मुंबई, 7 जुलाई . ब्लैक एंड व्हाइट पर्दे के दौर के बॉलीवुड के मशहूर कॉमेडियन जगदीप किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. वह शानदार एक्टर थे. उनके लिए फिल्मों में खास किरदार रचे जाते थे. ऐसा ही एक किस्सा है 1975 में आई फिल्म ‘शोले’ का. इसमें ‘सूरमा भोपाली’ का किरदार भी काफी लोकप्रिय रहा, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह किरदार पहले फिल्म की स्क्रिप्ट में था ही नहीं. फिल्म की पटकथा लिखने वाली सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी ने हल्की-फुल्की कॉमेडी के लिए इस किरदार को रचा था. इस किरदार को निभाकर जगदीप ने न सिर्फ फिल्म में कॉमेडी का तड़का लगाया, बल्कि इसे जीवन भर के लिए यादगार बना दिया.
इस किरदार के बाद लोग उन्हें ‘सूरमा भोपाली’ के नाम से ही जानने लगे. यह किरदार इतना लोकप्रिय हुआ कि बाद में ‘सूरमा भोपाली’ नाम की एक पूरी फिल्म भी बनाई गई, जिसे खुद जगदीप ने डायरेक्ट किया था.
जगदीप ऐसे कलाकार थे, जो जहां जाते, अपनी छाप छोड़कर आते थे. अपने डायलॉग, चेहरे के हावभाव और चुटीले अंदाज से दर्शकों के दिलों में उतरना उन्हें बखूबी आता था.
‘सूरमा भोपाली’ बनने से पहले जगदीप ने एक लंबा और संघर्षों भरा सफर तय किया था. उनका असली नाम सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी था. वह 29 मार्च 1939 को मध्य प्रदेश के दतिया नाम के छोटे से कस्बे में पैदा हुए थे. उनके पिताजी बैरिस्टर थे. पिता के देहांत के बाद घर की हालत काफी खराब हो गई. उस समय जगदीप काफी छोटे थे. उनकी मां मुंबई के अनाथालय में रोटियां बनाकर घर चलाने लगीं. अपनी मां को मेहनत करते देख छह साल के जगदीप ने कमाने का फैसला लिया और मुंबई की सड़कों पर कंघी, साबुन और खिलौने बेचना शुरू कर दिया. सामान बेचने के दौरान एक शख्स की नजर उन पर पड़ी और फिल्म में काम करने का ऑफर दिया.
दरअसल, उस वक्त बी.आर. चोपड़ा को ‘अफसाना’ फिल्म के एक सीन के लिए चाइल्ड आर्टिस्ट्स चाहिए थे. इस सीन के लिए कई बच्चों को लाया गया, जिनमें जगदीप भी थे. इस फिल्म में उन्होंने सिर्फ इसलिए काम किया, क्योंकि सामान बेचकर वह दिनभर में सिर्फ एक या डेढ़ रुपया कमा पाते थे, जबकि सेट पर उन्हें सिर्फ ताली बजाने के तीन रुपए मिल रहे थे. यहीं से उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ.
इसके बाद उन्होंने ‘दो बीघा जमीन’, ‘मुन्ना’, ‘हम पंछी एक डाल के’, और, ‘आर पार’ जैसी फिल्मों में छोटे-छोटे, लेकिन यादगार रोल किए. ‘हम पंछी एक डाल के’ में शानदार अभिनय के लिए उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी सम्मानित किया था.
एवीएम प्रोडक्शन ने उन्हें ‘भाभी’, ‘बरखा’ और ‘बिंदिया’ जैसी फिल्मों में हीरो के तौर पर लॉन्च किया. इन फिल्मों में उन्होंने सीधे-सादे लड़के का रोल किया. फिल्म ‘भाभी’ का गाना ‘चल उड़ जा रे पंछी’ आज भी लोगों को याद है, जिसमें वह अभिनेत्री नंदा के साथ दिखाई दिए थे. लेकिन जब उन्होंने शम्मी कपूर की फिल्म ‘ब्रह्मचारी’ में कॉमेडी की, तो दर्शकों ने माना कि वह हीरो से ज्यादा एक जबरदस्त हास्य अभिनेता हैं. इसके बाद उन्होंने कॉमेडियन के रूप में ही अपनी पहचान बना ली.
जगदीप 1960 और 70 के दशक में फिल्मों में हास्य का दूसरा नाम बन गए. उन्होंने ‘तीन बहुरानियां’, ‘खिलौना’, ‘जीने की राह’, ‘गोरा और काला’, ‘इंसानियत’, ‘चला मुरारी हीरो बनने’ जैसी कई फिल्मों के जरिए दर्शकों का मनोरंजन किया.
आपको जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने फिल्मों में खलनायक का किरदार भी निभाया. ‘शिकवा’, ‘धोबी डॉक्टर’, ‘मंदिर-मस्जिद’ जैसी फिल्मों में सीरियस और नेगेटिव रोल भी किए. उन्हें रामसे ब्रदर्स की हॉरर फिल्मों का भी पसंदीदा चेहरा माना जाता था. ‘पुराना मंदिर’ और ‘3डी सामरी’ में उनके किरदार को खूब पसंद किया गया.
करीब 70 साल तक फिल्मों से जुड़े रहने के बाद जगदीप ने 2017 में अपनी आखिरी फिल्म ‘मस्ती नहीं सस्ती’ में काम किया, जिसमें उनके साथ जॉनी लीवर, कादर खान, शक्ति कपूर और रवि किशन जैसे कलाकार थे.
जगदीप ने 8 जुलाई 2020 को 81 साल की उम्र में मुंबई स्थित उनके घर पर आखिरी सांस ली. आज भले ही वह हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका काम, उनका हास्य और उनके निभाए ‘सूरमा भोपाली’ जैसे किरदार आज भी सबके दिलों में जिंदा हैं.
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पीके/एकेजे
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