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भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन 10 वर्षों में 133 अरब डॉलर तक पहुंचा, निर्यात में भी आया उछाल

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New Delhi, 17 अगस्त . केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि ‘मेक इन इंडिया’ पहल को एक बड़ा प्रोत्साहन देते हुए, भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन 2014-15 से शुरू होकर एक दशक में 31 अरब डॉलर से बढ़कर 133 अरब डॉलर हो गया है.

केंद्रीय मंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट के माध्यम से बताया कि 2025-26 की पहली तिमाही में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में 2024-25 की इसी तिमाही की तुलना में 47 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई है.

उन्होंने आगे कहा, “हमारी सरकार ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई प्रयास किए हैं. परिणामस्वरूप, 2014 में हमारी केवल दो मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग यूनिट थीं, जो आज बढ़कर 300 से अधिक हो गई हैं.”

मोबाइल आयातक से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बनने का सफर सबसे शानदार रहा है.

केंद्रीय मंत्री गोयल ने कहा, “इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र ने सौर मॉड्यूल, नेटवर्किंग उपकरण, चार्जर एडेप्टर और इलेक्ट्रॉनिक पुर्जों के साथ बड़े पैमाने पर रोज़गार के अवसर भी पैदा किए हैं, जो हमारे निर्यात को मज़बूत करने में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं.”

इंडिया सेलुलर एंड इलेक्ट्रॉनिक्स एसोसिएशन (आईसीईए) द्वारा संकलित नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 12.4 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 8.43 अरब डॉलर था. इस गति के साथ, उद्योग निकाय का अनुमान है कि वित्त वर्ष के अंत तक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 46-50 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.

सबसे अच्छा प्रदर्शन मोबाइल फोन सेगमेंट का रहा, जो 55 प्रतिशत बढ़कर वित्त वर्ष 25 की पहली तिमाही के 4.9 अरब डॉलर से वित्त वर्ष 26 की पहली तिमाही में अनुमानित 7.6 अरब डॉलर हो गया.

गैर-मोबाइल इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में भी ठोस वृद्धि दर्ज की गई, जो 3.53 अरब डॉलर से बढ़कर अनुमानित 4.8 अरब डॉलर हो गया, जो कि 36 प्रतिशत की वृद्धि है. इसमें सौर मॉड्यूल, स्विचिंग और रूटिंग उपकरण, चार्जर एडेप्टर और पुर्जे और घटक जैसे प्रमुख प्रोडक्ट सेगमेंट शामिल हैं.

पिछले एक दशक में इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में ऐतिहासिक बदलाव आया है. यह वृद्धि फेज्ड मैन्युफैक्चरिंग प्रोग्राम (पीएमपी), उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजनाओं और राज्य-उद्योग के बीच मजबूत सहयोग जैसे सुनियोजित नीतिगत हस्तक्षेपों के कारण संभव हुई है.

एसकेटी/

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