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शहर दर शहर क्यों बदलती है सोने की कीमत? जानिए 4 बड़े कारण जो Gold Rates को करते हैं प्रभावित

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भारत में सोना खरीदना केवल एक परंपरा या आभूषणों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आर्थिक स्थायित्व और निवेश का अहम जरिया भी है। शादियों से लेकर त्योहारों तक, हर शुभ मौके पर सोना खरीदना हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा रहा है। हालांकि, आपने गौर किया होगा कि अलग-अलग शहरों में सोने की कीमतें एक जैसी नहीं होतीं। कहीं सोना कुछ सस्ता मिलता है तो कहीं थोड़ा महंगा। आखिर ऐसा क्यों होता है?

इस कीमत में बदलाव के पीछे केवल अंतरराष्ट्रीय बाजार ही जिम्मेदार नहीं होते, बल्कि इसके चार प्रमुख घरेलू कारण भी हैं जो हर खरीदार को जानना चाहिए। आइए जानते हैं कि कौन-से हैं वो चार कारक जो भारत के विभिन्न शहरों में सोने की कीमतों में फर्क लाते हैं:

1️⃣ आयात शुल्क और टैक्स का स्थानीय प्रभाव

भारत एक बड़ा सोना आयातक देश है, और यहां विदेशों से सोने के आगमन पर इंपोर्ट ड्यूटी लगाई जाती है। इसके अलावा, सोना खरीदने पर 3% GST (वस्तु एवं सेवा कर) भी ग्राहकों से वसूला जाता है। हालांकि ये कर दरें देशभर में समान हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासनिक प्रक्रियाएं, नियमों के पालन की गंभीरता और लागू करने के तरीकों में अंतर होने के कारण, वास्तविक रिटेल प्राइस में थोड़े-बहुत बदलाव देखने को मिलते हैं।

2️⃣ ट्रांसपोर्टेशन और लॉजिस्टिक्स की लागत

सोने की डिलीवरी अक्सर समुद्री बंदरगाहों—जैसे मुंबई, चेन्नई या कोलकाता—के जरिए होती है। इसके बाद इसे देश के भीतरी हिस्सों तक पहुंचाया जाता है। लॉजिस्टिक्स यानी परिवहन में लगने वाला खर्च हर स्थान के लिए अलग होता है। उदाहरण के लिए, मुंबई जैसे शहर में जहां बंदरगाह पास है, वहां ट्रांसपोर्ट खर्च कम होता है। जबकि छत्तीसगढ़, राजस्थान या बिहार जैसे स्थानों पर सोना पहुंचाने की लागत अधिक होती है। यह अंतर अंतिम कीमत में शामिल हो जाता है।

3️⃣ स्थानीय मांग और सप्लाई की डाइनेमिक्स

हर क्षेत्र की सोने के प्रति खपत और खरीदने की प्रवृत्ति अलग होती है। दक्षिण भारत, खासकर केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में शादी-ब्याह, पूजा-पाठ और त्योहारों के दौरान भारी मात्रा में सोने की खरीदारी होती है। इस वजह से यहां कड़ी प्रतिस्पर्धा रहती है और ज्वैलर्स ग्राहकों को लुभाने के लिए कम मेकिंग चार्ज या छूट भी देते हैं।

इसके विपरीत, जहां मांग कम है, वहां न तो इतनी छूट मिलती है और न ही मूल्य में ज्यादा लचीलापन देखने को मिलता है।

4️⃣ हॉलमार्किंग और गुणवत्ता नियंत्रण की लागत

हॉलमार्किंग का उद्देश्य शुद्धता सुनिश्चित करना है और यह भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के माध्यम से किया जाता है। लेकिन हर शहर में हॉलमार्किंग सेंटर नहीं होते। ऐसे में यदि किसी स्थान पर यह सुविधा नहीं है तो ज्वैलर्स को अपने सोने को दूसरे शहर में प्रमाणित कराना पड़ता है, जिससे अतिरिक्त लागत जुड़ जाती है।

साथ ही कुछ प्रतिष्ठित ब्रांड अपनी ओर से और भी क्वालिटी चेक कराते हैं, जो कीमत में फर्क ला सकता है।

जब आप अगली बार सोना खरीदने जाएं और देखें कि एक शहर में कीमत कुछ और है और दूसरे में अलग, तो यह समझ लीजिए कि इसके पीछे सिर्फ मार्केट वैल्यू नहीं, बल्कि कर व्यवस्था, परिवहन खर्च, स्थानीय मांग और क्वालिटी चेक जैसी कई जमीनी वजहें जिम्मेदार हैं। सही मूल्य और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए इन सभी पहलुओं को समझकर ही खरीदारी करें।

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