Next Story
Newszop

धर्मवीर भारती ने हिंदी साहित्य में छोड़ी अमिट छाप, आज भी प्रकाशित है उनकी रचनाओं की मशाल

Send Push

New Delhi, 3 सितंबर . हिंदी साहित्य के जगत में अगर किसी नाम को अलग पहचान के लिए याद किया जाता है, तो वह हैं धर्मवीर भारती, जिन्होंने हिंदी साहित्य को नई दिशा दिखाई. 25 सितंबर 1926 को इलाहाबाद में जन्मे धर्मवीर भारती ने छात्र जीवन से ही लेखन और पत्रकारिता को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था. इलाहाबाद में ही उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे अध्यापन और साहित्य-सृजन के साथ-साथ ‘परिमल’ संस्था से सक्रिय रूप से जुड़े रहे.

कॉलेज के दिनों से ही उन्होंने लेखन शुरू कर दिया था. खास बात यह रही कि कवि के रूप में पहचान मिलने से पहले ही उनका एक उपन्यास, दो कहानी-संग्रह, एक समीक्षा-ग्रंथ और अनुवाद की पुस्तक प्रकाशित हो चुकी थी. बाद में जब अज्ञेय द्वारा संपादित ‘दूसरा सप्तक’ में उनकी कविताएं शामिल हुईं, तो हिंदी साहित्य जगत ने उन्हें एक नए नजरिए से देखना शुरू किया. वे कविताएं कम लिखते थे, लेकिन जब लिखते तो अपनी गहरी संवेदना और ईमानदार दृष्टि से पाठकों को छू जाते थे.

धर्मवीर भारती का मानना था कि कविता का दायरा इतना व्यापक होना चाहिए कि वह मानव की चिर-आदिम प्रवृत्तियों का भी मर्म छू सके. यही कारण है कि ‘ठंडा लोहा’, ‘सात गीत वर्ष’ और ‘कनुप्रिया’ जैसे संग्रह हिंदी कविता को नई संवेदना और सौंदर्य प्रदान करते हैं.

हालांकि, उनकी असली पहचान गद्य के अप्रतिम शिल्पकार के रूप में बनी. उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ आज भी हिंदी के सबसे लोकप्रिय उपन्यासों में गिना जाता है, वहीं ‘अंधा युग’ को आधुनिक हिंदी नाटक की एक शिखर रचना माना जाता है. ‘सूरज का सातवां घोड़ा’ ने उन्हें कहानी कहने की एक बिल्कुल अलग शैली का लेखक सिद्ध किया.

पत्रकारिता में भी उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी. ‘धर्मयुग’ पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में उन्होंने हिंदी पत्रकारिता को नई दिशा दी. उस दौर में ‘धर्मयुग’ केवल पत्रिका नहीं, बल्कि अपने समय का एक सांस्कृतिक दस्तावेज और मशाल थी.

भारती को उनके योगदान के लिए 1972 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया. इसके अलावा, संगीत नाटक अकादमी का सर्वोच्च सम्मान, भारत-भारती पुरस्कार, व्यास सम्मान और महाराष्ट्र गौरव सहित अनेक अलंकरण उन्हें मिले.

4 सितंबर 1997 को धर्मवीर भारती का निधन हुआ, लेकिन उनकी रचनाएं आज भी पाठकों के मन-मस्तिष्क में जीवित हैं. उन्होंने यह सिद्ध किया कि साहित्य केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि समाज और समय की आत्मा को प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण है.

धर्मवीर भारती की साहित्यिक यात्रा इस बात का प्रमाण है कि गहरी संवेदनशीलता, सामाजिक सरोकार और सृजनशील ईमानदारी से किया गया लेखन पीढ़ियों तक जीवित रहता है.

डीएससी/एएस

Loving Newspoint? Download the app now