इस देश में शायद ही कोई व्यक्ति हो जो सैम मानेकशॉ के बारे में न जानता हो। मानेकशॉ भारतीय सेना के एक ऐसे अध्यक्ष थे, जिनके नेतृत्व में भारत ने 1971 में हुए युद्ध में पाकिस्तान को हराया था। बाग्लादेश को नया देश बनाने में भी सैम मानेकशॉ की अहम भूमिका रही थी इतना ही नहीं मानेकशॉ 1942 में दूसरे विश्व युद्ध का हिस्सा भी रहे थे। क्या आप सभी को इनका पूरा नाम पता है? नहीं पता तो चलिए हम बताते हैं। जी हां इनका पूरा नाम ‘होरमुजजी फ्रामदी जमशेदजी मानेकशॉ’ था। लेकिन इनकी बहादुरी और निडरता की वज़ह से लोग इन्हें बचपन से ही सैम बहादुर के नाम से पुकारते थे।
बता दें कि सैम मानेकशॉ एक ऐसे जवान थे जिनकी बहादुरी और साहस की वजह से वो भारतीय सेना के पहले ऐसे जनरल बने थे। जिनको प्रमोट कर फील्ड मार्शल की रैंक दे दी गई थी। वहीं सैम के जन्म की बात करें तो इनका जन्म तीन अप्रैल 1914 को अमृतसर में हुआ था। बता दें कि सैम मानेकशॉ से जुड़ा कई किस्सा है। जो काफ़ी रोचक भी हैं। इन्हीं में से एक क़िस्सा इंदिरा गांधी और सैम मानेकशॉ से जुड़ा हुआ है। बता दें कि जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भारत और पाकिस्तान के बीच जंग को लेकर मानेकशॉ से सवाल, जवाब कर रही थीं। उसी समय प्रधानमंत्री के हर सवाल का जवाब देते हुए मानेक शॉ ने मैडम की जगह “प्रधानमंत्री” कह कर पुकारा था। और कहीं भी संबोधन में उन्होंने “मैडम” शब्द का प्रयोग नहीं किया था। जब बाद में इस विषय पर मानेकशॉ से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “मैडम” शब्द एक खास वर्ग के लिए प्रयोग किया जाता है। इस लिए वह संबोधन में हमेशा “प्रधानमंत्री” ही कहते थे।

ऐसी ही कई कहानियां मानेकशॉ से जुड़ी हुई है। मालूम हो जब मानेकशॉ 1942 में दूसरे विश्व युद्ध का हिस्सा थे। इसी युद्ध के दौरान बर्मा के मोर्चे पर एक जापानी सैनिक ने उनके शरीर पर सात गोलियां उतार दी थी। उनका एक साथी उन्हें अपने कंधे पर उठा कर न लाया होता, तो शायद वो जिंदा नहीं बचते।
ऐसा इंसान अगर अपने अंतिम दिनों में किसी रणछोड़दास ‘पागी’ को याद करता है, तो जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर ये इंसान कौन था। आखिर क्यों अंतिम दिनों में यह नाम सैम मानेकशॉ की जुबान पर रहता था। तो आइए जानते है इससे जुड़ी बातें…
पदचिन्हों से दुश्मनों की लोकेशन बता देते थे रणछोड़दास…
बता दें कि रणछोड़दास ‘पागी’ का जन्म गुजरात के एक आम परिवार में हुआ था। बनासकांठा में मौजूद उनका गांव पाकिस्तान की सीमा से लगा हुआ था। रणछोड़दास के परिवार के लोग भेड़, बकरी और ऊंट पालकर अपना गुज़ारा करते थे। उनका बचपन और जवानी इसी तरह गुज़री। वह 58 साल के रहे होंगे, जब उनकी ज़िंदगी एकदम से बदल गई। जी हां यह उम्र का वही पड़ाव था। जिस दौरान अधिकतर लोग घर की चारपाई पर आराम करना उचित समझते है, लेकिन इस उम्र में ‘पागी’ के विशेष हुनर ने उन्हें बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक, वनराज सिंह झाला द्वारा पुलिस गाइड नियुक्त किया गया। कहते हैं रणछोड़दास के पास एक ख़ास हुनर था, जिसके जरिए वो ऊंट के पैरों के निशान देखकर ही बता देते थे कि उस पर कितने आदमी सवार थे। इंसानों के पैरों के निशान देखकर वो उनके वजन, उम्र और वे कितनी दूर चले गए होंगे, इसका अंदाजा तक लगा लेते थे।
खास बात यह कि ‘पागी’ द्वारा लगाया गया अनुमान एकदम सटीक बैठता था। रणछोड़दास के इसी हुनर ने आगे चलकर उन्हें भारतीय सेना का हिस्सा बनाया। उन्हें भारतीय सेना में एक स्काउट के रूप में भर्ती किया गया था। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध से ठीक पहले पाकिस्तानी सेना ने कच्छ क्षेत्र के कई गांवों पर कब्ज़ा कर लिया। ऐसे में रणछोड़दास को भारतीय सेना ने जिम्मेदारी दी थी कि वो दुश्मन का पता लगाए, ताकि उसे खदेड़ा जा सके।
सेना ने जो दी जिम्मेदारी, उसे बख़ूबी निभाया…
ऐसे में सेना से ‘पागी’ को जो जिम्मेदारी मिली थी। उसे उन्होंने बखूबी निभाया। जंगल के अंधेरे में छिपे करीब 1200 पाक सैनिकों का पता लगाकार ‘पागी’ उन पर भारी पड़े थे। रेगिस्तानी रास्तों पर अपनी पकड़ के कारण उन्होंने सेना को निर्धारित समय से 12 घंटे पहले गंतव्य तक पहुंचा दिया था। इस मिशन के लिए मानेकशॉ ने उन्हें खु़द चुना था। सैम मानेकशॉ ने ही रणछोड़दास के लिए सेना में ‘पागी’ नाम का विशेष पद बनाया गया था। ‘पागी’ मतलब ऐसा गाइड, जो पैरों के निशान पढ़ लेता हो, जो रेगिस्तान में भी रास्ता दिखाने का हुनर रखता हो। 1965 के युद्ध के बाद ‘पागी’ ने 1971 के युद्ध में भी अहम भूमिका निभाई थी। इस युद्ध में ‘पागी’ को सेना के मार्गदर्शन के साथ-साथ मोर्चे पर गोला-बारूद लाने की जिम्मेदारी भी दी गई थी।
मालूम हो कि पाकिस्तान के ‘पालीनगर’ पर तिरंगा लहराने की जीत में ‘पागी’ का रोल अहम रहा था। कहते हैं इस जीत के बाद मानेकशॉ ने उन्हें अपनी जेब से 300 रु का नकद पुरस्कार दिया था। इसके अलावा उन्हें उनके योगदान के लिए ‘संग्राम पदक’, ‘पुलिस पदक’ और ‘ग्रीष्मकालीन सेवा पदक’ जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। पागी के इसी योगदान की वज़ह से मानेकशॉ ने अपने अंतिम समय में उन्हें याद किया और आख़िरी समय में जब सैम मानेकशॉ को तमिलनाडु के वेलिंगटन अस्पताल में भर्ती कराया गया था, तब अक्सर उनकी जुबान पर ‘पागी’ का नाम रहता था। तो यह कहानी थी एक ऐसे व्यक्ति की। जिसे देश का एक सेना अध्यक्ष मरते दम तक याद रखता है।
रणछोड़दास ‘पागी’ का अंतिम समय…
रणछोड़दास पागी ने 2009 में सेना से सेवानिवृत्त ली थी, उस वक्त उनकी उम्र 108 वर्ष थी। अब आप सोच सकते हैं की उस व्यक्ति के पास कितना तजुर्बा था। रणछोड़दास का निधन 112 वर्ष की आयु में 2013 में हुआ था।
एक बॉर्डर का नाम इस शख़्स के नाम…
यह पहली बार हुआ है की किसी आम आदमी के नाम पर बॉर्डर का नाम रखा गया है, रणछोड़ दास ‘पागी’ के नाम से कच्छ बनासकांठा सीमा के पास सुईग्राम के बीएसएफ ( BSF) बॉर्डर का नाम रणछोड़दास पागी रखा गया है और यहाँ उनकी एक प्रतिमा भी स्थापित की गई है। इतना ही नहीं लोकगायकों ने उन्हें अपनी गायकी में अक्सर याद किया है पर शायद आज की युवा पीढ़ी ऐसे क्रांतिवीर, देशभक्त और मार्गदर्शक को भूल चुकी है। तो यह कहानी थी। एक ऐसे ‘पागी’ की। जिसे देश का एक सेना अध्यक्ष अपने अंतिम समय तक याद रखता है। आशा करते हैं यह कहानी आपको पसंद आएगी। कहानी पसंद आए तो इसे शेयर करना न भूलें और अपने बहुमूल्य कमेंट से अवगत अवश्य कराएं।
You may also like
सोनाली बेंद्रे: बॉलीवुड की चमकती सितारा और उनकी अनकही कहानियाँ
Realme Narzo 80x 5G Launching April 9: Budget-Friendly 5G Smartphone with Big Battery and Smooth Display
RBI Loan EMI New Rules : बुरा हालत है और लोन की EMI नहीं भरपा रहे हैं तो RBI ने दिया बड़ा राहत, बैंकों को दिए गए निर्देश ⁃⁃
एनके आर्या स्मृति क्रिकेट प्रतियोगिता शुरू
बदरीनाथ धाम पहुंचा बीकेटीसी का तीस सदस्यीय अग्रिम दल