मालेगांव बम विस्फोट मामले में विशेष एनआईए अदालत ने सभी सात अभियुक्तों को बरी कर दिया है.
क़रीब 17 साल पहले मालेगांव में हुए बम धमाकों में छह लोगों की मौत हुई थी और 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे.
बीजेपी नेता साध्वी प्रज्ञा और लेफ़्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित इस मामले में सबसे चर्चित अभियुक्त रहे. साध्वी प्रज्ञा भोपाल से बीजेपी की सांसद रह चुकी हैं.
29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में एक मस्जिद के पास खड़ी मोटरसाइकिलों में रखे विस्फोटकों में धमाका हुआ था.
इससे पहले विशेष एनआईए न्यायाधीश एके लाहोटी ने 8 मई को सभी अभियुक्तों को 31 जुलाई को अदालत में पेश होने का आदेश दिया था.
मुक़दमे के दौरान सरकारी पक्ष ने 323 गवाहों से पूछताछ की, जिनमें से 37 अपने बयान से मुकर गए थे.
बाद में इस मामले की जाँच की ज़िम्मेदारी एनआईए को सौंप दी गई थी.
इस मामले में लेफ़्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, बीजेपी नेता प्रज्ञा ठाकुर, मेजर रमेश उपाध्याय (सेवानिवृत्त), अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी के ख़िलाफ़ ग़ैर क़ानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
शुरुआत में इस मामले की जाँच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ता (एटीएस) कर रहा था, लेकिन 2011 में इसकी जाँच की ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी गई थी.
फैसला सुनाते समय न्यायाधीश ने क्या कहा?- सरकारी पक्ष यह तो साबित कर सका कि बम विस्फोट हुआ था, लेकिन यह साबित नहीं कर पाया कि बम मोटरसाइकिल पर ही लगाया गया था.
- दावा किया गया था कि लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित कश्मीर से आरडीएक्स लेकर आए थे, लेकिन इसका कोई ठोस सबूत नहीं मिला. यह भी साबित नहीं हो सका कि पुरोहित ने अपने घर पर बम तैयार किया था.
- रमज़ान की वजह से उस समय इलाक़ा बंद था, और यह स्पष्ट नहीं हो सका कि मोटरसाइकिल वहाँ कैसे पहुँची.
- ऐसा कहा गया कि इंदौर, उज्जैन और नासिक जैसे स्थानों पर साज़िश रचने के लिए बैठकें हुई थीं, लेकिन ऐसी बैठकों का कोई विश्वसनीय प्रमाण अदालत में पेश नहीं किया जा सका.
- अदालत ने यह भी पाया कि जाँच अधिकारियों ने फ़ोन रिकॉर्ड की जांच के लिए अनुमति नहीं ली थी.
- अभिनव भारत मामले में पुरोहित, राहिरकर और उपाध्याय के बीच कुछ वित्तीय लेनदेन के प्रमाण तो मिले, लेकिन यह साबित नहीं हो सका कि उस धन का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों में किया गया था.
- अभियोजन पक्ष अपने आरोपों को साबित करने के लिए विश्वसनीय और ठोस सबूत पेश नहीं कर सका.
- सभी साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने माना कि अभियुक्तों को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त कानूनी आधार नहीं हैं.
- यह एक गंभीर अपराध था, लेकिन अदालत को फैसला सुनाने के लिए ठोस और निर्विवाद प्रमाण की आवश्यकता होती है.
- सभी अभियुक्तों को संदेह का लाभ देते हुए निर्दोष घोषित किया गया है.
मालेगांव बम विस्फोट मामले में अदालत के फ़ैसले के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस पर प्रतिक्रिया दी है.
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा, "आतंकवाद भगवा न कभी था, ना है, ना कभी रहेगा!"
एटीएस और एनआईए जाँच में क्या अंतर था?
महाराष्ट्र एटीएस ने शुरुआत में इस मामले की जाँच की थी. एटीएस की जाँच में पाया गया था कि साध्वी प्रज्ञा की एलएमएल फ्रीडम बाइक का इस्तेमाल विस्फोटक रखने के लिए किया गया था.
लेफ़्टिनेंट कर्नल पुरोहित पर दक्षिणपंथी समूह अभिनव भारत नामक के माध्यम से आरडीएक्स की योजना बनाने और उसे ख़रीदने का आरोप लगाया गया था.
जब एनआईए ने मामले की जाँच अपने हाथ में ली, तो कई आरोप वापस लिए गए. एनआईए के मुताबिक़ एटीएस जाँच में कई ख़ामियाँ पाई गईं थी लेकिन यूएपीए की धाराएँ बरकरार रखी गईं.
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महाराष्ट्र के मालेगांव में अंजुमन चौक और भीकू चौक के बीच शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट के सामने 29 सितंबर 2008 की रात 9.35 बजे बम धमाका हुआ था, जिसमें छह लोग मारे गए और 101 लोग घायल हुए थे.
इस धमाके में एक मोटरसाइकिल इस्तेमाल की गई थी. एनआईए की रिपोर्ट के मुताबिक़ यह मोटरसाइकिल प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर थी.
महाराष्ट्र एटीएस ने हेमंत करकरे के नेतृत्व में इसकी जाँच की और इस नतीजे पर पहुँची कि उस मोटरसाइकिल के तार गुजरात के सूरत और अंत में प्रज्ञा ठाकुर से जुड़े थे.
प्रज्ञा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सदस्य रह चुकी थीं.
पुलिस ने पुणे, नासिक, भोपाल इंदौर में जाँच की. सेना के एक अधिकारी कर्नल प्रसाद पुरोहित और सेवानिवृत मेजर रमेश उपाध्याय को भी गिरफ़्तार किया गया.
इसमें हिंदूवादी संगठन अभिनव भारत का नाम सामने आया और साथ ही सुधाकर द्विवेदी उर्फ़ दयानंद पांडेय का नाम भी आया.
मोटरसाइकिल से प्रज्ञा का कनेक्शनएटीएस चार्जशीट के मुताबिक़ प्रज्ञा ठाकुर के ख़िलाफ़ सबसे बड़ा सबूत मोटरसाइकिल उनके नाम पर होना था.
इसके बाद प्रज्ञा को गिरफ़्तार किया गया. उन पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण क़ानून (मकोका) लगाया गया.
चार्जशीट के मुताबिक़ जाँचकर्ताओं को मेजर रमेश उपाध्याय और लेफ़्टिनेंट कर्नल पुरोहित के बीच एक बातचीत पकड़ में आई जिसमें मालेगांव धमाके मामले में प्रज्ञा ठाकुर के किरदार का ज़िक्र था.
बाद में जाँच एटीएस से लेकर एनआईए को सौंप दी गई थी. एनआईए की चार्जशीट में उनका नाम भी डाला गया.
मालेगांव ब्लास्ट की जाँच में सबसे पहले 2009 और 2011 में महाराष्ट्र एटीएस ने स्पेशल मकोका कोर्ट में दाखिल अपनी चार्जशीट में 14 अभियुक्तों के नाम दर्ज किए थे.
एनआईए ने जब मई 2016 में अपनी अंतिम रिपोर्ट दी, तो उसमें 10 अभियुक्तों के नाम थे.
इस चार्जशीट में प्रज्ञा सिंह को दोषमुक्त बताया गया. साध्वी प्रज्ञा पर लगा मकोका हटा लिया गया और कहा गया कि प्रज्ञा ठाकुर पर करकरे की जाँच असंगत थी.
इसमें लिखा गया कि जिस मोटरसाइकिल का ज़िक्र चार्जशीट में था वो प्रज्ञा के नाम पर थी, लेकिन मालेगांव धमाके के दो साल पहले से कलसांगरा इसे इस्तेमाल कर रहे थे.
प्रज्ञा ठाकुर को ज़मानत तो मिल गई लेकिन उनपर मुक़दमा चलता रहा. बाद में वो 2019 में भोपाल से लोकसभा का चुनाव लड़ीं और जीत गईं.
भोपाल से चुनाव लड़ने के दौरान साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने मालेगांव धमाकों में लगे आरोप पर फिर सफ़ाई दी है. बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा था कि उन्होंने 'कोई कुकर्म नहीं किया जो मालेगांव का भूत हमेशा उनके पीछे लगा रहेगा'.
भोपाल को बीजेपी की मध्य प्रदेश में सबसे सुरक्षित सीटों में गिना जाता है. इस सीट पर बीजेपी साल 1989 से जीतती आ रही थी.
लेकिन जिस साल बीजेपी ने प्रज्ञा ठाकुर को इस सीट पर अपना उम्मीदवार बनाया था, उस बार कांग्रेस ने अपने दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह को इस सीट से उतारा था.
यही नहीं, इस चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी.
दो साल में दो विस्फोट
सितंबर 2008 का बम धमाका दो साल में मालेगांव में हुआ दूसरा हमला था. इससे पहले, 8 सितंबर 2006 को शब-ए-बरात के दिन वहाँ धमाके हुए थे.
यह दिन मुस्लिम समुदाय के लिए धार्मिक रूप से अहम होता है. मालेगांव की एक मस्जिद के पास चार धमाके हुए. इनमें 31 लोगों की मौत हुई और 312 लोग गंभीर रूप से घायल हुए.
यह मामला आज भी अनसुलझा है. शुरुआत में कुछ लोगों को गिरफ़्तार किया गया है लेकिन बाद में उन्हें बरी कर दिया गया. इसके बाद कुछ हिंदू चरमपंथियों पर आरोप लगे.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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