सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने शुक्रवार यानी 7 नवंबर को आवारा कुत्तों से जुड़े मामलों में नया आदेश जारी किया.
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों से कहा है कि सरकारी और निजी अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों और रेलवे स्टेशन जैसी सार्वजनिक जगहों से आवारा कुत्तों को हटाया जाए.
इसके बाद उनकी नसबंदी और टीकाकरण कराकर उन्हें शेल्टर होम में रखा जाए. इसके साथ ही कोर्ट ने हाईवे और एक्सप्रेसवे से आवारा जानवरों और मवेशियों को हटाने का भी आदेश दिया.
कोर्ट ने यह भी साफ़ किया कि इन निर्देशों का सख़्ती से पालन होना चाहिए. पिछले तीन महीनों में सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों से जुड़े मामलों में कई बार हस्तक्षेप किया है.
इन आदेशों का विरोध भी हुआ, जिसके बाद कोर्ट को कुछ निर्देशों में संशोधन करना पड़ा. आइए समझते हैं कि इन सभी आदेशों के बाद अब सरकारों को क्या-क्या करना होगा.
मामले की शुरुआत कैसे हुई?
Getty Images सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले दिल्ली एनसीआर के आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में डालने से जुड़े आदेश में संशोधन किया था आवारा कुत्तों से जुड़े कई मामले सुप्रीम कोर्ट और अलग-अलग हाई कोर्टों में लंबित थे. इस बीच, 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया.
इस रिपोर्ट में दिल्ली की एक छह साल की बच्ची की मौत का ज़िक्र था, जिसे आवारा कुत्ते ने काट लिया था.
कोर्ट ने इसे "चिंताजनक और परेशान करने वाला" मामला बताया और कहा कि दिल्ली में कुत्तों के काटने की हज़ारों घटनाएं रोज़ दर्ज होती हैं.
इसके बाद, 11 अगस्त की सुनवाई में कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर (नोएडा और गाज़ियाबाद सहित) से सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर में रखने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि वहाँ उनकी नसबंदी और टीकाकरण किए जाएंगे और उन्हें दोबारा सड़कों पर नहीं छोड़ा जाएगा.
कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति या संगठन ने अगर इस आदेश में बाधा डाली, तो उसके ख़िलाफ़ अवमानना की कार्रवाई की जाएगी.
साथ ही अदालत ने यह निर्देश भी दिया कि शेल्टर में रखे गए कुत्तों की उचित देखभाल और निगरानी सुनिश्चित की जाए.
कोर्ट के फ़ैसला पर प्रतिक्रिया फिर संशोधनइस फ़ैसले का बहुत विरोध किया गया. इसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी हुए. कोर्ट के फैसले की एक बड़ी आलोचना यह थी कि शहर में कुत्तों के लिए पर्याप्त शेल्टर नहीं हैं.
इस विरोध के बाद मामला एक बड़ी तीन जजों की पीठ को सौंपा गया. इस पीठ ने देशभर में चल रहे आवारा कुत्तों से जुड़े सभी मामलों को अपने पास ट्रांसफर कर लिया.
22 अगस्त को इस पीठ ने पहले आदेश में संशोधन करते हुए कहा कि नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उसी इलाके में वापस छोड़ा जाएगा, जहाँ से उन्हें पकड़ा गया था. केवल रेबीज़ से संक्रमित कुत्तों को ही शेल्टर में रखा जाएगा.
साथ ही, हर इलाके में कुत्तों को खाना देने के लिए निर्धारित स्थल तय करने को कहा गया. कोई व्यक्ति या संगठन कुत्ते को गोद लेना चाहे तो वह म्युनिसिपल अधिकारियों को आवेदन दे सकता है.
इसके साथ मामला सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं रहा. कोर्ट ने यह आदेश सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू कर दिया. और उनसे जवाब भी मांगा कि वे अपने यहाँ जानवरों से जुड़े ऐसे मुद्दों के लिए क्या कदम उठा रहे हैं.
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BBC 7 नवंबर की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्कूल, अस्पताल, खेल परिसर, बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर कुत्तों के काटने की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं. और कहा कि यह प्रशासन की उदासीनता और सिस्टम की नाकामी को दर्शाती हैं. इससे लोगों की सुरक्षा, पर्यटन और भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी बुरा असर पड़ रहा है.
कोर्ट ने कहा कि साल दर साल आवारा कुत्तों की लोगों को काटने की घटनाएँ बढ़ रही हैं.सरकारी डेटा के मुताबिक 2023 में देश भर में 30 लाख के करीब ऐसी घटनाएँ हुई, और 2024 में क़रीब 37 लाख ऐसी घटनाएँ.
इससे निपटने के लिए कोर्ट ने ये दिशानिर्देश जारी किए:
- सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दो हफ़्ते के अंदर ऐसे निजी और सरकारी अस्पताल, शैक्षणिक संस्था इत्यादि की सूची बनानी होगी. इन जगहों पर पर्याप्त बाउंड्री वॉल, फेंसिंग और गेट लगाने होंगे ताकि आवारा कुत्ते घुस ना सके. ऐसा जल्द से जल्द करना होगा, और हो सके तो आठ हफ्तों के अंदर.
- इन सभी अस्पतालों, खेल परिसरों, शैक्षणिक संस्थाओं को एक अधिकारी नामित करना होगा जो जगह की देख-रेख करे.
- स्थानीय नगरपालिका या पंचायत तीन महीने में एक बार इन जगहों का निरीक्षण करें.
- नगरपालिका अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि इन परिसरों में मौजूद आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर होम में रखा जाए, उनकी नसबंदी और टीकाकरण हो, और उन्हें दोबारा उन्हीं इलाकों में न छोड़ा जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों से आठ हफ़्तों के भीतर यह रिपोर्ट मांगी है कि वे इन आदेशों को कैसे लागू कर रहे हैं.
मवेशी और आवारा पशुओं के लिए भी आदेश
Getty Images सुप्रीम कोर्ट की ओर से आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर में रखने के आदेश का काफ़ी विरोध भी हुआ था कोर्ट ने मवेशियों और आवारा पशुओं के मुद्दे पर भी आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि मवेशियों और आवारा पशुओं के कारण रोड और हाईवे पर दुर्घटना होते रहती है.
इसलिए, म्युनिसिपल, राज्य और नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया के अधिकारियों को हाईवे और एक्सप्रेसवे से मवेशियों और आवारा पशुओं को हटाना होगा.
इन्हें पकड़कर गोशालाओं या शेल्टर होम में रखा जाए, जहाँ उनकी उचित देखभाल हो सके.
अदालत ने अधिकारियों को आदेश दिया कि सड़कों पर 24 घंटे निगरानी रखी जाए ताकि कोई पशु दोबारा सड़कों पर न आए.
कोर्ट ने यह भी कहा कि हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के मुख्य सचिव अपने स्तर पर ज़िम्मेदारी तय करें और आदेशों के पालन में किसी तरह की लापरवाही पाए जाने पर संबंधित अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से जवाबदेह ठहराया जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से आठ हफ़्तों के भीतर रिपोर्ट मांगी है कि वे इन दिशा-निर्देशों का पालन कैसे कर रहे हैं.
आगे क्या?
Getty Images कोर्ट के इन फैसलों के बाद अब सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सार्वजनिक स्थलों, जैसे अस्पताल, खेल परिसर, रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन और शैक्षणिक संस्थानों से आवारा कुत्तों को उठा कर शेल्टर घरों में रखना होगा. साथ ही, हाईवे और एक्सप्रेसवे पर मवेशियों और आवारा पशुओं को भी हटाना होगा.
ये फ़ैसला कितना लागू होने पाता है, ये देखने वाली बात होगी. अब भी सबसे बड़ा सवाल है कि इन आवारा जानवरों और कुत्तों को रखा कहा जाएगा.
हालांकि, कोर्ट ने जानवरों को हटाने के लिए कोई समय सीमा नहीं दी है, बस ये कहा है कि आठ हफ्तों में रिपोर्ट दायर करनी होगी कि राज्यों ने क्या कदम उठाए हैं.
पशु कल्याण से जुड़े कई संस्थानों ने कोर्ट के शुक्रवार को दिए गए फैसले की आलोचना की.
पशु अधिकार संगठन पेटा इंडिया ने अपने एक प्रेस रिलीज़ में कहा कि कोर्ट का फैसला "ज़मीनी वास्तविकता से जुड़ा नहीं है".
पेटा ने कहा कि देश भर में पाँच करोड़ से ज़्यादा आवारा कुत्ते हैं और 50 लाख से ज़्यादा मवेशी हैं. उसका कहना था कि इन्हें रखने के लिए पर्याप्त शेल्टर होम अभी नहीं हैं.
बीजेपी की पूर्व सांसद मेनका गांधी ने समाचार एजेंसी एनआई को कहा कि कोर्ट का नया फैसला पिछले फैसले वाली दिक्कतों का सामना करेगा, जिसे कोर्ट को बाद में बदलना पड़ा था. उन्होंने कहा कि वे इस फैसले को आगे कोर्ट में चुनौती देंगी.
उन्होंने कहा कि अगर कुत्तों को रेलवे स्टेशन, स्कूलों और कॉलेजों से हटाया जा सकता था, तो ये हो जाता.
वे बोलीं, "अगर इन्हें हटाया गया, तो ये जानवर जाएँगे कहाँ?" उनके मुताबिक अगर कुत्तों को उनकी जगह से हटा कर रोड पर लाया गया तो उससे आम नागरिकों को खतरा और बढ़ जाएगा.
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सुप्रीम कोर्ट के सामने 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने एक एफिडेविट दायर की है, जिसमें उन्होंने बताया है कि उनके यहाँ कितने शेल्टर होम हैं और उन्होंने कितने आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण की है.
दिल्ली में 20 जानवरों के लिए 'एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर' हैं. ये 'एनिमल बर्थ कंट्रोल' नियम के तहत बनाए जाते हैं. पिछले छह महीनों में हर सेंटर पर रोज़ाना 15 आवारा कुत्तों की नसबंदी और उनका टीकाकरण हुआ है.
महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा ऐसे एनिमल बर्थ कंट्रोल सेंटर है. पूरे राज्य में 236 ऐसे सेंटर हैं. वहीं, उत्तर प्रदेश के 17 शहरों में ऐसे सेंटर हैं और बिहार में एक भी ऐसा सेंटर नहीं है, लेकिन कुत्तों के लिए 16 जगहों पर व्यवस्था है.
पशु अधिकार कार्यकर्ता गौरी मौलेखी, जो इस मामले में भी शामिल थी, उन्होंने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा, "(इस फ़ैसले से) जानवरों से प्यार करने वालों और अधिकारियों जिन्हें जानवरों को हटाने पर मजबूर किया गया है, उनके बीच झगड़ा बढ़ेगा."
कई स्कूलों और कॉलेजों में भी आवारा कुत्तों को पाला जाता है. इसी साल जून में विश्वविदालय अनुदान आयोग ने कहा था कि उच्च शिक्षा संस्थानों में जानवरों का देखभाल करने के लिए सोसाइटी बनाई जाए. इनमें संस्थानों में जानवरों को खाना देने लिए जगह बनाई जाए. तो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऐसे संस्थानों में कुत्तों को हटाया जाएगा या उन्हें रहने दिए जाएगा ये अभी स्पष्ट नहीं है.
ये भी गौर करने वाली बात है, कि कोर्ट ने जानवररों को केवल हटाने को नहीं कहा, लेकिन यह भी कहा कि रेलवे स्टेशन, अस्पताल, स्कूल, कॉलेज इत्यादि में दीवार या फेंसिंग होनी चाहिए. जानवरों को हटाने के साथ ये भी एक बड़ा काम होगा, जिसे राज्यों को आठ हफ्तों के अंदर करना होगा.
इस मामले की अगली सुनवाई 13 जनवरी को है, तब ये बात और साफ़ होगी कि इन आदेशों का कितना पालन हो पाया है.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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