजनाओं में एम-सेंड का उपयोग अनिवार्य कर दिया गया है। पहले जहां न्यूनतम 25% उपयोग की शर्त थी, उसे अब बढ़ाकर 50% तक कर दिया गया है। इस निर्णय से न सिर्फ एम-सेंड की राज्यभर में मांग में वृद्धि होगी, बल्कि नई उत्पादन इकाइयों की स्थापना, निवेश के नए अवसर और रोजगार सृजन को भी बल मिलेगा। साथ ही खनन क्षेत्र में निकलने वाले ओवरबर्डन (Overburden) जैसे अवशेषों का भी बेहतर उपयोग संभव हो पाएगा। सरकार की इस पहल से एक ओर जहां पर्यावरण संरक्षण को गति मिलेगी, वहीं दूसरी ओर बजरी के एक किफायती और भरोसेमंद विकल्प के रूप में एम-सेंड को निर्माण उद्योग में एक नई पहचान मिलेगी।
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