New Delhi, 18 सितंबर . Supreme court ने देश के 17 राज्यों और 7 केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे अगले चार महीनों के भीतर ‘आनंद मैरिज एक्ट, 1909’ के तहत सिख विवाह (आनंद कारज) के रजिस्ट्रेशन के लिए अपने-अपने नियम बनाएं.
कोर्ट ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि इस कानून को दशकों तक लागू न करने की वजह से सिख समुदाय के साथ असमान व्यवहार हुआ है, जो संविधान के समानता के सिद्धांत के खिलाफ है.
Supreme court ने कहा कि देशभर में सिख दंपतियों के विवाह के रजिस्ट्रेशन में जो असमानताएं और अड़चनें रही हैं, वे संविधान की आत्मा के खिलाफ हैं. कोर्ट ने कहा कि यदि सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में नियम नहीं बनते हैं तो इससे सिख नागरिकों के अधिकारों का हनन होगा.
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि जब तक सभी राज्यों के अपने-अपने नियम अधिसूचित नहीं होते, तब तक सिख दंपति ‘आनंद कारज’ के विवाह को सामान्य विवाह कानूनों के तहत रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं. इनमें स्पेशल मैरिज एक्ट जैसे नियम शामिल हैं. साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि दंपति चाहें तो उनके विवाह प्रमाणपत्र पर यह स्पष्ट रूप से लिखा जाए कि उनका विवाह ‘आनंद कारज’ रीति से हुआ है.
यह आदेश Supreme court ने अमनजोत सिंह चड्ढा की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है.
याचिकाकर्ता का कहना था कि देश के विभिन्न हिस्सों में ‘आनंद मैरिज एक्ट’ के तहत विवाह पंजीकरण के नियमों की कमी और असमानता की वजह से सिख दंपतियों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कुछ राज्यों ने नियम बना लिए हैं, लेकिन ज्यादातर राज्यों ने अभी तक इसे लागू नहीं किया है.
इस आदेश के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि आनंद कारज के तहत विवाह पंजीकरण की प्रक्रिया पूरे देश में समान और सरल हो जाएगी. यह कदम सिख समुदाय के अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ उनके सामाजिक सम्मान को भी मजबूत करेगा. Supreme court ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को स्पष्ट समय सीमा दी है, जिससे वे चार महीनों के भीतर नियम बना कर अधिसूचित करें.
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वीकेयू/डीकेपी
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