
दिल्ली दंगों की साज़िश से जुड़े यूएपीए मामले में आठ अभियुक्तों की ज़मानत याचिकाओं पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार (9 जुलाई) को अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया.
इनमें शरजील इमाम, उमर ख़ालिद, गुलफ़िशा फ़ातिमा, ख़ालिद सैफ़ी, सलीम ख़ान, शिफा उर रहमान, अतहर ख़ान और मीरान हैदर शामिल हैं.
इन सभी पर ग़ैर क़ानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत आतंकवाद के आरोप लगे हैं.
दिल्ली पुलिस का आरोप है कि इन लोगों ने नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के विरोध के दौरान फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए सांप्रदायिक दंगों की साज़िश रची थी.
वहीं, अभियुक्तों की ओर से दलील दी गई कि उन्हें बिना मुक़दमे के पाँच साल से जेल में रखा गया है और अब तक ट्रायल शुरू नहीं हुआ है. उन्होंने अदालत से कहा कि मुक़दमे में अभी और वक़्त लगेगा, इसलिए उन्हें ज़मानत दी जाए.
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उन्होंने यह भी कहा कि देवांगना कलिता और नताशा नरवाल को इसी मामले में ज़मानत मिल चुकी है. इसलिए, समानता के आधार पर बाक़ी अभियुक्तों को भी ज़मानत मिलनी चाहिए.
लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने ज़मानत पर अपना फ़ैसला सुरक्षित रखा है.
शरजील इमाम, ख़ालिद सैफ़ी जैसे कुछ अभियुक्तों की याचिकाएँ 2022 से दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित हैं. वहीं, उमर ख़ालिद समेत कुछ अभियुक्तों की याचिकाएँ 2024 से दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित हैं.
मंगलवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली पुलिस की तरफ़ से बहस की.
उन्होंने दो तर्कों पर ज़ोर दिया. पहला, ये कि फ़रवरी 2020 में हुई सांप्रदायिक हिंसा एक सोची-समझी साज़िश थी, जिसका मक़सद भारत की संप्रभुता को ठेस पहुँचाना था.
साथ ही उन्होंने अदालत से यह भी कहा कि मुक़दमे में देरी होने के आधार पर ज़मानत दी जा सकती है, लेकिन उन मामलों में नहीं, जहाँ देश की राजधानी में हिंसा फैलाने की कोशिश की गई हो.
उन्होंने अदालत में यह भी दलील दी कि यह कोई आम दंगे नहीं थे, इसलिए अदालत को ज़मानत नहीं देनी चाहिए.
अब समझते हैं कि पूरा मामला क्या है और अब तक क्या हुआ है.
दिल्ली दंगों की साज़िश का मामलाफ़रवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें अधिकांश मुसलमान थे.
पुलिस ने दंगों से जुड़े 758 मामले दर्ज किए थे. इन्हीं में से एक मामले की जाँच दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल कर रही है.
यह मामला दिल्ली दंगों की साज़िश से जुड़ा है.
पुलिस का आरोप है कि जब दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के ख़िलाफ़ प्रदर्शन शुरू हुए, तो इससे जुड़े कुछ एक्टिविस्ट और छात्रों ने दिल्ली में दंगे भड़काने की साज़िश रची.
इस साज़िश के मामले में 20 लोगों को अभियुक्त बनाया गया है. इनमें से छह को ज़मानत मिल चुकी है, 12 अभी भी जेल में हैं और दो को फरार घोषित किया गया है.
अभियुक्तों की ज़मानत याचिका निचली अदालत ने ख़ारिज कर दी थी. इससे पहले उमर ख़ालिद की एक अन्य ज़मानत याचिका दिल्ली हाई कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दी थी.
पुलिस ने अपने पक्ष में 58 गवाहों के बयान दर्ज कराए हैं. इन गवाहों का कहना है कि अभियुक्तों ने दंगों की साज़िश रची थी. फ़िलहाल इन गवाहों की पहचान गोपनीय रखी गई है.
पुलिस की दलीलपुलिस ने इस सुनवाई में तर्क दिया है कि ये दंगे चार चरणों में हुए, जिनकी शुरुआत नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुई थी.
इसी दौरान शरजील इमाम और उमर ख़ालिद ने कथित तौर पर सांप्रदायिक व्हाट्सऐप ग्रुप बनाए और छात्रों को उकसाने की कोशिश की.
इसके अलावा, पुलिस का आरोप है कि दोनों ने चक्का-जाम की योजना बनाई थी, जिसका मक़सद लोगों की हत्या करना था.
पुलिस ने यह भी कहा कि उमर ख़ालिद कुछ गुप्त बैठकों में शामिल हुए, जहाँ उन्होंने अभियुक्तों से हथियार इकट्ठा करने को कहा.
इसके बाद, गुलफ़िशा फ़ातिमा और अन्य अभियुक्तों ने प्रदर्शनों का आयोजन किया. आरोप है कि इन लोगों ने प्रदर्शन के दौरान लोगों को डंडे, मिर्ची पाउडर और पत्थर बाँटे.
साथ ही, अलग-अलग अभियुक्तों ने प्रदर्शनों और बैठकों में हिस्सा लिया, हथियार इकट्ठा किए, सीसीटीवी कैमरे तोड़े और हथियारों के लिए पैसे जुटाए.
इन दावों के समर्थन में पुलिस ने गवाहों के बयान, शरजील इमाम और उमर ख़ालिद के कुछ भाषणों और व्हाट्सऐप पर हुई बातचीत का हवाला दिया है.
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि दिल्ली दंगों का मक़सद 'वैश्विक स्तर पर भारत को बदनाम करना था', क्योंकि इसकी तारीख़ उस समय के लिए तय की गई जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत दौरे पर आने वाले थे.
अभियुक्तों का क्या कहना है?
अभियुक्तों ने अपने पक्ष में कहा है कि वे कई वर्षों से जेल में हैं और अब तक मुक़दमा शुरू नहीं हुआ है.
इसलिए, मुक़दमे में देरी के आधार पर उन्हें रिहा किया जाना चाहिए.
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उन फ़ैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया है कि अगर मुक़दमे में देरी हो रही हो तो अभियुक्त को ज़मानत दी जानी चाहिए.
आठों अभियुक्तों के वकीलों ने अदालत में अपना पक्ष रखा.
सभी की दलीलों में दो बातें समान थीं - पहली, मुक़दमे में देरी और दूसरी, कुछ अन्य अभियुक्तों को ज़मानत मिल जाना.
साथ ही, वकीलों ने पुलिस के सबूतों पर भी सवाल उठाए.
उमर ख़ालिद के वकील त्रिदीप पाइस ने कहा कि किसी व्हाट्सऐप ग्रुप में शामिल होना अपराध नहीं है.
उन्होंने तर्क दिया, "उमर ख़ालिद को इन ग्रुप्स में किसी और ने जोड़ा था. उन्होंने ग्रुप में कोई संदेश नहीं भेजा."
उन्होंने यह भी कहा कि उमर ख़ालिद के पास से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ था और उनके भाषणों में भी कुछ आपत्तिजनक नहीं था.
इसके अलावा, वकीलों ने पुलिस के गोपनीय गवाहों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए.
त्रिदीप पाइस ने कोर्ट में कहा कि अदालत को यह देखना चाहिए कि गवाह कितने भरोसेमंद हैं.
गुलफ़िशा फ़ातिमा के वकील ने भी दलील दी कि उन्हें दिल्ली दंगों से जोड़ने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है.
उन्होंने केवल शांतिपूर्ण प्रदर्शन में हिस्सा लिया था. साथ ही, उन्होंने गवाहों के बयानों को भी अविश्वसनीय बताया.
शरजील इमाम के वकील ने कहा कि उन्हें जनवरी 2020 में ही गिरफ़्तार कर लिया गया था और दंगे फ़रवरी में हुए.
उन्होंने बताया कि भाषणों के आधार पर पहले से ही एक मुक़दमा चल रहा है. और उस केस में उन्हें ज़मानत मिल चुकी है.
मामला कब शुरू होगा?
पाँच साल बाद भी इस केस में मुक़दमे की सुनवाई शुरू नहीं हुई है. अब तक पुलिस इस मामले में पाँच चार्जशीट दाख़िल कर चुकी है.
कड़कड़डूमा अदालत इस समय इस बिंदु पर सुनवाई कर रही है कि क्या चार्जशीट के आधार पर अभियुक्तों के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाया जा सकता है.
अगर कोर्ट पुलिस की चार्जशीट को सही मानती है, तभी मुक़दमा औपचारिक रूप से शुरू होगा.
क़ानून के जानकारों का कहना है कि अभियुक्तों की संख्या ज़्यादा होने के कारण इसी चरण पर लंबी बहस चल सकती है.
अब तक इस केस में कई वजहों से देरी हुई है. शुरुआत में कई महीने इस बात पर बहस होती रही कि अभियुक्तों को उनके ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों की फोटोकॉपी दी जाए या नहीं.
बाद में, कुछ अभियुक्तों ने अदालत से मांग की कि पुलिस पहले यह स्पष्ट करे कि उनकी जाँच पूरी हो चुकी है या नहीं.
इस मुद्दे पर भी लंबी बहस चली कि पुलिस को यह जानकारी देना ज़रूरी है या नहीं.
इसी वजह से मामला क़रीब एक साल तक रुका रहा. आख़िरकार पुलिस ने अदालत को बताया कि उनकी तहक़ीक़ात पूरी हो चुकी है.
बीते साल फ़रवरी में बीबीसी हिंदी की एक पड़ताल में पाया गया था कि अब तक दिल्ली दंगों से जुड़े जिन मुक़दमों पर कड़कड़डूमा कोर्ट ने फ़ैसले सुनाए हैं, उनमें 80 प्रतिशत से ज़्यादा मामलों में अभियुक्तों को निर्दोष पाया गया है.
इस बारे में विस्तार से आप बीबीसी की रिपोर्ट यहाँपढ़ सकते हैं.
दिल्ली दंगों की साज़िश से जुड़े मामलों की तहक़ीक़ात और पुलिस के सबूतों पर कई क़ानूनी विशेषज्ञों ने भी सवाल उठाए हैं.
हालांकि, मंगलवार को ज़मानत का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पुलिस की जाँच को 'बेहतरीन' बताया.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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