New Delhi, 24 अगस्त . 25 अगस्त 2012 को दुनिया ने एक ऐसे नायक को खो दिया, जिसने चांद पर पहला कदम रखकर मानवता के सपनों को नई उड़ान दी. नील आर्मस्ट्रांग, ये वो नाम है जो साहस, विज्ञान और असंभव को संभव बनाने की जीवटता का प्रतीक है. अपोलो 11 मिशन के कमांडर के रूप में उन्होंने 20 जुलाई 1969 को चंद्रमा की सतह पर कदम रखा. यह क्षण न केवल इतिहास के पन्नों में, बल्कि हर उस दिल में अमर है, जो अनंत आकाश की ओर देखता है.
नील एल्डन आर्मस्ट्रांग का जन्म 5 अगस्त 1930 को ओहायो (अमेरिका) के छोटे से कस्बे वपाकोनेटा में हुआ. बचपन से ही उन्हें आसमान में उड़ते विमानों से लगाव था. 16 साल की उम्र में, जब अधिकांश किशोर साइकिल और खेलों में व्यस्त होते हैं, तब आर्मस्ट्रांग ने पायलट लाइसेंस हासिल कर लिया था. यहीं से उनकी जिंदगी ने आसमान की ओर उड़ान भरनी शुरू कर दी.
1949 से 1952 तक उन्होंने अमेरिकी नौसेना में बतौर नेवल एविएटर सेवा दी और कोरियाई युद्ध के दौरान 78 लड़ाकू मिशन पूरे किए. इस साहस के लिए उन्हें ‘एयर मेडल’ और दो ‘गोल्ड स्टार’ से सम्मानित किया गया. इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और फिर नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एयरोनॉटिक्स यानी एनएसीए (बाद में नासा) में बतौर टेस्ट पायलट शामिल हो गए. वह एक्स-15 जैसे हाइपरसोनिक रॉकेट विमानों के टेस्ट फ्लाइट में शामिल हुए और 3,989 मील प्रति घंटे (मैक 5.74) की रफ्तार तक पहुंचे. उनकी यह तकनीकी समझ और हिम्मत ही थी जिसने उन्हें 1962 में नासा के ‘न्यू नाइन’ एस्ट्रोनॉट्स में शामिल कर दिया.
20 जुलाई 1969 की रात दुनिया भर की निगाहें चांद पर टिकी थीं. अपोलो 11 मिशन के कमांडर नील आर्मस्ट्रांग और उनके साथी बज एल्ड्रिन चंद्रमा पर उतरने वाले थे, जबकि माइकल कॉलिन्स कक्षीय यान में चक्कर लगा रहे थे. लैंडिंग के अंतिम क्षण बेहद तनावपूर्ण थे. जब ‘ईगल’ नाम का लूनर मॉड्यूल चांद की सतह के करीब पहुंचा तो लैंडिंग साइट पर बड़े-बड़े पत्थर दिखाई दिए. तब आर्मस्ट्रांग ने खुद कंट्रोल अपने हाथ में लिया और बेहद नजाकत से ‘ईगल’ को सुरक्षित उतारा. यह एक इंसान के लिए छोटा कदम है, लेकिन पूरी मानवता के लिए एक बड़ी छलांग. यह वाक्य और वह क्षण इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गया.
आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन ने चांद पर करीब ढाई घंटे बिताए, प्रयोग किए, मिट्टी और पत्थर के नमूने इकट्ठे किए. यह न सिर्फ तकनीकी विजय थी, बल्कि मानव सभ्यता की सबसे बड़ी उपलब्धि थी.
अपोलो 11 के बाद आर्मस्ट्रांग ने नासा में दो साल तक प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाई और 1971 में उन्होंने नासा को अलविदा कहा. इसके बाद वह सिनसिनाटी विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग पढ़ाने लगे. उन्होंने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा नई पीढ़ी को प्रेरित करने और शोध को बढ़ावा देने में लगाया. नील आर्मस्ट्रांग को उनके योगदान के लिए अमेरिका का सर्वोच्च नागरिक सम्मान- प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम (1969), कांग्रेसनल स्पेस मेडल ऑफ ऑनर (1978) समेत अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले. 17 देशों ने उन्हें सम्मानित किया.
25 अगस्त 2012 को, 82 वर्ष की आयु में, हृदय संबंधी जटिलताओं के कारण उनका निधन हो गया. परंतु उनकी विरासत आज भी जिंदा है. 2014 में नासा ने अपने ड्राइडन फ्लाइट रिसर्च सेंटर का नाम बदलकर नील ए आर्मस्ट्रांग फ्लाइट रिसर्च सेंटर रख दिया. नील आर्मस्ट्रांग सिर्फ एक अंतरिक्ष यात्री नहीं थे, वे साहस और विज्ञान की शक्ति का प्रतीक थे. उनका पहला कदम केवल चांद की सतह पर नहीं पड़ा था, बल्कि उसने पूरी दुनिया के सपनों को नई दिशा दी थी.
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पीएसके/केआर
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