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बिहार का आ गया सर्वेः जानें कौन पडा रहा किस पर भारी-किसकी होगी जीत-यहां देंखे

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पटना: बिहार में एक तरफ जहां एनडीए और महागठबंधन अपने-अपने गठबंधन को मजबूत करने में जुटे हैं वहीं एक दूसरे पर भारी पड़ने की भी पूरी कोशिश कर रहे हैं. इस बार चुनाव में प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज के आने से चुनावी माहौल और रोचक हो गया है. नेता लोग तमाम तरह के समीकरण बिठाने में जुटे हैं. चुनावी नतीजों से पहले तो सभी अपनी जीत का दावा करते हैं लेकिन, इस बार बिहार चुनाव कई मामलों के चलते ज्यादा रोचक हो गया है.

इस बार के बिहार के नतीजे कई और चीजों को साफ कर देंगे. यह भी पता चलेगा कि कांग्रेस के वोट चोरी के आरोपों पर जनता का मूड क्या है..ऐसे में राजनीति के जानकार लोग और तमाम तरह की सर्वे करने वाली एजेंसियां भी चुनाव से पहले अपने सर्वे और अनुमान बता रही हैं. जानकार लोग जहां अपना अनुमान जता रहे हैं वहीं सर्वे करने वाली संस्थाएं अपने आंकड़े बता रही हैं. अभी Ascendia ने ‘बैटल ऑफ बिहार-2025′ नाम से एक सर्वे किया है. तो चलिए आपको बताते हैं कि ये सर्वे क्या कहता है और इसके आंकड़े क्या हैं.

सर्वे में एक बात जो सामने आई है वह यह है कि एनडीए और महागठबंधन दोनों के वोटर अलग-अलग हैं और उनमें कोई बड़ा बदलाव नहीं दिख रहा है. सर्वे के सैंपल साइज की बात करें तो इसमें 18 जिलों और 9 प्रशासनिक इकाइयों से इनपुट लिया गया है. सर्वे रिपोर्ट की मानें तो बिहार के दलित या अनुसूचित वर्ग के लोगों का झुकाव एनडीए की तरफ है. राज्य में इस वर्ग की संख्या कुल आबादी का लगभग 20 प्रतिशत है. ऐसे में इस वर्ग के वोटर चुनाव में बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं.

इस मामले में एनडीए को महागठबंधन पर बढ़त मिलती दिख रही है. दलितों की प्रमुख उप-जातियों में चमार पासवान और मुसहर में से पासवान और मुसहर वर्ग के लोग एनडीए का समर्थन कर सकते हैं. इसके पीछे की बड़ी वजह एलजेपी मुखिया चिराग पासवान और हम प्रमुख जीतन राम मांझी दोनों एनडीए के सहयोगी हैं. ऐसे में इन्हें अपना नेता मानने वाले लोग एनडीए की तरफ जा सकते हैं. राज्य में चमार औ पासवान की संख्या कुल आबादी का लगभग 5-5 प्रतिशत है.

महागठबंधन को मजबूत कर सकता है मुस्लिम समुदाय
बिहार में मुस्लिम समुदाय की आबादी 17 प्रतिशत है. इस समुदाय के लोग महागठबंधन को समर्थन देंगे. इससे पहले 2020 के चुनाव में मुस्लिम बाहुल्य सीमांचल के काफी लोगों ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को वोट किया था. इंडिया गठबंधन को इसका नुकसान भी हुआ था. सर्वे के अनुसार, इस बार मुस्लिम समुदाय सतर्क है और बड़ी संख्या में लोग महागठबंधन को समर्थन दे सकते हैं. लोग सभा चुनाव में मुस्लिम समुदाय ने एआईएमआईएम की जगह महागठबंधन को ही समर्थन दिया था. हालांकि, इस समुदाय के लोग राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ से थोड़े नाराज भी बताए जा रहे हैं क्योंकि उनकी इस यात्रा में किसी बड़े मुस्लिम नेता को जगह नहीं दी गई. Ascendia सर्वे के मुताबिक, अगर विपक्ष मुस्लिम समुदाय को मनाने में चूकता है तो महागठबंधन को सीमांचल में नुकसान उठाना पड़ सकता है.

दलित और EBC वोट महागठबंधन को दे सकता है मजबूती
सर्वे रिपोर्ट की मानें तो राज्य का चमार समुदाय पासवान विरोधी भावना के कारण महागठबंधन के प्रति ज्यादा झुकाव रखता है. सर्वे के अनुसार, दलित युवाओं में उत्तर प्रदेश के चंद्रशेखर रावण का भी असर है. ऐसे में उनकी आजाद समाज पार्टी का रुख भी दलित वोटरों को प्रभावित कर सकता है.

ईबीसी से एनडीए होगा मजबूत?
अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की बात करें तो यह राज्य की आबादी का 26 प्रतिशत है. बिहार का यह वर्ग एनडीए का समर्थन करता रहा है. इस बार के चुनाव में भी ईबीसी वोटर एनडीए के साथ ही खड़े हो सकते हैं. हालांकि, इस सर्वे रिपोर्ट के बाद महागठबंधन ने अतिपिछड़ा को ध्यान में रखते हुए स्पेशल मेनिफेस्टो जारी किया है. अब यह टिकट बंटवारे के बाद साफ होगा कि क्या ईबीसी को उनकी संख्या के अनुपात में टिकट मिलते हैं. इसी पर ईबीसी का वोट निर्भर करेगा कि वह एनडीए की तरफ ज्यादा झुकता है या महागठबंधन की तरफ.

किधर जाएगा बिहार का अन्य पिछड़ा वर्ग
राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की संख्या 25 प्रतिशत है. इस कैटेगरी में आने वाला यादव वर्ग आरजेडी का जोरदार समर्थक माना जाता है. बात करें ओबीसी के गैर यादव वर्ग की तो वह एनडीए के समर्थक माने जाते हैं. कोइरी-कुर्मी और कुशवाहा आबादी बिहार में एनडीए का समर्थन करती रही है. इनकी आबादी 7 प्रतिशत है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुर्मी समुदाय से हैं और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी कुशवाहा समुदाय से आते हैं. कुशवाहा समुदाय का वोट खींचने वाले उपेंद्र कुशवाहा भी एनडीए में हैं. सर्वे में चेतावनी दी गई है कि कुशवाहा समुदाय लोकसभा चुनावों की तरह महागठबंधन की तरफ झुक सकता है.

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