आज हम आपको बबूल की फली अर्थात उसके फल के बारे में बताएंगे। वैसे तो बबूल का हर भाग पत्तीयाँ, फूल, छाल और फली सभी औषधि है। यह कांटेदार पेड़ होता है। सम्पूर्ण भारत वर्ष में बबूल के लगाये हुए तथा जंगली पेड़ मिलते हैं। बबूल के पेड़ बड़े व घने होते हैं। ये कांटेदार होते हैं।
गर्मी के मौसम में इस पर पीले रंग के फूल गोलाकार गुच्छों में लगते है तथा सर्दी के मौसम में फलियां लगती हैं। इसकी लकड़ी बहुत मजबूत होती है। बबूल के पेड़ पानी के निकट तथा काली मिट्टी में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इनमें सफेद कांटे होते हैं जिनकी लम्बाई 1 सेमी से 3 सेमी तक होती है। इसके कांटे जोड़े के रूप में होते हैं। इसके पत्ते आंवले के पत्ते की अपेक्षा अधिक छोटे और घने होते हैं।
बबूल के तने मोटे होते हैं और छाल खुरदरी होती है। इसके फूल गोल, पीले और कम सुगंध वाले होते हैं तथा फलियां सफेद रंग की 7-8 इंच लम्बी होती हैं। इसके बीज गोल धूसर वर्ण (धूल के रंग का) तथा इनकी आकृति चपटी होती है।
विभिन्न भाषाओं में बबूल का नाम : संस्कृत में बबूल, बर्बर, दीर्घकंटका, हिन्दी में बबूर, बबूल, कीकर, बंगाली में बबूल गाछ, मराठी में माबुल बबूल, गुजराती में बाबूल, तेलगू में बबूर्रम, नक दुम्मा, नेला, तुम्मा, पंजाबी में बाबला, तमिल में कारुबेल। बबूल कफ (बलगम), कुष्ठ रोग (सफेद दाग), पेट के कीड़ों-मकोड़ों और शरीर में प्रविष्ट विष का नाश करता है।
बबूल का गोंद यह गर्मी के मौसम में एकत्रित किया जाता है। इसके तने में कहीं पर भी काट देने पर जो सफेद रंग का पदार्थ निकलता है। उसे गोंद कहा जाता है।लेकिन आज हम आपको बबूल की फली, फूल, छाल आदि के फायदे बताएंगे। आइये जानते है इसके बारे में…
बबूल की फली के फायदे | Baboolघुटनों का दर्द और अस्थि भंग : बबूल के बीजों को पीसकर तीन दिन तक शहद के साथ लेने से घुटनों के दर्द और अस्थि भंग दूर हो जाता है और हडि्डयां वज्र के समान मजबूत हो जाती हैं। घुटनों में चिकनाई आजाती है जिन्हें डॉक्टर ने घुटनों के रिप्लेसमेंट की बोल दिया उनको भी यह ठीक करने का सामर्थ्य रखते है।
टूटी हड्डी जल्द जोड़ने के लिए : बबूल की फलियों का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित रूप से सेवन करने से टूटी हड्डी जल्द ही जुड़ जाती है। यह उपाय बहुत की प्रभावी और कारगर है।
दांत का दर्द : बबूल की फली के छिलके और बादाम के छिलके की राख में नमक मिलाकर मंजन करने से दांत का दर्द दूर हो जाता है।
पेशाब का अधिक मात्रा में आना : बबूल की कच्ची फली को छाया में सुखाकर उसे घी में तलकर पाउडर बना लें। इस पाउडर की 3-3 ग्राम मात्रा रोजाना सेवन करने से पेशाब का ज्यादा आना बंद होता है।
शारीरिक शक्ति और कमज़ोरी मिटाएँ : बबूल की फलियों को छाया में सुखा लें और इसमें बराबर की मात्रा मे मिश्री मिलाकर पीस लेते हैं। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित रूप से पानी के साथ सेवन से करने से शारीरिक शक्ति में इज़ाफ़ा होता है और सभी कमज़ोरी वाले रोग दूर हो जाते हैं।
रक्त बहने पर : बबूल की फलियां, आम के बौर, मोचरस के पेड़ की छाल और लसोढ़े के बीज को एकसाथ पीस लें और इस मिश्रण को दूध के साथ मिलाकर पीने से खून का बहना बंद हो जाता है।
मर्दाना ताक़त : बबूल की कच्ची फलियों के रस में एक मीटर लंबे और एक मीटर चौडे़ कपड़े को भिगोकर सुखा लेते हैं। एक बार सूख जाने पर उसे दुबारा भिगोकर सुखा लेते है। इसी प्रकार इस प्रक्रिया को 14 बार करते हैं। इसके बाद उस कपड़े को 14 भागों में बांट लेते हैं, और रोजाना एक टुकड़े को 250 ग्राम दूध में उबालकर पीने से मर्दाना ताक़त बढ़ती है।
अतिसार (दस्त) : बबूल की दो फलियां खाकर ऊपर से छाछ (मट्ठा) पीने से अतिसार में लाभ मिलता है।
बबूल की छाल, पत्ती और फूल के फायदे :मुंह के रोग : बबूल की छाल को बारीक पीसकर पानी में उबालकर कुल्ला करने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
पीलिया : बबूल के फूलों को मिश्री के साथ मिलाकर बारीक पीसकर चूर्ण तैयार कर लें। फिर इस चूर्ण की 10 ग्राम की फंकी रोजाना दिन में देने से ही पीलिया रोग मिट जाता है। या बबूल के फूलों के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर 10 ग्राम रोजाना खाने से पीलिया रोग मिट जाता है।
माता-बहनो के मासिक-धर्म संबन्धी विकार : 20 ग्राम बबूल की छाल को 400 मिलीलीटर पानी में उबालकर बचे हुए 100 मिलीलीटर काढ़े को दिन में तीन बार पिलाने से भी मासिक-धर्म में अधिक खून का आना बंद हो जाता है। या लगभग 250 ग्राम बबूल की छाल को पीसकर 8 गुने पानी में पकाकर काढ़ा बना लेते हैं। जब यह काढ़ा आधा किलो की मात्रा में रह जाए तो इस काढ़े की योनि में पिचकारी देने से मासिक-धर्म जारी हो जाता है और उसका दर्द भी शान्त हो जाता है।
आंखों से पानी बहना : बबूल के पत्ते को बारीक पीस लेते हैं। इसके बाद उसमें थोड़ा सा शहद मिला लें, फिर इसे काजल के समान आंखों पर लगाने से आंखों से पानी निकलना खत्म हो जाता है।
कंठपेशियों का पक्षाघात : बबूल की छाल के काढ़े से रोजाना दो बार गरारा करने से गले की शिथिलता समाप्त हो जाती है।
गले के रोग : बबूल के पत्ते और छाल एवं बड़ की छाल सभी को बराबर मात्रा में मिलाकर 1 गिलास पानी में भिगो देते हैं। इस प्रकार तैयार हिम से कुल्ले करने से गले के रोग मिट जाते हैं।
अम्लपित्त या एसीडिटी : बबूल के पत्तों का काढ़ा बनाकर उसमें 1 ग्राम आम का गोंद मिला देते हैं। इस काढ़े को शाम को बनाते हैं और सुबह पीते हैं। इस प्रकार से इस काढ़े को सात दिन तक लगातार पीने से अम्लपित्त का रोग मिट जाता है।
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