सूरत, 16 अप्रैल (हि.स.)। राज्य में प्राकृतिक खेती ने गति पकड़ी है। कई किसान इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे किसान की, जिन्होंने ओएनजीसी में 35 वर्षों तक इंजीनियर के रूप में सेवा के बाद सेवानिवृत्ति होने पर प्राकृतिक खेती अपनाया और एक नया अध्याय रच दिया। इससे उनकी आमदनी भी बढ़ी है और उन्होंने गाँव के 10 लोगों को रोजगार भी प्रदान किया है। महुवा तहसील के वाछावड़ गाँव के प्रदीपभाई लालभाई नेता अपने 22 बीघा खेत में केसर आम के 600 से अधिक पेड़ सहित सफेद जामुन, काला जामुन, लंबे चीकू, अंजीर, वेलवेट एप्पल, एप्पल बोर जैसे करीब 40 प्रकार के फलों के पेड़, सब्जियाँ, अनाज और गन्ने से जैविक गुड़ का उत्पादन कर 10 लाख रुपये सालाना आय अर्जित कर रहे हैं।
उन्होंने अपने दादाजी की देशी खेती पद्धति से प्रेरणा ली, जो गोबर आधारित खेती करते थे। उनकी इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए प्रदीपभाई ने रासायनिक खाद से मुक्त भूमि पर प्राकृतिक खेती शुरू की है। उन्होंने बताया कि गोबर आधारित खाद, जीवामृत, बर्मी कम्पोस्ट और जंगल मॉडल खेती के कारण भूमि और फसल की गुणवत्ता व उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। गन्ने में अब 30 दिनों तक पानी देने की जरूरत नहीं रहती। उन्होंने कहा कि “भूमि की सेहत बनाए रखना ही दीर्घकालिक कृषि का असली विकास है।” प्रदीपभाई ने बताया कि गोबर की खाद से भूमि नरम और उपजाऊ बनती है। साथ ही पौधों की छंटाई, सफाई और नियमित निराई-गुड़ाई करते हैं। यदि हम ज़मीन की देखभाल करेंगे, तो ज़मीन जीवन भर हमारी देखभाल करेगी।
सरकारी सहायता की बात करें तो उन्होंने ड्रिप सिंचाई योजना का लाभ लिया है, जिसमें 70 प्रतिशत सब्सिडी मिली है। एक हेक्टेयर ज़मीन में ड्रिप सिंचाई कर पानी की अधिकतम बचत हो रही है। सरकार से 4 हजार रुपये का वेट मशीन और ट्रैक्टर की खरीद पर 60,000 रुपये की सब्सिडी भी मिली है। सरकारी कृषि सहायता से उन्हें बड़ा सहारा मिला है।
इस प्रकार, प्रदीपभाई प्राकृतिक खेती कर युवा किसानों को मार्गदर्शन भी दे रहे हैं। उनका मानना है कि खेती में रासायनिक और जहरीले रसायनों के कारण भूमि, फसल और पर्यावरण को जो नुकसान हो रहा है, उसे सुधारने और लोगों को निरोग व स्वस्थ जीवन देने के उद्देश्य से राज्य सरकार की प्राकृतिक खेती की पहल को सहयोग देना चाहिए और जल्द से जल्द इसे अपनाना चाहिए।
हिन्दुस्थान समाचार / बिनोद पाण्डेय
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