पिछले कुछ दिनों से महाराष्ट्र, ख़ासकर मुंबई में भाषा के मुद्दे पर राजनीतिक जंग छिड़ी हुई है. इस विवाद के केंद्र में हिंदी भाषा है.
महाराष्ट्र सरकार के एक फ़ैसले से शुरू हुआ यह विवाद केवल बयानबाज़ी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक दलों ने सड़क पर उतरकर विरोध किया.
पिछले हफ़्ते भाषा विवाद से जुड़ी कम से कम तीन घटनाएं मुंबई और आस-पास के इलाकों में हुई हैं. इन घटनाओं में शामिल होने का आरोप राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के कार्यकर्ताओं पर लगा है.
लेकिन दोनों दलों का कहना है कि वे किसी भाषा के ख़िलाफ़ नहीं हैं और अहिंसा का रास्ता अपनाते हुए विरोध कर रहे हैं.
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि किसी भी तरह की गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं की जाएगी और पुलिस कार्रवाई करेगी.
लेकिन इन घटनाओं से मुंबई के कारोबारी चिंतित हैं.
भाषा विवाद में हुईं हिंसक घटनाएंस्कूल में पहली से तीसरी कक्षा तक हिंदी भाषा सिखाने के महाराष्ट्र सरकार के फ़ैसले पर विरोध ने देखते ही देखते आंदोलन का रूप ले लिया. जिस मुंबई में भाषा की राजनीति का मुद्दा पहले भी गरम रहा हो, वहां इस मुद्दे पर हिंसा की घटनाएं भी सामने आईं.
सबसे पहले मुंबई से सटे मीरा भायंदर में एक मिठाई की दुकान में मारपीट की घटना सामने आई. इसमें मनसे के कार्यकर्ताओं पर दुकान मालिक के साथ मारपीट करने का आरोप लगा और 29 जून को इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.
आरोपों के मुताबिक़, यहां 'जोधपुर स्वीट्स एंड नमकीन' के मालिक बाबूलाल चौधरी पर सात लोगों ने हमला किया. यह मारपीट तब की गई जब उन्होंने कथित तौर पर मराठी भाषा में बातचीत से मना कर दिया.
पुलिस ने इस मामले पर कार्रवाई शुरू कर दी है लेकिन इस घटना के बाद कारोबारी ग़ुस्से में हैं. घटना के दूसरे ही दिन कारोबारियों ने मीरा भायंदर में एक दिन के बंद का ऐलान करते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के ख़िलाफ़ रैली निकाली.
ऐसी ही पिटाई की घटना मुंबई से सटे ठाणे से आई.
ठाणे रेलवे स्टेशन के बाहर किरण जाधव नाम के स्थानीय व्यक्ति के साथ तीन लोगों ने मारपीट की. ख़बरों के मुताबिक यह झगड़ा मोबाइल चार्जिंग को लेकर हुआ था. इस मामले में भी स्थानीय पुलिस ने कार्रवाई की और मारपीट करने वालों को पकड़ भी लिया.
लेकिन पुलिस ने उन्हें जल्दी ही छोड़ दिया. शिवसेना (यूबीटी) के कार्यकर्ताओं ने थाने पहुंचकर इसका विरोध भी किया.
इसके बाद एक और वीडियो सामने आया. आरोपों के मुताबिक़, वीडियो में किरण जाधव के साथ मारपीट करने वाले तीनों लोगों को एक दफ़्तर में लाया गया है, जहां किरण जाधव से माफ़ी मांगने को कहा जा रहा है. इस दौरान तीनों लोगों के साथ मारपीट करने का आरोप भी लगा. कथित तौर पर इस वीडियो में किरण जाधव ने तीनों से पूछा, "मराठी आती है क्या?" और उनसे जबरन मराठी भी बोलने को कहा गया. आरोप है कि जब यह सब हो रहा था तो शिवसेना (यूबीटी) के ठाणे के पूर्व सांसद राजन विचारे भी वहां मौजूद थे.
मराठी और हिंदी भाषा को लेकर चल रहे विवाद के बीच जब इस मामले ने तूल पकड़ा तो शिवसेना (यूबीटी) के नेता और विधायक आदित्य ठाकरे ने कहा, "यह विवाद मोबाइल चार्जिंग को लेकर हुआ था और यही बात पुलिस की एफ़आईआर में दर्ज है. इसे भाषा के विवाद का रंग नहीं देना चाहिए."

चार जुलाई को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और गृह मंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था, "महाराष्ट्र में मराठी भाषा का अभिमान रखना कोई ग़लत बात नहीं है. लेकिन भाषा के चलते अगर कोई गुंडागर्दी करेगा तो उसे हम नहीं सहेंगे. कोई भाषा के नाम पर मारपीट करेगा तो उसे भी सहा नहीं जाएगा. पुलिस ने कार्रवाई की है और अगर आगे भी ऐसा हुआ तो क़ानून के मुताबिक़ कार्रवाई होगी. हमें भी मराठी का अभिमान है मगर देश की किसी भी अन्य भाषा के साथ अन्याय नहीं किया जा सकता, यह भी ध्यान में रखना चाहिए."
सुशील केडिया नाम के एक व्यवसायी ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म 'एक्स' पर राज ठाकरे को लेकर एक पोस्ट लिखी.
सुशील केडिया ने लिखा, "राज ठाकरे... मुंबई में तीस साल रहने के बाद भी मैं सही तरीक़े से मराठी नहीं सीख पाया हूं और आपके ग़लत बर्ताव की वजह से मैंने प्रतिज्ञा की है कि जब तक आप जैसे लोग मराठी का ख़्याल रखने का दावा करते रहेंगे, मैं मराठी नहीं सीखूंगा."
इस पर एमएनएस के कार्यकर्ताओं की तरफ़ से फिर से प्रतिक्रिया आई. पांच जुलाई को सुशील केडिया के ऑफ़िस पर पत्थरबाज़ी भी की गई, जिसके आरोप में मुंबई पुलिस ने मनसे के पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार भी किया है.
इसके बाद सुशील केडिया ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट कर माफ़ी मांगी और अपना बयान वापस ले लिया.
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भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में मराठी भाषी लोगों की संख्या सबसे अधिक है, मगर हिंदी और गुजराती समेत अन्य भारतीय भाषाएं बोलने वाले लोग भी कई साल से यहां रह रहे हैं.
व्यापार या फिर नौकरी के लिए यहां आ कर बसे ऐसे परिवारों की संख्या अब यहां की राजनीति में भी अहम हो गई है.
मुंबई के कुर्ला में रहने वाले हस्ती जैन एक चार्टर्ड अकाउंटेंट और व्यापारी हैं.
वह कहते हैं, "हमारे यहां जो राज्य बने हुए हैं वे भाषा से बने हुए हैं. यही इतिहास है. सब अपने राज्य से प्यार करते हैं और मुंबई में सब मराठी से प्यार करते हैं. उसमें कोई बहस नहीं. मगर हर किसी को मराठी नहीं आती. कई व्यापारी परिवार दूसरे राज्यों से आए हुए हैं इसलिए वे अच्छी मराठी नहीं बोल पाते. लेकिन वह कोशिश ज़रूर करते हैं. मुझे लगता है कि यह बात हर किसी को समझनी चाहिए. हम सब भारतीय हैं. ऐसी बातों से लोगों में डर पैदा होता है. ख़ास तौर पर व्यापारी समुदाय में."
ललित जैन मुंबई में कई साल से गहनों का कारोबार करते हैं. उन्हें लगता है कि फ़िलहाल भाषा को लेकर विवाद तो है, मगर मुंबई के लिए यह नई बात नहीं है.
ललित जैन का कहना है, "मेरा तो जन्म यहीं हुआ है. मैं जन्म से बढ़िया मराठी बोलता हूं. परिवार में हम सब को मराठी आती है. दूसरे राज्यों से आए बहुत कम हैं जिनको मराठी नहीं आती. तनाव की ऐसी घटनाएं बीच-बीच में होती रहती हैं. अभी भी मुंबई में जो कुछ हुआ है वह कुछ दिनों की बात है. यहां फिर से सब कुछ सामान्य हो जाएगा."
मुंबई के कारोबारी संगठनों ने भी इस हिंसा का विरोध किया है और सरकार पर सवाल खड़े किए हैं.
मुंबई के 'फ़ेडरेशन ऑफ़ रिटेल ट्रेडर्स वेलफ़ेयर एसोसिएशन' के अध्यक्ष वीरेन शाह ने कहा, "मैं यह मानता हूं कि मुंबई और महाराष्ट्र में रह कर बिज़नेस करने के लिए मराठी जानना और बोलना ज़रूरी है. मगर इसका मतलब यह नहीं है कि किसी के पास किसी भी व्यापारी या दुकानदार को डराने-धमकाने का अधिकार है. कोई दुकानदार किसी भाषा में नहीं बोल रहा है इसलिए उसे मारना क़ानून के ख़िलाफ़ है. हम इसका विरोध करते हैं और हैरान हैं कि 'वीडियो' में सब कुछ साफ़ दिखने के बाद भी सरकार सख़्ती से पेश क्यों नहीं आ रही?"
मराठी और हिंदी को लेकर पैदा हुए हालात से मराठी आंदोलन से जुड़े साहित्यकार भी चिंतित हैं. उन्हें लगता है कि जो मुद्दा किसी भाषा की शिक्षा से जुड़ा हुआ है, वह ऐसी घटनाओं से ग़ैर-ज़रूरी राजनीति में बदल जाता है.
लेखिका प्रज्ञा दया पवार ऐसी हिंसा से आहत हैं और उसका विरोध करती हैं. उन्होंने फ़ेसबुक पोस्ट में भाषा के आंदोलन से जुड़ी हिंसा की निंदा की है.
प्रज्ञा दया पवार ने बीबीसी से कहा, "हम सब को पता है कि मराठी भाषा का आंदोलन जो महाराष्ट्र में खड़ा हो रहा है, उसमें सबसे अहम बात है पहली कक्षा से 'तीसरी भाषा' को पाठ्यक्रम में शामिल करना. कई विद्वानों ने यह कहा है कि बच्चों के लिए यह ठीक नहीं है, हम उसका विरोध कर रहे हैं. मगर मुझे लगता है कि हिंदी बोलने वालों के साथ मारपीट या फिर हिंसा से इस आंदोलन की अहमियत पर असर पड़ रहा है. यह नहीं होना चाहिए."
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इसकी शुरुआत उस वक़्त हुई जब राज्य सरकार के शिक्षा विभाग ने स्कूलों में कक्षा एक में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी सिखाने का फ़ैसला लिया. अब तक राज्य में मराठी और अंग्रेज़ी ही पहली कक्षा से सिखाई जाती है.
जैसे ही यह फ़ैसला सामने आया, महाराष्ट्र में राजनीति गरम हो गई. दक्षिण के राज्यों जैसी हिंदी भाषा को लेकर हमेशा यहां विरोध की राजनीति चलती रही है. शिवसेना या महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना जैसी पार्टियां हमेशा से इसका विरोध करती रही हैं. उनका आरोप रहा है कि हिंदी की आड़ में स्थानीय लोगों के ख़िलाफ़ राजनीति हो रही है.
विवाद शुरू होते ही पहले तो सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार जो नई शिक्षा नीति लेकर आई है, उसी में 'त्रिभाषा सूत्र' यानी पहली कक्षा से ही तीन भाषाएं पढ़ाने का प्रावधान है.
फिर भाषा और शिक्षा के कई विशेषज्ञों ने इसका विरोध किया और कहा कि पहली कक्षा के बच्चों के लिए यह आसान नहीं होगा. शिवसेना (यूबीटी) या मनसे जैसी पार्टियों ने तो इसका विरोध किया ही, शिक्षा से जुड़े कई संगठनों और राजनीतिक दलों ने भी आंदोलन शुरू कर दिया.
इसके बाद राज्य सरकार ने एक क़दम पीछे खींचते हुए हिंदी का अनिवार्य होना रद्द कर दिया और कहा कि अगर कुछ स्टूडेंट्स तीसरी भाषा चुनना चाहते हैं, तो चुन सकते हैं. लेकिन इससे भी विरोध पर कोई असर नहीं पड़ा और सरकार बैकफ़ुट पर चली गई.
भाषा के इस मुद्दे ने महाराष्ट्र की राजनीति में एक अहम तस्वीर पेश की है. साल 2009 से एक-दूसरे के ख़िलाफ़ राजनीति करने वाले उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने भाषा के आंदोलन के लिए एक साथ आने का ऐलान किया. पांच जुलाई को उन्होंने सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चे का ऐलान किया.
ठाकरे भाइयों की रैली से पहले विरोध के माहौल को देखते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 29 जून को राज्य सरकार के पहली कक्षा से 'तीसरी भाषा' पढ़ाने के फ़ैसले को वापस ले लिया और इसके लिए डॉ. नरेंद्र जाधव कमेटी बनाने का ऐलान किया.
मगर दशकों से महाराष्ट्र में चलने वाली भाषा की राजनीति का असर सड़कों पर भी देखने को मिला और मराठी के अलावा दूसरी भाषाएं बोलने वालों पर हमले हुए.
पांच जुलाई को उद्धव और राज ठाकरे ने राज्य सरकार के ख़िलाफ़ अपने आंदोलन के लिए मुंबई में रैली आयोजित की.
इसमें राज ठाकरे ने कहा, "इस मामूली विवाद को मराठी बनाम अन्य भाषा का रंग दिया गया. अब कहा जाएगा कि हमने व्यापारियों के साथ मारपीट की. बात का बतंगड़ बनाया जाएगा. मगर किसी के साथ मारपीट मत कीजिए. हमारा अन्य भाषा बोलने वालों या गुजराती से कोई बैर नहीं है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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